त्रिदोष सिद्धांत की पहली सीरीज में आपको वात दोष के बारे में जानकारी दी गई थी. आज दूसरी सीरीज में आपको त्रिदोष के दूसरे दोष पित्त दोष के बारे में बतायेंगे. तो आइये जानते हैं-
पित्त दोष क्या है
आयुर्वेद में पित्त का वर्णन खट्टापन, नमी, गर्मी, ऊर्जा, तेज और अग्नि से किया गया है. पित्त मेटाबोलिज्म और शरीर में होने वाले परिवर्तन को नियंत्रित करने के लिए तीन दोषों में से एक है.
पित्त मन और शरीर में सभी गर्मी, चयापचय और परिवर्तन को नियंत्रित करता है. यह इस बात का नियंत्रण करता है कि हम खाद्य पदार्थों को कैसे पचाते हैं. पित्त शरीर के महत्वपूर्ण पाचन “अग्नि” को नियंत्रित करता है.
पित्त दोष के कारण
निम्न कारणों से पित्त दोष संभव है –
कड़वा, खट्टा, गर्म अधिक मिर्ची वाले भोजन का सेवन करना
तला व तेज मसालेदार भोजन करना
नशीले पदार्थों का सेवन करना
ज्यादा देर तक तेज धूप में रहना
अधिक नमक का सेवन करना
पानी का सेवन कम करना
वसा युक्त भोजन खाना
यह भी पढ़ें-आयुर्वेद के त्रिदोष सिद्धांत: वात, पित्त और कफ (प्रथम सीरीज)
पित्त के सामान्य लक्षण
यह पित्त के कुछ सामान्य लक्षण हैं-
अधिक भूख-प्यास
सीने में जलन, एसिडिटी
आँखे, हाथों व तलवों में जलन
त्वचा में दाने, मुहाँसे
पित्त की उल्टी
सिर दर्द, जी मचलाना
दस्त
मुख में कड़वा स्वाद
ज़्यादा गर्मी लगना
पित्त दोष को संतुलित रखने के उपाय
दूध, मक्खन और घी, ये तीनों ही पित्त को शांत करने के लिए सबसे अच्छे माने गए हैं.
हमेशा सुबह खाली पेट 2 गिलास गुनगुना पानी पिएं. शरीर में पित्त कम करने के लिए यह सबसे अच्छा उपाय है.
जीरा एक एंटीएसिड के रूप में काम करता है जीरा पाचन क्रिया में सुधार करता है. भुने हुए जीरे का पाउडर बनाकर खाना खाने के बाद एक गिलास पानी में मिलाकर लें.
इसके अलावा आप जीरे के दानों को पानी में उबालकर भी उसका सेवन कर सकते हैं. जीरा पित्त के संतुलन में काफी सहायक होता है.
आंवला पित्त के लिए सबसे अच्छा घरेलू उपचार में से एक है. आप दिन में एक आंवला फल खा सकते हैं.
आंवला पित्त, अम्लता को कम करता है और पाचन की प्रक्रिया को बेहतर बनाता है. आप आंवले के चूर्ण को रोज एक गिलास पानी के साथ लेने से आप पित्त की समस्या से निजात पा सकते हैं.
अजवाइन पित्त को शांत करती है। आप अपने दिन के खाने में अजवाइन का उपयोग करें.
हींग का सेवन करना बहुत फ़ायदेमंद है। हींग खाने से पित्त की समस्या से छुटकारा पा सकते. हाजमा खराब होने या पेट संबंधी अन्य विक़ार होने पर इसके चूर्ण का सेवन लाभदायक होगा.
तुलसी भी है पित्त के लिए उत्तम
आयुर्वेद में तुलसी को उत्तम माना गया है क्युकि यह शरीर की बहुत सी बीमारियों को ठीक करती है. पित्त दोष को संतुलित रखने के लिए नियमित रूप से 2-3 तुलसी के पत्ते चबाने से पित्त की समस्या दूर हो जाती है.
शरीर से पित्त को हटाने के लिए सेब, खुबानी, जामुन, चेरी, नाशपाती,संतरा, तरबूज, तरबूज, स्ट्रॉबेरी, अंजीर और अंगूर आदि फल फायदेमंद है.
ब्राह्मी बहुत ही अच्छी औषधि है पित्त दोष को संतुलित करने के लिए ब्राह्मी का उपयोग करे. ब्राह्मी अपनी ठंडी प्रवृत्ति के कारण शरीर में पित्त दोष को संतुलित करती है और शरीर को ठंडा रखती है.
ध्यान और योग से आप पित्त दोष को संतुलित रख सकते है. शरीर में पित्त दोष के लिए मुख्य स्थल छोटी आंत , यकृत (लीवर ) और नाभि क्षेत्र हैं, इसलिए नाभि पर ध्यान देना चाहिए.
आयुर्वेद के सिद्धांतों के अनुसार, इन क्षेत्रों को खोलने वाले आसन गर्मी और तनाव को छोड़ेंगे और पित्त कम करने में मदद करेंगे.
इसलिए, भुजंगासन ( कोबरा ), धनुरासन ( धनुष ),मत्स्यासन (मछली) विशेष रूप से पित्त के लिए वरदान है.
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