आंवला नवमी/अक्षय नवमी : अक्षय पुण्य की प्राप्ति का दिन
कार्तिक शुक्ल नवमी अक्षय नवमी व आँवला नवमी के नाम से जानी जाती है। इस दिन आँवले के वृक्ष का पूजन, दर्शन, आँवले का सेवन अक्षय पुण्य की प्राप्ति देने वाला है।
भगवान विष्णु की पूजा के लिए बेहद शुभ दिन माना जाता है अक्षय नवमी। कहते हैं कि इस दिन पूजा–पाठ करने से यह जन्म ही नहीं बल्कि अगले कई जन्म सुधर जाते हैं और हमें अक्षय लाभ की प्राप्ति होती है। इस बार अक्षय नवमी 17 नवंबर 2018 (शनिवार) को है।
कैसे उत्पन्न हुआ था आंवला
जब पूरी पृथ्वी जलमग्न थी और इस पर जिंदगी नहीं थी, तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर निराकार परब्रम्हा की तपस्या कर रहे थे। इस समय ब्रम्हा जी की आंखों से ईश–प्रेम के अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार रविवार, विशेष रूप से सप्तमी तिथि पर आंवले का सेवन नहीं करना चाहिए। साथ ही, शुक्रवार और माह की प्रतिपदा तिथि, षष्ठी, नवमी, अमावस्या तिथि और सूर्य के राशि परिवर्तन वाले दिन आंवले का सेवन न करें।
आंवला व अक्षय नवमी की पूजा सामग्री
1) फल, फूल
2)धूप व अगरबत्ती
3)दीपक व देसी घी
4) दान के लिए अनाज
5) तुलसी के पत्ते
6) कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल
7) नारियल
उपरोक्त समस्त एकत्र कर लें। प्रातःकाल स्नान करके किसी ऐसे मंदिर या स्थान पर जाएं जहाँ आंवले का पेड़ हो। उसके बाद पूजन की सभी सामग्री लेकर आंवले के पेड़ के नीचे बैठ जाएं और पेड़ की जड़ में दूध चढ़ाएं। इसके पश्चात् वृक्ष के तने पर तिलक लगाएं। तिलक लगाकर धूप–दीप जलाएं और आंवले के पेड़ के सात फेरे लेते हुए पेड़ के तने पर कच्चा सफ़ेद धागा या मौली लपेटें। पूजन समाप्त होने के बाद प्रार्थना करें और फिर आंवले के पेड़ के नीचे भोजन करें।
आंवला नवमी 2018 की पूजन का शुभ समय
अक्षय नवमी पूजा मुहूर्त = 06:49 से 11:54 तक।
पूजा का मुहूर्त = 5 घंटे 5 मिनट
नवमी तिथि का आरंभ = 16 नवंबर 2018, शुक्रवार 09:40 बजे।
नवमी तिथि समाप्त = 17 नवंबर 2018, शनिवार 11:54 बजे।
आयुर्वेद और विज्ञान के अनुसार आंवला का महत्व
आचार्य चरक के मुताबिक आंवला एक अमृत फल है, जो कई रोगों का नाश करने में सफल है। साथ ही विज्ञान के मुताबिक भी आंवला में विटामिन सी की बहुतायता होती है। जो कि इसे उबालने के बाद भी पूर्ण रूप से बना रहता है। यह आपके शरीर में कोषाणुओं के निर्माण को बढ़ाता है, जिससे शरीर स्वस्थ बना रहता है।
”वय:स्थापन” यह आचार्य चरक कहते हैं. अर्थात सुंदरता को स्तंभित (रोक कर) करने के लिए आंवला अमृत है. बूढ़े को जवान बनाने की क्षमता केवल आंवले में है. आखिर इसमें सत्यता कितनी है ? इसे विज्ञान की दृष्टि से देखते हैं– शरीर के अंगों में नए कोषाणुओं का निर्माण रुक जाने, कम हो जाने से कार्बोनेट अधिक हो जाता है, जो घबराहट पैदा करता है. आंवला पुराने कोषाणुओं को भारी शक्ति प्रदान करता है, ऑक्सिजन देता है.
संक्षिप्त में आंवला चिर यौवन प्रदाता, ईश्वर का दिया सुंदर प्रसाद है. आंवला एकमात्र वह फल है, जिसे उबालने पर भी विटामिन ‘सी‘ जस–का–तस रहता है. च्यवनप्राश में सर्वाधित आंवले का प्रयोग होता है. आंवले को कम–ज्यादा प्रमाण में खाने से कोई नुकसान नहीं है, फिर थोड़ा–सा शहद डाल कर खाने से अति उत्तम स्वास्थ्य–लाभ होता है.
