धूल होली के बाद भी बृज में होली की खुमारी उतरने का नाम नहीं ले रही है, और आज इसी खुमारी के क्रम के बृज के राजा कहे जाने वाले बलदाऊ जी की नगरी बलदेव में हुरंगे का आयोजन किया गया। बलदेव के मुख्य दाऊजी मंदिर प्रांगण में खेले गये इस हुरंगे में भाभी द्वारा देवर के कपडे फाड़ कर उनको कोड़े बना कर प्यार भरी तीखी नौक-झोंक के बाद जमकर पीटा जाता है ।
इस होली को ब्रज के राजा का हुरंगा या होली के लहजे में कहे तो होली का पर्व हुरंगा के साथ साथ कपड़ा फाड़ होली के नाम से भी जाना जाता है। इस हुरंगे का तब तक समापन नही होता जब तक मंदिर के शीर्ष ध्वजा तक इंद्रधनुषी छटा नही छा जाती। इसे देखने के लिए देश विदेश से लोग यहाँ पहुँचते है और इसे ट्रेडिशनल होली कहते है।
मंदिर प्रांगण में खेली जाने वाली इस होली का यहाँ व्यापक रूप देखने को मिलने की वजह से इसे हुरंगा कहा जाता है। इस होली की परम्परा ये रही है कि इसमें मंदिर के सेवायत परिवारों की महिलाऐं और पुरुष ही शामिल होते है। सबसे पहले मंदिर प्रांगण में इकठ्ठा हुई हुरियारिन भाभी और हुरियारे देवर बलदाऊ जी के मुख्य भवन की परिक्रमा करते है और जैसे ही मंदिर के मुख्य भवन के अन्दर से ऊंची केसरिया झंडी बाहर प्रांगण में आती है, तो यहाँ मौजूद हुरियारिन भाभी अपने हुरियारे देवरों के कपडे फाड़ना शुरू कर देती है। इसके बाद इन कपड़ों को टेसू के फूलों से बने रंगों में भिगोया जाता है और फिर भाभी इसे कोड़ा बनाकर देवर को मारती है।
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अपना बचाव करने के लिये देवर भी बाल्टी में रंग भरकर भाभी के ऊपर डालते है। हुरंगे के दौरान हुरियारे इतने उत्साहित हो जाते है कि वह कभी अपने साथियों को कंधे पर बिठा लेते है और कभी उने गिरा देते है। इस दौरान लगातार कपडे के बनाये हुए कोड़े से हुरियारिन इन ग्वालों पर वार करती रहती है। इसे देखकर यहाँ आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक भाव विभोर हुए बिना नहीं रह पाते। बरसाना और नन्दगाँव की ही तरह यहाँ के हुरंगे में भी हुरियारिन हुरियारों पर हावी रहती है, लेकिन यहाँ लाठियों से नहीं बल्कि हुरियारों के कपडे फाड़कर बनाये गये कोड़ों से ही हुरियारिन भाभी अपने हुरियारे देवरों को इस होली का मजा चखाती है। यह होली कृष्ण ने अपने सखाओ के साथ अपनी भाभी दाऊजी की घरवाली से खेली थी इसी लिए यह देवर भाभी की होली होती है ।
देखिए खास वीडियो होरंगा का..
इसे होली नहीं हुरंगा है कहते है। कहा जाता है कि बरसाना, नन्द गाँव और गोकुल की लठमार होली खेलने के बाद बलदाऊ जी ने पूरे ब्रज के सभी गोपी और ग्वाल बालों से कहा की आप हमारे यहाँ आओ हम तुम्हें क्षीरसागर में नहलायेंगे, माखन मिश्री खिलाएंगे और आप की होली की थकान दूर करेंगे। इस पर सभी गोपी और ग्वाल-बाल बलदेव पहुंचे और वहाँ जा कर देखा तो पानी के अलावा कोई व्यवस्था नही थी और बलदाऊ भांग के नशे में मस्त थे, ड्रमों में पानी भरा था। फिर क्या था गोपी गुस्से में आ गयी और बलदाऊ जी सहित सभी ग्वालों के कपड़े फाड़ कर उनके कोड़े बना कर जम कर उनकी मरम्मत कर दी तब से लेकर आज तक उसी परम्परा का निर्वहन करते हुए बलदाऊ जी के हुरंगा का आयोजन किया जाता है। इसमें देश विदेश से हजारों हजारो की संख्या में लोग भाग लेते है। राजा का हुरंगा होने के लिए मंदिर प्रशासन भी इसके लिए बड़े इंतज़ाम करते है। 21 कुंतल फूलो की पत्ती, 11 कुंतल टेसू व केसर के फूल से बने रंग का इस्तेमाल होता है। राजा के हुरंगे के साथ ही 45 दिन से चलने वाली ब्रज की होली का समापन होता है ।
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