अहोई अष्टमी व्रत: यह व्रत दिलाता है गर्भपात के महापाप से मुक्ति
अहोई अष्टमी का व्रत संतान की संबंधी सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है। इतना ही नहीं अहोई अष्टमी का यह व्रत गर्भपात जैसे महापाप से भी मुक्ति दिलाता है। इस व्रत में अहोई माता की पूजा करने के बाद चंद्रमा की जगह तारों को अर्घ्य दिया जाता है। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार सभी तारें माता अहोई की संतान हैं और महिलाएं उनसे कामना करती हैं कि उनके बच्चे भी तारों के समान ही दुनिया में उनका नाम रोशन करें।
गर्भपात के महापाप से मुक्ति दिलाता है यह व्रत
अहोई अष्टमी का व्रत संतान की लंबी आयु और उसे हर प्रकार की परेशानी से बचाने के लिए किया जाता है। इस दिन नवविवाहित महिला भी संतान की कामना से व्रत रखती हैं। आज के वर्तमान समय में कई महिलाएं या तो जल्दी मां नहीं बनाना चाहती। जिसकी वजह से वह गर्भपात करा लेती हैं। लेकिन शास्त्रों के अनुसार इसे पाप माना गया है और यह पाप उनका अगले जन्म तक भी पीछा नहीं छोड़ता है। इस पाप की वजह से उन्हें आने वाले समय में भी संतान सुख की प्राप्ति नही होती। जिसकी वजह से उन्हें बांझपन का सामना भी करना पड़ता है। जिसकी वजह से उस महिला का समाज में तिरस्कार होता है।
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लेकिन पुराणों के अनुसार अहोई अष्टमी के व्रत को संतान से जोड़कर देखा जाता है और इस व्रत को करने से संतान संबंधी सभी परेशानियां दूर हो जाती है। यदि किसी स्त्री ने अपना गर्भपात कराया है तो उसे अहोई अष्टमी का व्रत पूरे विधि विधान से अवश्य करना चाहिए। क्योंकि अहोई अष्टमी का व्रत करने से संतान दोष समाप्त हो जाता है और उस स्त्री को इस पाप से मुक्ति मिल जाती है। यदि कोई भी स्त्री जानबूझकर गर्भपात कराती है तो उसे शास्त्रों के अनुसार हत्या का दोषी माना जाता है और वह पाप की भागीदार बन जाती है। इस प्रकार के पाप की करने वालों को नर्क में कई यातनाओं से गुजरना पड़ता है।
ज्योतिषाचार्य सुंदर पाठक के अनुसार इस पाप की सजा गरूड़ पुराण के अनुसार भी बहुत भयानक बताई गई है। मनुसुति और अग्निपुराण के अनुसार यह पाप ब्रह्म हत्या के पाप के बराबर बताया गया है। जिसका कोई भी प्रायश्चित नही है। जिसे महापाप की श्रेणी में रखा जाता है। क्योंकि यह पाप स्वंय एक अजन्में बालक की माता करती है। जिसक कोई भी दोष नही होता। इसलिए अहोई अष्टमी का व्रत इस पाप से मुक्ति दिलाने वाला व्रत बताया गया है। इस दिन अहोई माता की विधिवत पूजा करने से इस पाप से मुक्ति मिल जाती है और उस महिला को अपने आने वाले जन्मों में भी इस पाप का फल नहीं भुगतना पड़ता। इसलिए संतान व्रत को संतान संबंधी सबसे बड़ा व्रत माना गया है