किसने बनाया था गणेशोत्सव को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक ?
देशभर में गणेश चतुर्थी का त्योहार आज धूमधाम से मनाया जा रहा है. आज के दिन प्रथम पूज्य को मनाने के लिए लोग हर तरह का जतन करते है. देश में चाहे नेता हो या अभिनेता या फिर एक साधारण व्यक्ति सब मिलकर गणेश जी विघ्नहर्ता की विशेष पूजा करते है और इस त्योहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है. देश में विशेष तौर पर महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी पर पूजा की जाती है. मुम्बई में शिवसेना अध्यक्ष बाला साहेब ठाकरे ने अपने समय में गणेश चतुर्थी को विशेष तरजीह दी थी और वहीं रीति आज उनका परिवार निभाते आ रहा है.
यह भी पढ़ें – क्या हैं विशेष इस वर्ष 2017 के भगवान गणेश महोत्सव में
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस पब्लिक फंक्शन को शुरू करने में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को काफी समस्याओं और विरोध का सामना करना पड़ा था. सन् 1894 में कांग्रेस के उदारवादी नेताओं के भारी विरोध की परवाह किए बिना लोकमान्य तिलक ने इस गौरवशाली परंपरा की नींव रख ही दी. बाद में सावर्जनिक गणेशोत्सव स्वतंत्रता संग्राम में लोगों को एकजुट करने का जरिया बना.
यह भी पढ़ें – इस गणेश चतुर्थी करें इको फ्रेंडली गणेशा का स्वागत
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तिलक के मन में हमेशा यह विचार चलते थे की कैसे लोगों को एक साथ लाया जाए. उन्होंने इस पर सोचते हुए यह विचार किया की क्यो ना गणेशोत्सव को सार्वजनिक तौर पर मनाया जाए. ताकि इसमें हर जाति के लोग शिरकत कर सके, एक हो सकें और उनके साथ देश की आजादी को लेकर चर्चा की जा सके. विघ्नहर्ता गणेश की पूजा भारत में प्राचीन काल से होती रही है. हालांकि पेशवाओं ने गणेशोत्सव को बढ़ावा दिया.
कहते हैं कि पुणे में कस्बा गणपति नाम से प्रसिद्ध गणपति की स्थापना शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई ने की थी. परंतु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेशोत्सव को को जो स्वरूप दिया उससे गणेश राष्ट्रीय एकता के प्रतीक बन गये.
वीर सावरकर और कवि गोविंद ने नासिक में गणेशोत्सव मनाने के लिए मित्रमेला संस्था बनाई थी. इसका काम था देशभक्तिपूर्ण मराठी लोकगीत पोवाडे आकर्षक ढंग से बोलकर सुनाना. पोवाडों ने पश्चिमी महाराष्ट्र में धूम मचा दी थी. कवि गोविंद को सुनने के लिए भीड़ उमड़ने लगी. लिहाजा, गणेशोत्सव के जरिए आजादी की लड़ाई को मजबूत किया जाने लगा. इस तरह नागपुर, वर्धा, अमरावती आदि शहरों में भी गणेशोत्सव ने आजादी का आंदोलन छेड़ दिया था.
ऐसा भी कहा जाता है की सार्वजनिक गणेशोत्सव से अंग्रेज घबरा गए थे. गणेशोत्सव के दौरान युवकों की टोलियां सड़कों पर घूम-घूम कर अंग्रेजी शासन का विरोध करती थी और ब्रिटेन के खिलाफ गीत गाती थी. स्कूली बच्चे पर्चे बांटते हैं. जिसमें अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाने और शिवाजी की तरह विद्रोह करने का आह्वान होता था. सार्वजनिक गणेशोत्सवों में भाषण देने वाले में प्रमुख राष्ट्रीय नेता तिलक, सावकर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, रेंगलर परांजपे, मौलिकचंद्र शर्मा, दादासाहेब खापर्डे और सरोजनी नायडू होते थे.
@religionworldin
[video_ads]
[video_ads2]