गोरखपुर, ६ जून; रमजान के पाक महीने में आपने मुसलमानों को तो रोज़ा रखते हुए देखा होगा लेकिन गोरखपुर में एक ऐसे भी शख्स हैं जो धर्म से तो हिन्दू हैं लेकिन उन्हें रमज़ान के चाँद का भी इंतज़ार रहता है. गोरखपुर के लाल बाबू के घर में जिस तरह होली दीपावली में उत्साह का माहौल होता है ठीक वैसा ही उत्साह उनके यहां चांद रात और ईद के लिए भी होता है. शहर के जगन्नाथपुर इलाके का ह परिवार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है और इसके मुखिया लाल बाबू कौमी एकता की विरासत को पिछले तीस सालों से जिंदा रखे हुए है.
पिता की मन्नत से शुरू हुआ रोज़ा रखने का सिलसिला
लाल बाबू बताते हैं की 1950 की बात है जब उनके पिता स्वर्गीय गंगा बाबु ने परिवार के भरण पोषण के लिए रमज़ान में एक दुकान की मन्नत मांगी और तय किया कि अगर दुकान हो गई तो वह हर रमजान में दस रोजे रखेंगे। मन्नत पूरी हुई तो उन्होंने रमजान में रोजे रखने शुरू कर दिए.उनका यह सिलसिला 1985 तक चला. 1986 में उनका देहांत हुआ तो उनके बेटे लाल बाबू ने पिता की मन्नत सिर-माथे पर ले ली.
पूरा परिवार देता है साथ
पिता की विरासत को आगे बढ़ाते हुए व्यापारी लाल बाबू पिछले तीस साल से रोजा रखते आ रहे हैं. रखें भी क्यों न… गंगा-जमुनी तहजीब की विरासत उन्हें अपने पिता से जो मिली है. लाल बाबू के रोजे में परिवार पूरा साथ देता है। पत्नी गीतांजलि सहरी और इफ्तारी की तैयारी करती हैं तो बेटा करन, बेटी सदाक्षी और आराध्या दस्तरख्वान पर लाल बाबू का साथ देते हैं. शुरुआत के नौ रोजे तक ऐसा ही चलता है. इसके बाद अलविदा की सुबह यानी ईद से पूर्व फिर सहरी की सुगंध इस घर की देहरी में महकने लगती है और इफ्तार की खुशबू से सबको सराबोर कर देती है. और ईद वाले दिन ईद की सेवैयां खाने पूरा मोहल्ला इनके घर में इकठ्ठा हो जाता है और भाईचारे की अनूठी मिसाल यहां देखने को मिलती है.