भारतीय पौराणिक दृष्टि से धनतेरस को आयुर्वेद के देवता का दिवस माना जाता है. भगवान धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं. भगवान धन्वंतरि से धनतेरस के दिन प्रार्थना की जाती है कि वे समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायु प्रदान करें.
धन्वंतरि आयुर्वेद जगत के प्रणेता
भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद जगत के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं. आदिकाल में आयुर्वेद की उत्पत्ति ब्रह्मा से ही मानते हैं. आदि काल के ग्रंथों में रामायण-महाभारत तथा विविध पुराणों की रचना हुई है, जिसमें सभी ग्रंथों ने आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख किया है.
आयुर्वेद ग्रंथों में भी है उल्लेख
भगवान धन्वंतरि प्रथम तथा द्वितीय का वर्णन पुराणों के अतिरिक्त आयुर्वेद ग्रंथों में भी छुट-पुट मिलता है. इसमें आयुर्वेद के आदि ग्रंथों सुश्रुत्र संहिता चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय में विभिन्न रूपों में उल्लेख मिलता है. इसके अतिरिक्त अन्य आयुर्वेदिक ग्रंथों भाव प्रकाश, शार्गधर तथा उनके ही समकालीन अन्य ग्रंथों में आयुर्वेदावतरण का प्रसंग उधृत है. इसमें भगवान धन्वंतरि के संबंध में भी प्रकाश डाला गया है.
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भगवन विष्णु का अंश
महाकवि व्यास द्वारा रचित श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार धन्वंतरि को भगवान विष्णु के अंश माना है तथा अवतारों में अवतार कहा गया है. महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण, श्रीमद भागवत महापुराणादि में यह उल्लेख मिलता है. कहा जाता है कि देव और असुर एक ही पिता कश्यप ऋषि के संतान थे. किंतु इनकी वंशवृद्ध अधिक हो गई थी अतः अधिकारों के लिए परस्पर लड़ा करते थे. वे तीनों ही लोकों पर राज्याधिकार चाहते थे. असुरों या राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य थे जो संजीवनी विद्या के बल से असुरों का जीवितकर लेते थे. इसके अतिरिक्त दैत्य दानव माँसाहारी होने के कारण हृष्ट-पुष्ट स्वस्थ तथा दिव्य शस्त्रों के ज्ञाता थे. अतः युद्ध में देवताओं की मृत्यु अधिक होती थी.
पुरादेवऽसुरायुद्धेहताश्चशतशोसुराः।
हेन्यामान्यास्ततो देवाः शतशोऽथसहस्त्रशः।
धन्वन्तरि क्यूँ कहलाये वैद्य
गरुड़ और मार्कंडेय पुराणों के अनुसार वेद मंत्रों से अभिमंत्रित होने के कारण वे वैद्य कहलाए. विष्णु पुराण के अनुसार धन्वन्तरि दीर्घतथा के पुत्र बताए गए हैं. इसमें बताया गया है वह धन्वंतरि जरा विकारों से रहित देह और इंद्रियों वाला तथा सभी जन्मों में सर्वशास्त्र ज्ञाता है. भगवान नारायण ने उन्हें पूर्व जन्म में यह वरदान दिया था कि काशिराज के वंश में उत्पन्न होकर आयुर्वेद के आठ भाग करोगे और यज्ञ भाग के भोक्ता बनोगे.
इस प्रकार धन्वंतरि का तीन रूपों में उल्लेख मिलता है।
समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वंतरि प्रथम.
धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय.
काशिराज दिवोदास धन्वंतरि तृतीय.
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