सौजन्य – Rajya Sabha TV
सौजन्य – PhiloSophic
खुदा पर लिखी गई मिरजा गालिब की शायरी..
◆रहमत भी है मोहताज तेरी, मेरे गुनाहों की
मेरे बगैर तू भी खुदा हो नहीं सकता।
———————————–
◆खुदा ऐसे एहसास का नाम है
रहे सामने और दिखाई ना दे।
———————————–
◆यही है जिंदगी अपनी यही है बंदगी अपनी
कि उसका नाम आया और गर्दन झुक गई अपनी।
———————————–
◆बेखुदी में हम तो तेरा दर समझ कर झुक गए
अब खुदा मालूम वो काबा था या बुतखाना।
———————————–
◆मैं रोज गुनाह करता हूं वो रोज बक्श देता है
मैं आदत से मजबूर हूं वो रहमत से मशहूर है।
———————————–
◆आशिकी से मिलेगी ए-जाहिद
बंदगी से खुदा नहीं मिलता।
———————————–
◆मिट जायेगा गुनाहों का तसव्वुर इस जहां से
अगर यकीन हो जाए कि खुदा देख रहा है।
———————————–
◆तेरा करम आम है दुनिया के वास्ते
मैं कितना ले सका ये मुकद्दर की बात है।
———————————–
◆जब कि तुझ बिन कोई नहीं वजूद
फिर ये हंगामा ए खुदा क्या है।
———————————–
◆पीने दे शराब मुझे मस्जिद में बैठ कर
या वो जगह बता जहां खुदा नहीं।
———————————–
◆हर जर्रा चमकता है अनवर ए इलाही से
हर सांस यह कहती है हम हैं तो खुदा भी है।
———————————–
◆”दाग” को कौन देने वाला था
मुझको जो दिया हे खुदा दिया तूने।
———————————–
◆एक मुद्दत के बाद हमने यह जाना ए खुदा
एक तेरी जात से इश्क सच्चा बाकी सब अफ़साने हैं।
———————————–
◆वही रखेगा मेरे घर को बुलाओ से महफूज
जो शजर से घोसला गिरने नहीं देता।
———————————–
◆”ग़ालिब”ने यह कह कर तोड़ दी तस्बीह
गिनकर क्यों लूं उसका नाम जो बेहिसाब देता है।
———————————–
◆मेरे रब की रहमत का भी अंदाज है निराला
सब कुछ देख कर कहता है कोई है मांगने वाला।
———————————–
◆गुनाह गिनकर मैं क्यों अपने दिल को छोटा करूँ
सुना है तेरी रहमत का कोई हिसाब नहीं।
———————————–