योग का अर्थ, पद्धति, शैलियाँ और नियम
किसी भी व्यक्ति द्वारा अपने ज्ञान प्रयोग अपने कार्य को सर्वोच्च बनाने मे करना योग है. अपने मन को व्यर्थ कार्यों से हटाकर सही दिशा से जोड़ना भी योग है. ज्ञान का अर्थ प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थिति अनुसार अलग अलग हो सकता है.
इसलिये ज्ञान की प्रकाशक सर्वश्रेष्ठ पुस्तक के सारे अध्यायों को “योग” नाम दिया गया है जिसे योग की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक माना जाता है और वह श्रीमदभगवत “गीता” है. जिसमे योग को “योग कर्मशुकौसलम्”कहकर परिभाषित किया गया है.
कर्म मे कुशलता परिपूर्णता ही योग है.