गोमांस भक्षण का समर्थन करने और गोमांस भक्षियों को साथ रखने वाले ‘राष्ट्रवादी’ परिवार और सरेआम गोहत्या कर स्वयं को गोहत्यारों से जोड़ लेने वाली ‘कांग्रेस’ से कोई सम्बन्ध न रखने का संकल्प बार-बार मन में जाग रहा है ।
हम नहीं कहते कि दोनों दलों में कोई गुण नहीं है। बहुत कुछ अच्छा भी दोनों ने किया है या कर रहे हैं। पर गाय, गंगा तो सनातनी होने की पहचान है। इनके प्रति अपराध करने वाले को सहना हमारे लिए अब संभव नहीं हो पा रहा ।
गंगा जी की अविरल धारा के लिए हमने पूज्यपाद ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज की प्रेरणा से आन्दोलन किया। क्योंकि पूज्यपाद शंकराचार्य जी का कहना था कि कलियुग में गौ गंगा तुलसी ही तो हैं। यदि उनको भी हमने खो दिया तो सनातनियों के पास बचेगा ही क्या? पर तब कांग्रेस ने बात नहीं मानी और हमें उनसे निराशा हुई । फिर नरेन्द्र मोदी जी आए और उन्होंने ‘गंगा जी ने बुलाया है’ कहकर गंगा भक्तों में नई आशा का संचार किया । हमने भी आन्दोलन स्थगित रखा कि इन्हें समय मिले। पर तीन वर्ष बीत जाने पर भी गंगा जी की अविरल धारा के बारे में क़ोई निर्णय न होता देख और केन्द्र द्वारा गंगा जी पर बन रहे अविरल धारा के बाधक बांधों को अनेक विशेषज्ञों के विरोध और समितियों की विपरीत आख्या के बावजूद हरी झंडी दिखाये जाने से निराशा उत्पन्न हुई है ।
अब केरल की घटना सामने आई है जिसका देशव्यापी विरोध हो रहा है । पर कांग्रेस से नाराज लोग कहाँ जायें? भाजपा तो खुद गोमांस खाने की खुलेआम घोषणा करने वाले को केन्द्र में मंत्री बनाये हुये है और उसकी आधार संस्था संघ कहती है कि ‘उसके हजारों स्वयं सेवक गोमांस खाते हैं ‘। ऐसे में गोसम्मान के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ भाजपा से जुड़ना कुएँ से निकल खाई में गिरने जैसा है । अतः गो गंगा आदि सनातनी मानबिन्दुओं के प्रति भाव रखने वालों के लिए विकल्प हीनता की स्थिति है ।
पर विकल्प नहीं है यह सोचकर हम किसी गलत संस्था से क्यों जुड़ें? यदि सनातनी भावना वाले लोग संगठित हुये तो ‘सनातनी विकल्प’ भी तैयार हो सकता है ।
यद्यपि यह बहुत कठिन है पर हमें अपनी अन्तरात्मा की आवाज पर यह करना ही होगा कि उपर्युक्त दोनों राजनीतिक संगठनों से परहेज आरम्भ किया जाये ।
हो सकता है कि हमारे विचार से कम लोग सहमत हों पर अधिक लोगों के साथ के चक्कर में हम अपनी अन्तरात्मा को कैसे मार दें? एक भी व्यक्ति साथ आया तो हम स्वयं को सफल समझेंगे । यदि एक भी न आया तो भी कोई चिन्ता नहीं क्योंकि तब भी मन इस बात का गौरव अनुभव करेगा ही कि हमने सिद्धान्तों से समझौता नहीं किया ।
यह आत्म गौरव भी जीवन जीने के लिए काफी होगा । ऐसा हम समझते हैं ।
अविमुक्तेश्वरानन्दः
(शिष्य-प्रतिनिधि ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारकाशारदापीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज)