ग्रह नक्षत्र के कारण होता है नौकरी में तबादला
- ज्योतिष का व्यापक अध्ययन पेशेवर जीवन के बारे में सटीक जानकारी देता है।
- ज्योतिष की दृष्टि से तबादले दो प्रकार के होते हैं – इच्छित और अनिच्छित
किसी भी नौकरी में तबादला एक सामान्य प्रक्रिया है। कुछ वर्ष एक ही स्थान पर कार्यरत् रहने के उपरांत नियुक्त व्यक्ति का स्थानांतरण होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि कई बार इस तरह के तबादले अपनी इच्छा के अनुरूप होता है तो कई बार लोगों को अपना घर-परिवार छोड़कर अनिच्छा से नए स्थान पर जाकर योगदान देना पड़ता है। ये तबादला पदोन्नति और कुछ आर्थिक लाभ के साथ भी हो सकता है अथवा समान पद पर रहते हुए बिना आर्थिक लाभ के भी स्थानांतरण हो सकता है।
ज्योतिष की दृष्टि से तबादले दो प्रकार के होते हैं – इच्छित और अनिच्छित। जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव के स्वामी या चतुर्थ भाव से संबंधित ग्रहों की दशाओं में तबादले के योग बनते हैं। चतुर्थ भाव या चतुर्थ भाव से संबंधित ग्रह शुभ हो तो इच्छित स्थान पर तबादला होता है और अशुभ ग्रह होने पर प्रतिकूल स्थान पर स्थानान्तरण होता है।
मंगल व सूर्य का गोचर भी तबादले के योग बनाता है। यदि मंगल या सूर्य जन्मकुंडली के दशम भाव अथवा प्रथम भाव से गोचर में परिभ्रमण करते हैं, तब स्थानान्तरण के योग बनते हैं। कुंडली के चतुर्थ भाव व सप्तम भाव पर भी मंगल व सूर्य का भ्रमण तबादले के योग बनाता है। परन्तु दशम भाव व प्रथम भाव को अधिक महत्वपूर्ण माना गया है।
लग्न भाव ( प्रथम भाव में) 1,4,7,10 चर राशियां होने पर व्यक्ति का स्थानान्तरण जल्दी-जल्दी होता है। प्रथम भाव में 2,5,8,11 स्थिर राशियां होने पर व्यक्ति का विशेष स्थान से लगाव होने के कारण स्थानान्तरण होने पर पदोन्नति को भी छोड़ देता है। 3,6,9,12 द्विस्वभाव राशियां प्रथम भाव में हो तो व्यक्ति पदोन्नति होने पर ही तबादला चाहता है अन्यथा नहीं।
ज्योतिष शास्त्र से किसी भी व्यक्ति के जन्म का समय, स्थान, दिन आदि से उसके भविष्य, व्यक्तित्व, कार्यक्षेत्र आदि के बारे में काफी कुछ अंदाजा लगाया जा सकता है।
किसी भी जातक की जन्म कुंडली का लग्न भाव दशम भाव चौथा भाव खासकर तीसरा भाव ,बारवा भाव, छठा भाव तथा इनके भाव के स्वामियों को कुंडली में विशेष रूप से देखना होता है ।इसके पश्चात गोचर में ग्रहों की स्थिति को देखना होता है गोचर में प्रमुख ग्रहण शनि तथा मित्र ग्रह शुक्र बुध राहु से पहला भाग दूसरा भाव छठा भाव नवा भाव दसवां भाव 11 भाव इनसे अगर नवपंचम योग करता है तब अनुकूल स्थान पर ट्रांसफर होता है। तबादले या ट्रांसफर के परिणाम हेतु गोचर के गुरु ग्रह को भी जन्म कुंडली में देखना होता है।
अगर गुरु ग्रह जन्म कुंडली के दशम भाव पर स्थित राशि पर से भ्रमण करता है तो अनुकूल स्थानांतर इस समय होता है। इस तरह से कुंडली में महादशा अंतर्दशा ऊपर बताए हुए ग्रहो की चलती है अर्थात ऊपर बताए हुए भावों के स्वामियों की जब महादशा अंतर्दशा चलती है उस समय उनके संबंध एक दूसरे से बनते हैं तब ट्रांसफर के योग बनते है। कुंडली में शनि इसका कारक है अतः शनि की स्थिति पर देखते हैं साथ-साथ में ऊपर बताए गए भाव तथा उनके स्वामियों को वर्ग कुंडलियों में भी देखते हैं।
मुख्य रूप से तीसरा भाव और 12th भाव तबादले में मुख्य भूमिका निभाते हैं तथा इनके तीसरे भाव और बारहवें भाव के स्वामियों के बीच में अगर संबंध स्थापित होते हैं तब ट्रांसफर के योग बनते हैं ऊपर बताए भावो का अगर चौथा भाव प्रभावित होता है तो नौकरी में स्थान परिवर्तन होता है और वह सुखदाई होता है ।
पदोन्नति के लिए सातवें भाव को देखा जाता है और आर्थिक लाभ के लिए अगर उनके धन भाव और लाभभाव से संबंध बनता है तो वह हमें आर्थिक लाभ दिलाता है ।
