अक्षय तृतीया 2019 : क्या है अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक कथा
वैशाख शुक्ल तृतीया के मौके पर अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाएगा. अक्षय तृतीया के दिन खरीदारी करना शुभ माना जाता है. पौराणिक दृष्टि से इस दिन को शुभ और मंगलकारी माना जाता है. इस पर्व को लेकर लोगों के मन में अलग-अलग मान्यता है.
पुराणों के अनुसार इसी दिन यानी अक्षय तृतीया के मौके पर भगवान विष्णु के 3 अवतार हुए थे. विष्णु के अवतारों की वजह से इस तिथि को शुभ माना जाता है. इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इस शुभ अवसर पर देवी मातंगी भी प्रकट हुई थी.
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क्या है पौराणिक कथाएँ
पुराणों के अनुसार श्री हरि विष्णु जी के कुल 24 अवतार है. इनमें नर-नारायण इनका चौथा अवतार है. पुराणों में मिले उल्लेख के मुताबिक धर्म पत्नी के गर्भ से भगवान नर-नारायण की उत्पत्ति हुई. श्री हरि ने ये अवतार धर्म की स्थापना के लिए लिया था. भगवान विष्णु को समर्पित बदरीनाथ धाम दो पहाड़ियों के बीच स्थित है. इसके बारे में कहा जाता है कि, एक पहाड़ी पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी जबकि दूसरे पर्वत पर नर ने. नारायण ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने रूप में अवतार लिया, जबकि नर अर्जुन रूप में अवतरित हुए थे. कहा जाता है कि, नारायण का तप भंग करने के लिए इंद्र ने अपनी सबसे सुंदर अप्सरा रंभा को भेजा था. लेकिन, भगवान नारायण ने अपनी जंघा से रंभा से भी ज्यादा सुंदर अप्सरा उर्वशी को उत्पन्न कर इंद्र के पास भेज दिया.
श्रीहरि के 24 अवतारों में से 16वां अवतार हयग्रीव अवतार है. इससे जुड़ी प्राचीन कथा के अनुसार मधु-कैटभ नाम के दो दैत्य ब्रह्माजी से उनके वेदों के चुराकर रसातल में ले गए थे. इससे परेशान होकर ब्रह्मा जी भगवान विष्णु की शरण में गए. धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने हयग्रीव का अवतार लिया और दैत्यों का वध करके ब्रह्माजी को उनके वेद सकुशल लौटाए.
परशुराम को शास्त्रों में विष्णु का 18वां अवतार माना गया है. वहीं, कुछ पुरानी कथाओं में परशुराम को 6वां अवतार भी माना गया है. पुराणों में इनकी उत्पत्ति को लेकर कथा के अनुसार प्राचीनकाल में महिष्मती नगरी में सहस्त्रबहु नाम के क्षत्रिय शासक का राज था. उसके अपनी शक्तियों पर बहुत घमंड था. एक बार जब अग्निदेव ने उससे भोजन कराने के लिए आग्रह किया, तो सहस्त्रबाहु ने घमंड में चूर होकर कहा था कि आप कहीं से भी भोजन कर लें चारों ओर मेरा ही राज है. इस पर अग्निदेव ने जंगलों को जलाना शुरू कर दिया. इस दौरान जंगल में तपस्या कर रहे ऋषि आपव का आश्रम भी जल गया. गुस्से में ऋषि ने सहस्त्रबाहु को श्राप दिया कि उसका सर्वनाश होगा. कहते हैं इसके बाद भगवान विष्णु ने महर्षि जनदग्नि के पांचवे पुत्र के रूप में जन्म लिया और परशुराम कहलाए और संपूर्ण क्षत्रिय कुल का नाश कर दिया.
पुराणों में वर्णित एक अन्य मान्यता के अनुसार मातंगी देवी का प्रकाट्य भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था. एक बार भगवान विष्णु अपनी अर्धांगिनी लक्ष्मी जी के साथ भगवान शिव और देवी पार्वती से मिलने कैलाश पर्वत पर गए. भगवान विष्णु अपने साथ खाने की कुछ सामग्री ले गए और शिव जी को भेंट किया, लेकिन उसके कुछ अंश धरती पर गिर गए. कहते है उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली देवी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुईं. माना जाता है कि देवी मातंगी की सर्वप्रथम आराधना भगवान विष्णु ने की थी.