[vc_row][vc_column][vc_column_text title=”आपके मन में कथा करने का विचार कैसे आया”]परंपरा से हमारे परिवार में कोई कथाकार नहीं था। मेरे दूर के चाचा थे वो कथावाचक थे, जदो हमें भागवत में ले जाते थे, वहां से श्रीमदभागवत के प्रति लगवा हुआ। माताजी बताती है कि परिवरा में श्रीमद का आयोदन हुआ था और उसके चार महीने बात मेरा जन्म हुआ और तुम सुनकर आए हो माता के उदर से, तो मैं समझता हूं कि संस्कार हैं मेरे अँदर। बनना था डाक्टर, कर लिया कामर्स से ग्रेजुएशन, जो अनुराग था वो श्रीमद के पर्ति वो अंत में जाकर खींचकर ले आया। भगवान के अपनी सेवा में लगा लि.ा[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=”कथा करने से क्या धर्म का प्रचार होता है, या ये जीवन मूल्यों को बढ़ाता है ( रमेश भाई ओझा )”]धर्म ही मूल्य है, धर्म कर्मकांड नहीं है। धर्म का मतलब केवल कर्मकांज नहीं है, वो धर्म का वाह्य स्वरूप है। धर्म के द्वारा जो मूल्.ों की प्रतिष्चा होती है उसी के द्वारा अपना और समाज के कल्यान होती है। कथा उसी भागवत धर्म का निरुपण करती है। सत्य नहीं है, दया, करुणा, परमार्थ नहीं तो धर्म नहीं है। धर्मेण हीना पशुना समाना। श्रीमद उसी भागवत धर्म का संदेश है[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=”कथा सुनने के सकारात्मक प्रभाव क्या होते हैं”]
[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=” क्या वक्त के साथ कथा ने स्वरूप बदला है”]निश्तित रूप से बदला है, और बदलेगा स्मेंवाभाविक है। गंगा जब गंगोत्री से निकलती है। जिसमें भी गतिशीलता है उसमें परिवरत्नशीलता भी होगी। वो स्वरूप रोचक तो हो ही हो, उसके साथ कल्याणकारी हो, और शास्त्र की मर्यादा में रहकर हो, तो ऐसा जो परिवर्तन वो बिल्कुल उसका [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=”क्या वक्त के साथ साथ कथा बरकरार रहेगी”]चाहे उसका स्वरुप बदलेगा, लेकिन कथा तो बरकरार रहेगी, चाहे वो प्रवचन के रुप में हो, लेकिन इसका जो मूल संदेश है वो तो रहेगा हमेशा, क्योंकि जबतक जीवन है तबतक प्यास भी लगेगी, और जबतक प्यास है पानी कभी आउट आफ डेट नहीं हो सकती है, कथा गंगाजल ही है वो कभी आउट आफ डेट नहीं होगी।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=” कथा को लोकप्रिय किसने बनाया, टीवी ने या लोगों के भक्ति भाव ने “]टीवी के माध्यम से अनेक लोगों तक कथा पहुंती। लेकिन एक बात मैं कहूं जहां तक सौराष्ट्र का और हमारे गुजरात का, उस प्रांत का प्रश्न है, जब टीवी चैनल नहीं हुआ करती थी, तब भी जनता इतनी ही थी, पूज्य डोंगरी जी महाराज की कथा में तो संगीत भी नहीं हुआ करता था, व्यास पद्धति से कथा होती थी, तब भी जनता इतनी बड़ी संख्या में लाखों लोगों की संख्या में होती थी। टीवी चैनलों ने जरूर ये काम किया कि केवल व्यास पीठ के समक्ष बैठे लाखों हजारों लोगों तक ही नहीं जो जहां हैं वहां और लाखों लोगों तक ये संदेश पहुंचता है। ये प्रधान काम है इसका। [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row][vc_row][vc_column][vc_column_text title=”क्या कथा संसाधनों का ज्यादा उपयोग नहीं है”]जितनी बड़ी तादाद में लोग इक्टठे होंगे, उस हिसाब से कुछ व्यवस्थाएं भी अनिवार्य हो जाती है। अब नैमिशारण्य तो रहा नहीं, पंडाल बनाना ही पड़ेगा. छांव में बैठने के लिए। हर कथा गोमती, गया, गंगा के तट पर तो होती नहीं, तो जहां कथा हैं वहां पानी की व्यवस्था तो करनी पडेगी ( रमेश भाई ओझा )। जहां इतनी बड़ी संख्या में लोग आएंगे तो इंतजाम करानी पड़ेगी। लेकिन मैं एक बात जरूर कहूंगा कि इसमें राजसिकता ज्यादा न हो इसके सात्विकता का जो दर्शन है, वो बना रहें ये प्रयास हम लोगों का होना चाहिए। [/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]