कुंडली के दशम भाव को नौकरी और करियर का कारक भाव माना जाता है। कुंडली के दशम भाव को नौकरी और करियर का कारक भाव माना जाता है।
वैदिक ज्योतिष मेंं किसी भी ज्योतिषी गणना के लिए कुछ सामान्य मापदंड होते हैं, विषय से संबंधित भाव व सहायक भाव, विषय से संबंधित कारक ग्रह, दशा-महादशा/ अंतर्दशा/ प्रत्यंतर दशा व गोचर का अध्ययन करना।
जन्म कुण्डली के बाहरवें भाव में से तबादलेे का संबंध मुख्य रूप से चतुर्थ भाव से है, जन्म कुण्डली के चतुर्थ भाव के स्वामी या चतुर्थ भाव से संबंधित ग्रहों की दशाओं व अंतर्दशाओं में तबादले के योग बनते हैं। सहायक भाव में तीसरा, छठा, दसवां व बाहरवांं भूमिका निभाते हैं ।
जन्मकुंडली मेंं चतुर्थ भाव या चतुर्थ भाव से संबंधित ग्रह शुभ होंं या तो उचित स्थान पर हों तो स्थानांतरण इच्छा के अनुरूप होता है और अशुभ ग्रह होने पर प्रतिकूल स्थान पर या अनिच्छा से स्थानांतरण होता है। इसके अलावा ट्रान्सफर में सहायक भाव की बात करें तो तीसरा, छठा, दसवां व बारहवां भूमिका निभाते हैं तथा इनके स्वामियों के बीच में अगर किसी भी तरह से योग बनता है तब ट्रांसफर के योग बनते हैं।
स्थानांतरण के साथ यदि पदोन्नति का विश्लेषण करना हो तो जन्मकुंडली के सातवें भाव को देखा जाता है साथ ही आर्थिक लाभ के लिए कुंडली के दूसरे व ग्यारहवें भाव का भी अध्ययन किया जाता है। गोचर में सूर्य व मंगल भी तबादले के योग बनाते हैं। यदि मंगल में सूर्य जन्म कुंडली के दशम भाव अथवा प्रथम भाव पर गोचर से परिभ्रमण करते हैं तब तबादले के योग बनते हैं। कुंडली के चतुर्थ भाव व सप्तम भाव पर भी मंगल व सूर्य का भ्रमण तबादले के योग बनाते हैं। नौकरी में बार-बार ट्रांसफर कई बार समस्या भी बन जाता है।
ज्योतिष मे स्थानांतरण का विश्लेषण जन्मकुंडली के आधार पर करने के लिए इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है। स्थानांतरण इच्छा के अनुरूप होगा या नहींं ऐसे मेंं जो शुभ ग्रह कमजोर हैं उन्हें बलवान करने के उपाय और अशुभ ग्रहों को शांत करके इन समस्याओं का अंत किया जा सकता है। सूर्य ग्रहों का राजा हैैै। दशम भाव में इसकी उपस्थिति प्रभावी मानी गई है।
कारक ग्रहों की बात करें तो सूर्य सभी ग्रहों में श्रेष्ठ, मुख्य व राजा है इसलिए जब यह नौकरी को दर्शाता है तो वह नौकरी में ऊंंचें दर्जे की व्यापक, सरकारी व अर्द्ध सरकारी, प्रशासनिक व अच्छी पूंजी वाली होती है।जन्मकुण्डली में स्थित सूर्य से शनि, हर्षल ,नेप्च्यून ग्रहों का संबंध होने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा को धक्का पहुंचा कर तुरन्त स्थानान्तरण करवा देता है।यदि जन्म कुंडली में शनि तुला ,मकर अथवा कुंभ राशि में हो तो उस व्यक्ति का स्थानान्तरण बहुत कम होता है और वह उसी स्थान से सेवानिवृत्त होता है।
अतःग्रहाधीन योग होने के कारण यदि व्यक्ति अनुकूल ग्रहयोग होने के समय यदि तबादले के लिए प्रयत्न करता है तो उसे शीघ्र सफलता मिल जाती है। जातक की नौकरी का निर्णय उसकी कुंडली के ग्रहों की प्रवृत्ति, बल आदि पर निर्भर करता है। इसी कारण सूर्य के साथ ही जिस नौकरी के स्थानांतरण का विश्लेषण करना है वह किस ग्रह से संबंधित है यह भी अध्ययन किया जाता है।
लग्नेश की दशमेश की तथा उच्च के ग्रह की महादशा/अंतर्दशा चल रही हो तो भी ट्रांसफर ज्यादा होते हैं।
लग्नेश की दशमेश की तथा उच्च के ग्रह की महादशा/अंतर्दशा चल रही हो तो ऐसी स्थिति में स्थानांतरण होने की संभावना अधिक होती है, साथ ही दसवें और बारहवें भाव या उनके स्वामियों की महादशा/अंतर्दशा मे ट्रांसफर जन्म स्थान से बहुत दूर व विदेश मे भी हो जाता है।
करियर में उतार-चढ़ाव के लिए ग्रहों की अंतर्दशा जिम्मदार होती है।
लेख और गणना – पण्डित दयानन्द शास्त्री