“अन्नदाता सुखी भव “
- गुरुदेव श्री श्री रविशंकर
भारत में, भोजन करने से पहले तीन बार “अन्नदाता सुखी भव” का उच्चारण करने की हमारी परंपरा है। जब हम इस मंत्र का उच्चारण करते हैं, तब हम तीन लोगों के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करते हैं और उनके कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं – एक तो वह किसान, जो हमारे लिए भोजन को उगाता है, दूसरा वह व्यक्ति, जो आपके लिए भोजन लेकर आता है और तीसरा वह व्यक्ति, जो आपके लिए भोजन पकाता है और आपकी टेबल पर रखता है।
यदि एक किसान दुखी है, तो देश सुखी नहीं रह सकता है। हमें उन्हें आश्वासन देने की आवश्यकता है, उन्हें आत्म विश्वास देने की आवश्यकता है, ताकि वे चुनौतीपूर्ण समय में भी आगे बढ़ सकें और इस बात को जानें कि वे अकेले नहीं हैं। हमें उन्हें जीवन के प्रति विशाल दृष्टिकोण देने की आवश्यकता है। उन्हें इस देश के लोगों के प्रेम, देखभाल और सहायक तंत्र की आवश्यकता है। हमें किसानों को तकनीकों, जैसे – प्राकृतिक कृषि और अच्छी फसल के लिए वैकल्पिक तरीकों के द्वारा तकनीकी रूप से पोषित करने की आवश्यकता है। हमें किसानों को अपने मन को तनाव मुक्त रखने में भी सहायता करने की आवश्यकता है। अपनेपन की भावना और बिना शर्त प्रेम की भावना की आवश्यकता है, जिससे बदलाव आ सकता है।
कृषि मानव अस्तित्व की रीढ़ की हड्डी है। किसी भी सभ्यता के समृद्ध होने के लिए,कृषि का स्वस्थ एवम् स्थिर होना आवश्यक है। हमें अपना ध्यान वापस कृषि पर केन्द्रित करने की आवश्यकता है और युवाओं को कृषि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। आज,प्राकृतिक कृषि में विश्वास को फिर से बनाने की आवश्यकता है। यह एक मिथ्या है कि यदि हम केवल महंगे रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं, तभी हमें अच्छी फसल प्राप्त होगी। लेकिन,हमारे किसानों,जिन्होंने प्राकृतिक रसायन मुक्त कृषि में प्रशिक्षण लिया है, ने यह साबित किया है कि प्राकृतिक कृषि भी लाभदायक है। यह किसानों की लागत को कम करती है,स्वस्थ फसल का उत्पादन करती है और किसानों के साथ-साथ उपभोक्ता को भी स्वस्थ रखती है। हम ऐसा कर पा रहे हैं क्योंकि हमने किसानों के लिए सामाजिक पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण किया है। बीजों में विविधता का संरक्षण करना भी आवश्यक है। एक भी किस्म के विलुप्त होने का दुष्प्रभाव इस परस्पर जुड़े हुए संसार पर पड़ता है। जिन किसानों ने देसी गाय रखी हुई हैं,वे भी लाभान्वित हो रहे हैं। एक गाय 30 एकड़ की जमीन को उर्वरता प्रदान करने के लिए पर्याप्त है। गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ भिन्न-भिन्न लाभदायक बैक्टीरिया मौजूद हैं, जो कृषि में सहायक होते हैं।गाय का मूत्र एंटीबायोटिक, एंटीसेप्टिक, एंटी फंगल और एंटी ऑक्सिडेंट है। यह संक्रमण रोधी है और मिट्टी की उर्वरता को सुधारता है। गाय का गोबर पौधे के प्राकृतिक विकास को बढ़ाता है। गाय के गोबर और मूत्र से बहुत सारे प्राकृतिक और उर्वरक बनाए जा सकते हैं, जिससे मिट्टी को पोषण मिलता है और कीड़ों एवं बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।यदि किसी व्यक्ति के पास स्वदेशी गाय है, तो वह बिना किसी लागत के सफलतापूर्वक कृषि कर सकता है।
हमारी कृषि अर्थव्यवस्था अभी भी बहुत विशाल है, लेकिन हमारे किसानों को फसल खराब होने, असामयिक वर्षा, सूखा, कर्ज, बीमारी और सामाजिक दबाव के कारण कष्ट उठाना पड़ता है। शराब एक अन्य बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है, जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हमारे देश की इस कृषि जीवन रेखा के पुनरुद्धार हेतु नवीन प्रयासों की आवश्यकता है और हमारे स्वयं सेवकों ने इनका आरंभ कर दिया है। हमारी टीमों ने देशभर में 42 नदियों और सहायक नदियों का पुनरुद्धार किया है, इनमें से कई नदियों में कई वर्षों से पानी नहीं था। इस प्रयास के साथ-साथ, 22 लाख किसानों को प्राकृतिक कृषि की तकनीकों में प्रशिक्षित एवम् फसल लगाने के कुशल तरीकों के बारे में शिक्षित किया गया है। इन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता के साथ-साथ शून्य लागत की कृषि में प्रशिक्षण से हज़ारों किसानों की आय में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है।
हमने देखा है कि स्थानीय समुदायों का नदी पुनरुद्धार के प्रयास में शामिल होना बहुत महत्वपूर्ण था, जिससे किसानों और गांवों के विकास पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इसमें विभिन्न हितधारकों को साथ लाने,विश्वास जीतने और विभिन्न एजेंसियों से समायोजन की भी आवश्यकता पड़ती है।यहां युवा बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं,जो इस प्रयास के सफल होने में बहुत महत्वपूर्ण है।
कोई भी महान कार्य तब तक पूर्ण नहीं हो सकता है,जब तक कि हम सब एक साथ ना आएं। सरकार अकेले सबकुछ नहीं कर सकती है।हम सरकार की मदद ले सकते हैं,लेकिन हमें भी ज़िम्मेदारी लेने की आवश्यकता है। केवल तभी,इस प्रकार का महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट (किसानों का जीवन सुधारने के लिए उनके साथ काम करना) पूर्ण हो सकता है। किसान समुदाय का यह कर्तव्य है कि वह संसार को स्वस्थ भोजन दें और संसार का यह कर्तव्य है कि वह अपने किसानों की समृद्धि को सुनिश्चित करे।