क्या है अल्लाहु अकबर (अज़ान) का अर्थ? क्या है अज़ान का इतिहास
इस्लाम में ‘नमाज़’ यानि उपासना व्यक्तिगत रूप से की जाती है लेकिन इसका सामूहिक रूप से किया जाना ज़रूरी, श्रेष्ठ व उत्तम क़रार दिया गया है. इस सामूहिकता के लिए दो प्राथमिकताएं हैं पहली निर्धारित स्थान और दूसरी लोगों को इकट्ठा करने का निश्चित उपाय. इस प्रकार अज़ान की नींव रखी गयी लेकिन इससे पूर्व हमें यह जानना ज़रूरी है कि अज़ान का इतिहास क्या है
अज़ान का इतिहास
मदीना में जब सामूहिक नमाज़ पढ़ने के मस्जिद बनाई गई तो इस बात की जरूरत महसूस हुई कि लोगों को नमाज़ के लिए किस तरह बुलाया जाए, उन्हें कैसे सूचित किया जाए कि नमाज़ का समय हो गया है. मोहम्मद साहब ने जब इस बारे में अपने साथियों सहाबा से राय मश्वरा किया तो सभी ने अलग अलग राय दी. किसी ने कहा कि प्रार्थना के समय कोई झंडा बुलंद किया जाए. किसी ने राय दी कि किसी उच्च स्थान पर आग जला दी जाए. बिगुल बजाने और घंटियाँ बजाने का भी प्रस्ताव दिया गया, लेकिन मोहम्मद साहब को ये सभी तरीके पसंद नहीं आए.
कहते हैं कि उसी रात एक अंसारी सहाबी हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने सपने में देखा कि किसी ने उन्हें अज़ान और इक़ामत के शब्द सिखाए हैं. उन्होंने सुबह सवेरे पैगंबर साहब की सेवा में हाज़िर होकर अपना सपना बताया तो उन्होंने इसे पसंद किया और उस सपने को अल्लाह की ओर से सच्चा सपना बताया.
पैगंबर साहब ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से कहा कि तुम हज़रत बिलाल को अज़ान इन शब्दों में पढ़ने की हिदायत कर दो, उनकी आवाज़ बुलंद है इसलिए वह हर नमाज़ के लिए इसी तरह अज़ान दिया करेंगे. इस तरह हज़रत बिलाल ने इस्लाम की पहली अज़ान कही.
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क्या है अल्लाहु अकबर (अज़ान) का अर्थ
हम सब साथ-साथ रहते हैं, एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं, व्यापार करते हैं और आपसी मसलों पर विचार करते हैं यानी किसी न किसी तरह से हम एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं. लेकिन यह सच है कि हम एक-दूसरे के धर्म के बारे में सही-सही ज्ञान नहीं रखते और सच जानने की कोशिश भी नहीं करते. इस भय से कि कहीं आपसी संपर्क घृणा, द्वेष व मनमुटाव में न बदल जाए. मतलब यह कि धर्म हमारे ज्ञान, हमारे व्यवहार से कहीं अधिक हमारी भावना से जुड़ गया है.
‘अकबर’ के अरबी शब्द का अर्थ है ‘बड़ा’. यह इस्लामी परिभाषा में ईश्वर अल्लाह की गुणवाचक संज्ञा है. इस परिभाषा में अकबर का अर्थ होता है बहुत बड़ा, सबसे बड़ा. अज़ान के प्रथम बोल हैं: ‘अल्लाहु अकबर’ अर्थात अल्लाह बहुत बड़ा/सबसे बड़ा है. इसमें यह भाव निहित है कि अल्लाह के सिवाय दूसरों में जो भी, जैसी भी, जितनी भी बड़ाइयां पाई जाती हैं, वे ईश-प्रदत्त हैं; और ईश्वर की महिमा व बड़ाई से बहुत छोटी, तुच्छ, अपूर्ण, अस्थायी, त्रुटियुक्त हैं.
इसके बाद वह दो बार कहता है, ‘अशहदो अल ला इलाह इल्लल्लाह’ अर्थात मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है. फिर दो बार कहता है ‘अशहदु अन-ना मुहम्मदर्रसूलुल्लाह’ जिसका अर्थ है- मैं गवाही देता हूँ कि हजरत मुहम्मद अल्लाह के रसूल (उपदेशक) हैं. फिर मुअज्जिन दाहिनी ओर मुँह करके दो बार कहता है ‘हय-या अललसला’ अर्थात आओ नमाज की ओर. फिर दाईं ओर मुँह करके दो बार कहता है, ‘हय-या अलल फलाह’ यानी आओ कामयाबी की ओर.
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इसके बाद वह सामने (पश्चिम) की ओर मुँह करके कहता है ‘अल्लाहो अकबर’ अर्थात अल्लाह सबसे बड़ा है. अंत में एक बार ‘ला इलाह इल्लल्लाह’ अर्थात अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है. फजर यानी भोर की अजान में मुअज्जिन एक वाक्य अधिक कहता है ‘अस्सलात खैरूम मिनननौम’ अर्थात नमाज नींद से बेहतर है.
अज़ान यद्यपि ‘सामूहिक नमाज़ के लिए बुलावा’ है, फिर भी इसमें एक बड़ी हिकमत यह भी निहित है कि ‘विशुद्ध एकेश्वरवाद’ की निरंतर याद दिहानी होती रहे, इसका सार्वजनिक एलान होता रहे. हज़रत मुहम्मद के ईशदूतत्व के, लगातार—दिन प्रतिदिन—एलान के साथ यह संकल्प ताज़ा होता रहे कि कोई भी मुसलमान या पूरा मुस्लिम समाज मनमानी जीवनशैली अपनाने के लिए आज़ाद नहीं है बल्कि हज़रत मुहम्मद के आदर्श के अनुसार एक सत्यनिष्ठ, नेक, ईशपरायण जीवन बिताना उसके लिए अनिवार्य है.
अज़ान के ये बोल 1400 वर्ष पुराने हैं. भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में नमाज़ियों को मस्जिद में बुलाने के लिए लगभग डेढ़ हज़ार साल से निरंतर यह आवाज़ लगाई जाती रही है. यह आवाज़ इस्लामी शरीअ़त के अनुसार, सिर्फ़ उसी वक़्त लगाई जा सकती है जब नमाज़ का निर्धारित समय आ गया हो. यह समय है:
सूर्योदय से घंटा-डेढ़ घंटा पहले. (फ़ज्र की नमाज़)
दोपहर, सूरज ढलना शुरू होने के बाद. (जु़हर की नमाज़)
सूर्यास्त से लगभग डेढ़-दो घंटे पहले. (अस्र की नमाज़)
सूर्यास्त के तुरंत बाद. (मग़रिब की नमाज़)
सूर्यास्त के लगभग दो घंटे बाद. (इशा की नमाज़)
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