१८ जून; वैसे तो रमजान में पानी पीना भी गुनाह है, लेकिन सिर्फ दातून ही ऐसी चीज है, जिसे पूरे दिन उपयोग किया जा सकता है. वहीं रमजान में किसी भी तरह के टूथब्रश का उपयोग नहीं किया जाता. हम कह सकते हैं रमजान के पाक महीने में दातून का इस्तेमाल की काफी अहमियत है. रोजा रखने वाले दातून से दांतों को साफ रखते हैं. लेकिन सबसे ज्यादा अहमियत मिसवाक को दी जाती है. मिसवाक एक प्रकार का दातुन होता है. जिसकी डिमांड रमजान के दौरान बढ़ जाती है. मिसवाक दातून का इस्तेमाल से फायदा भी होता है. यह दातों को स्वस्थ रखता है और दांत हमेशा चमकते रहते हैं.
ऐसा कहा जाता है कि पैगंबर साहब रमजान में सऊदी अरब की मिसवाक दातून से ही अपने दांतों को साफ किया करते थे. इसलिए रोजा रखने के दौरान दातून करने से रोजा निरंतर बना रहता है.
मिसवाक् के अलावा भी कई प्रकार की दातूनों का रमजान के दौरान किया जाता है. आइये डालते हैं उस पर एक नज़र-
हलीमी दातून
हलीमी दातून की अपनी अलग विशेषता है. हलीमी दातून मुलायम होता है और इसे अन्य दातुनों की अपेक्षा कम चबाना पड़ता है. इसके अलावा हदीस में दातून को सुन्नत बताया गया है. हालांकि यह दातून राजस्थान में भी पाया जाता है. लेकिन अरबियन कंट्रीज में इसके अधिक इस्तेमाल के चलते पूरी दुनिया के मुस्लिम लोगों में इसका अधिक क्रेज है.
पिलू दातून
पिलु को आध्यात्मिक यानी धार्मिक पौधा भी माना जाता है. कुछ लोग इसे योगीराज श्रीकृष्ण से जोड़ते हैं तो कुछ राधा-रानी से. इसे पांडवों की पसंद का पौधा भी बताते हैं. इसकी टहनियां हवन में भी काम में लाई जाती हैं. संतों के कमंडल के निर्माण में भी इसकी लकड़ी का प्रयोग होता है. गुरु गोविन्द सिंह से भी इस पेड़ को जोड़ा जाता है. रमजान के दौरान मुसलमान भाई बंधू भी इसकी दातून का इस्तेमाल करते हैं. पिलु की लकड़ी में नमक और खास किस्म का रेजिन पाया है, जो दातों में चमक पैदा करता है. जब इसकी एक तह दातों पर जम जाती है तो कीड़े आदि से दांत सुरक्षित रहतें हैं. इसके पत्ते भी खटटे- मीठे होते हैं. यह पेड़ भारत में बहुतायत में पाया जाता है. इसलिए इसका दातून आसानी से मिल भी जाता है.
नॉएडा की शिया मस्जिद के मौलाना गुलाम अली बताते हैं कि, “रमजान में किसी टूथपेस्ट से ब्रश करना इस्लाम में नामंजूर माना गया है. साथ ही पैगंबर साहब रमजान में सऊदी अरब की मिसवाक दातून का उपयोग करते थे, इसलिए रमजान में दातून का काफी महत्व है.”