क्यों बौद्ध बनें 180 हिंदू धर्म के मानने वाले?
- भव्य श्रीवास्तव
क्या जाति व्यवस्था की घुटन आज भी जारी है। सवाल सहारनपपुर की एक घटना ने खडे कर दिए है। 180 दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार लिया। ये कहते हुए कि ऊंची जातियों की ज्यादतियों से वे आहत हैं। सहारनपुर में पिछले कुछ समय से हिंसा की वारदातों से हिला हुआ है। बौद्ध धर्म की शरण लेने वाले 60 दलित परिवारों का खुला आरोप है कि वे ठाकुर जाति के जुल्मों के शिकार है और उनका जीवन भय की छाया में बीत रहा है। देश में जब कई धर्मों को राजनैतिक छायावाद में एक असहजता का अहसास घेरे हुए है, ऐसे में ये घटना कई सवाल खड़े करती है।
जाहिर है सवाल स्थानीय प्रशासन से है, कि उसके रहते हुए समाज में कैसे एक वर्ग को ऐसा कदम उठाने की जरूरत पड़ी। दलितों का सीधा आरोप है कि पुलिस प्रशासन ऊंची जातियों के साथ खड़ी है। हिंसा दोनों ओर से जारी है। 20 अप्रैल को ही आंबेडकर जयंती पर सड़क दूधली गांव में दलितों के एक कारवां के साथ झड़प की खबर आ चुकी है। पर साथ ही 5 मई को जब ठाकुरों ने महाराणा प्रताप की शोभायात्रा निकाली तो भी ऐसी ही झड़प में एक ठाकुर जाति के व्यक्ति की मौत हो गई और दोनों ओर से लोग घायल हुए। 9 मई को हुई एक और घटना ने पुलिस और दलितों के बीच संघर्ष का रूप ले लिया। दलितों के घोषित महापंचायत को रोकने की कोशिश पुलिस ने की तो बात संघर्ष में बदल गई। इस मामले में भीम सेना के कई लोगों पर एफआईआर दर्ज हुई, जो फरार हैं। हालांकि भीम सेना का कहना है कि उसे निशाना बनाया जा रहा है।
दलितों ने आह्वान किया है कि ये तो बस शुरूआत है, आगे हमारे और भी लोग बौद्ध धर्म को स्वीकार करेंगे। अगर उन्हें हिंदू धर्म में इंसान की तौर पर नहीं देखा गया तो वे शांत नहीं बैठेंगे। पर पुलिस का रवैया कुछ अजीब सा रहा। वो इसे कोई खास घटना नहीं मानती। उसका मानना है कि लोग कोई भी धर्म अपनाने को स्वतंत्र हैं।
हिंदुओं का खासकर दलितों का बौद्ध धर्म अपनाना कोई नई घटना नहीं है। देश के संविधान रचियता बीआर आंबेडकर ने भी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सत्तर हजार लोगों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया था।