दशनामी संन्यासी परम्परा
आपने संन्यासियों के नाम के अंत में भारती, सरस्वती, आश्रम, तीर्थ, सागर, गिरि इत्यादि का प्रयोग सुना होगा जैसे स्वामी सत्यमित्रानन्द गिरि, स्वामी रामानंद तीर्थ, स्वामी गौरीश्वरानंद पुरी, स्वामी दयानन्द सरस्वती। इस परम्परा को आदिशंकराचार्य ने स्थापित किया। सागर, गिरि, पुरी इत्यादि भौगोलिक इकाइयों के नाम सन्यासियों के नाम के साथ क्यों जोड़ा ?
दशनामी संन्यासियों का आधार
आदिशंकर ने भारत के भौगोलिक मानचित्र का देखा कि भारतवर्ष दस अलग भौगोलिक इकाइयों में फैला है। इन इकाइयों में फैले हुए भारत को राष्ट्रीयता के संस्कार देने और संगठित करने के लिए दशनामी संन्यासियों की परम्परा को स्थापित किया। राष्ट्र नदी किनारे तीर्थों में, वनो में, अरण्यों में, पर्वतीय क्षेत्रों में, नगरों में, इत्यादि दस इकाइयों में बसा हुआ है। इनके लिए दशनामी संन्यासियों का आधार बनाया।
तीर्थाश्रमवनारण्यगिरिसागरपर्वताः।
सरस्वती पुरी चैव भारती च दशक्रमात्॥
इस श्लोक में तीर्थ, आश्रम, वन, अरण्य, गिरि, सागर, पर्वत, सरस्वती, पुरी, और भारती ऐसे दस नाम आते हैं जिन्हें आगे विस्तार से परिभाषित किया
तीर्थ नामी संन्यासी तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा कर समाज को संस्कारित किया करते थे।
आश्रम नामी संन्यासी, भिन्न भिन्न मठों एवं आश्रमों से सम्बंध रखते हुए देश में घूमते थे।
वन नामी संन्यासी वनों मे रहकर और घूमकर वनवासियों का मार्गदर्शन करते थे।
अरण्य नामी संन्यासी घने अरण्यों में संचार कर अरण्य वासियों को भी राष्ट्रीयता से जोडे रखते थे।
गिरि नामी संन्यासी पर्वतीय प्रदेशों में भ्रमण कर वहाँ बसे गिरिवासियों को मुख्य धारा से जोड रखते थे।
सागर नामी संन्यासी, सागर-तटस्थ प्रजा की देखभाल कर संस्कार करने वाले होते थे।
पर्वत नामी संन्यासी दुर्गम पर्वतीय प्रदेशों में भ्रमण कर पर्वतीय प्रजा जनों का भी सम्पर्क बनाए रखते थे।
सरस्वती नामी संन्यासी विद्यालयों और आश्रमों में सरस्वती की उपासना करने वालों से सम्पर्क रखने वाले होते थे।
पुरी नामी नामी संन्यासी नगर-निवासियों को उपदेश देने वाले हुआ करते थे।
भारती नामी संन्यासी किसी भी एक भू-भाग में सीमित ना रहते हुए अखिल भारत में भ्रमण करने वाले होते थे।
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