नौ देवियाँ नौ रहस्य: जानिए प्रथम देवी मां शैलपुत्री की आराधना का रहस्य
रिलिजन वर्ल्ड आज से नवरात्री के अंतिम दिन तक के लिए नौ देवियाँ नौ रहस्य के नाम से एक सीरीज शुरू कर रहा है. जिसमे आपको माँ दुर्गा के 9 रूपों के रहस्य और उसकी कथा की जानकारी दी जाएगी.
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ॥
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
नवरात्रि के पावन पर्व पर मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना बहुत ही विधि-विधान से की जाती है. देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं. दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं. ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं.
रहस्य माँ शैलपुत्री की आराधना का
पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. नवरात्र-पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है. इस प्रथम दिन की उपासना में योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं. यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है.
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क्या है कथा माँ शैलपुत्री की
एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया. इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया. सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा.
अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बताई. सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं. अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है. उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है. ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा.’
शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ. पिता का यज्ञ देखने, वहां जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी. उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी.
सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बात नहीं कर रहा है. सारे लोग मुंह फेरे हुए हैं. केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया. बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे.
परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत ठेस पहुंची. उन्होंने यह भी देखा कि वहां चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है. दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे. यह सब देखकर सती का मन क्षोभ और क्रोध से भर उठा. उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है.
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं. उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया. वज्रपात के समान इस दु:खद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णत: विध्वंस करा दिया.
सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया. इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं. उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।