आयुर्वेद में आंवले को त्रिदोषहर कहा गया है. यानी वात, पित्त, कफ इन तीनों को नियंत्रित रखता है आंवला. सिरदर्द, रक्तपित्त, पेचिश, मुखशोथ , श्वेद प्रदर, अपचन जनित ज्वर, वमन, प्रमेह, कामला, पांडु, दृष्टिदोष एवं शीतला जैसे हजारों रोगों में आंवले का उपयोग होता है. आंवला केवल फल नहीं, हजारों वर्ष की आयुर्वेदाचार्यों की मेहनत का अक्षयपुण्य फल है. आंवला धर्म का रूप धारण कर हमारे उत्तम स्वास्थ्य को बनाए रखता है । उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस दिन पानी में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने की परंपरा है। ऐसा करने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है, सकारात्मक ऊर्जा और पवित्रता बढ़ती है, साथ ही ये त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। आंवले के रस से त्वचा की चमक भी बढ़ती है।
कनकधारा स्तोत्र और आंवला का महत्व (संबंध)
आंवला को वेद–पुराणों में अत्यंत उपयोगी और पूजनीय कहा गया है। पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार आंवला का संबंध कनकधारा स्तोत्र से भी है। एक कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं। शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे।
इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती। शंकराचार्च ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा– हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान–धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।
आंवला नवमी की कथा
काशी नगर में एक निःसंतान धर्मात्मा वैश्य रहता था। एक दिन वैश्य की पत्नी से एक पड़ोसन बोली यदि तुम किसी पराए लड़के की बलि भैरव के नाम से चढ़ा दो तो तुम्हें पुत्र प्राप्त होगा। यह बात जब वैश्य को पता चली तो उसने अस्वीकार कर दिया। परंतु उसकी पत्नी मौके की तलाश में लगी रही। एक दिन एक कन्या को उसने कुएं में गिराकर भैरो देवता के नाम पर बलि दे दी, इस हत्या का परिणाम विपरीत हुआ। लाभ की जगह उसके पूरे बदन में कोढ़ हो गया तथा लड़की की प्रेतात्मा उसे सताने लगी। वैश्य के पूछने पर उसकी पत्नी ने सारी बात बता दी।
इस पर वैश्य कहने लगा गौवध, ब्राह्यण वध तथा बाल वध करने वाले के लिए इस संसार में कहीं जगह नहीं है। इसलिए तू गंगा तट पर जाकर भगवान का भजन कर तथा गंगा में स्नान कर तभी तू इस कष्ट से छुटकारा पा सकती है। वैश्य की पत्नी पश्चाताप करने लगी और रोग मुक्त होने के लिए मां गंगा की शरण में गई। तब गंगा ने उसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला के वृक्ष की पूजा कर आंवले का सेवन करने की सलाह दी थी। जिस पर महिला ने गंगा माता के बताए अनुसार इस तिथि को आंवला वृक्ष का पूजन कर आंवला ग्रहण किया था और वह रोगमुक्त हो गई थी। इस व्रत व पूजन के प्रभाव से कुछ दिनों बाद उसे संतान की प्राप्ति हुई। तभी से हिंदुओं में इस व्रत को करने का प्रचलन बढ़ा। तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है।
क्या करें कि लाभदायी हो आंवला नवमी
प्रातः काल पूर्वाभिमुख होकर आँवले के वृक्ष की जड़ में ॐ धात्र्ये नमः बोलते हुये दूध अर्पित करने से पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते है।
संतान प्राप्ति हेतु आँवले के वृक्ष के नीचे पति पत्नी साथ बैठकर भगवान लक्ष्मी नारायण का पूजन कर उन्हें पिले पुष्प अर्पित करें,ब्राह्मणों को भोजन करवा कर पके कुष्मांड में यथा शक्ति रत्न,स्वर्ण, रजत या धन्य भरकर दान दे ।
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि इस दिन व्यापार में लाभ प्राप्ति हेतु लाल व पिले सुत वस्त्र से,स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति हेतु सफेद सुत वस्त्र लेकर 108 परिक्रमा कर,ताम्बे का दीपक दान करे।
इस दिन आँवले का सेवन विशेष लाभदायक है।
भौतिक लाभ पाने के लिए आपको अक्षय नवमी के दिन सोना, चांदी या अन्य मूल्यवान रत्न खरीद सकते हैं। अगर कोई प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं तो आज ही के दिन रजिस्ट्री कराएं।
अक्षय नवमी पर दान का बहुत महत्व है। इस समय सर्दी चल रही है ऐसे में जरूरतमंद लोगों को गर्म कपड़े वितरित करना बहुत शुभ माना गया है। कहते हैं इस दिन दान करने से मिला हुआ पुण्य अक्षय होता है। मतलब इस पुण्य का किसी भी स्थिति में नाश नहीं होता और प्राणी को पुण्य फल प्राप्त होता है।
आंवला नवमी के दिन ब्राह्मण को भोजन जरूर कराना चाहिए। धार्मिक आस्था है कि ऐसा करने से इस जन्म के साथ ही अगले जन्म में भी कभी अन्न–धन्न और संपदा की कमी नहीं होती है।
विशेष– ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार जिन जातकों की कुण्डली में वैधव्य या विधुर योग होने पर इस दिन कुंभ विवाह करना शुभ होता है।
लेखक – ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री