“अपरा एकादशी” का महत्व, लाभ और कथा सहित पूजन विधि
- सनातन (हिन्दू) धर्म में अपरा एकादशी का बड़ा महात्म्य
- मान्यता है कि इस एकादशी के व्रत का पुण्य अपार होता है और व्रती के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं
एकादशी पर मूलत भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और घर के सौभाग्य, करियर, संतान के लिए भगवान विष्णु की अराधना की जाती है। इस साल यह एकादशी गुरूवार यानि की 30 मई को है। हिंदू धर्म में अपरा एकादशी का काफी महत्व माना जाता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की अपरा एकादशी व्रत पापों की मुक्ती और पुष्य पाने के लिए किया जाता है। पद्म पुराण के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मुनष्य भवसागर तर जाता है और उसे प्रेत योनि के कष्ट नहीं भुगतने पड़ते। कहते हैं जो विधि पूर्वक अपरा एकादशी का वृत करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसे सुख, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने से न सिर्फ भगवान विष्णु बल्कि माता लक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं और भक्त का घर धन-धान्य से भर देती हैं।
जानिए 2019 में अपरा एकादशी कब है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी कहा जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक अपरा एकादशी हर वर्ष मई या जून महीने में आती है। इस बार अपरा एकादशी (गुरुवार) 30 मई 2019 को है।
समझें अपरा एकादशी का महत्व
हिन्दू धर्म में अपरा एकादशी का विशेष महत्व है। अपरा यानी कि अपार। अपरा या कहें अचला एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मान्यता है कि इस एकादशी का उपवास रखने से पातक से भी पातक मनुष्य के पाप कट जाते हैं और अपार खुशियां मिलती हैं। मकर संक्रांति के समय गंगा स्नान, सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र और शिवरात्रि के समय काशी में स्नान करने से जो पुण्य मिलता है उसके समान पुण्य की प्राप्ति अपरा एकादशी के व्रत से होती है।
मान्यताओं के अनुसार अपरा एकादशी का पुण्य अपार है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी कहते हैं कि इस एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भवसागर को तर जाता है। मान्यता है कि इस दिन ‘विष्णुसहस्त्रानम्’ का पाठ करे से सृष्टि के पालनहार श्री हरि विष्णु की विशेष कृपा बरसती है. जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं उन्हें भी इस दिन भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए और चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
जानिए क्यों नही करें उपयोग इस दिन चावल का
शास्त्रों के अनुसार एकादशी में चावल का सेवन करने से मन में चंचलता आती है, जिसके कारण मन भटकता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए, इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है।
जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी, इसलिए इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णु प्रिया एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।
- ध्यान रखें, अपर एकादशी व्रत करने वाले जमीन पर करें शयन
- एकादशी व्रत की रात को बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए। व्रत का पुण्य लाभ कमाने के लिए जमीन पर ही सोएं।
- इस दिन न करें किसी पर क्रोध
किसी भी व्रत या पूजा को शांत चित्त मन और भक्ति भाव के साथ करने पर वह सफल होती है। ऐसे में जिस दिन एकादशी का व्रत रखा हो, उस दिन भूलकर भी मनुष्य को क्रोध नहीं करना चाहिए। अपरा एकादशी व्रत रखने वाले व्यक्ति को तनाव से बचना चाहिए, क्योंकि क्रोध और तनाव से मन में नकारात्मक विचार आते हैं, जिसके कारण पूजा में ठीक तरह से मन नहीं लगता।
इस दिन दातुन करना है वर्जित
एकादशी के व्रत में कभी भी दातुन से दांत साफ नहीं करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि एकादशी वाले दिन किसी पेड़ की टहनियों को तोड़ने से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं। भूलकर भी न करें इस दिन किसी भी प्रकार का नशा
एकादशी का व्रत रखने वाले साधक को इस पावन तिथि पर किसी भी प्रकार की नशीली चीज का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन न सिर्फ व्रती बल्कि उसके परिवार में रहने वाले सदस्यों को भांग, धूम्रपान और मदिरा आदि का सेवन करने से बचना चाहिए।
अपरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 29 मई 2019 को दोपहर 03 बजकर 21 मिनट ..
एकादशी तिथि सामाप्त: 30 मई 2019 को शाम 04 बजकर 38 मिनट तक ..
पारण का समय
31 मई 2019 को सुबह 05 बजकर 45 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट तक।।
कैसे करें अपरा एकादशी पर पूजन (जानिए विधि को)
– एकादशी से एक दिन पूर्व ही व्रत के नियमों का पालन करें.
– अपरा एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें.
– इसके बाद स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें व्रत का संकल्प लें.
– अब घर के मंदिर में भगवान विष्णु और बलराम की प्रतिमा, फोटो या कैलेंडर के सामने दीपक जलाएं.
– इसके बाद विष्णु की प्रतिमा को अक्षत, फूल, मौसमी फल, नारियल और मेवे चढ़ाएं.
– विष्णु की पूजा करते वक्त तुलसी के पत्ते अवश्य रखें.
– इसके बाद धूप दिखाकर श्री हरि विष्णु की आरती उतारें.
– अब सूर्यदेव को जल अर्पित करें.
– एकादशी की कथा सुनें या सुनाएं.
– व्रत के दिन निर्जला व्रत करें.
– शाम के समय तुलसी के पास गाय के घी का एक दीपक जलाएं .
– रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए.
– अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें.
– इसके बाद अन्न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
यह हैं अपरा एकादशी व्रत कथा
अपरा एकादशी को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं. एक कथा के अनुसार किसी राज्य में महीध्वज नाम का एक बहुत ही धर्मात्मा राजा था. राजा महीध्वज जितना नेक था उसका छोटा भाई वज्रध्वज उतना ही पापी था. वज्रध्वज महीध्वज से द्वेष करता था और उसे मारने के षड्यंत्र रचता रहता था. एक बार वह अपने मंसूबे में कामयाब हो जाता है और महीध्वज को मारकर उसे जंगल में फिंकवा देता है और खुद राज करने लगता है. अब असामयिक मृत्यु के कारण महीध्वज को प्रेत का जीवन जीना पड़ता है. वह पीपल के पेड़ पर रहने लगता है. उसकी मृत्यु के पश्चात राज्य में उसके दुराचारी भाई से तो प्रजा दुखी थी ही साथ ही अब महीध्वज भी प्रेत बनकर आने जाने वाले को दुख पंहुचाते. लेकिन उसके पुण्यकर्मों का सौभाग्य कहिए कि उधर से एक पंहुचे हुए ऋषि गुजर रहे थे. उन्हें आभास हुआ कि कोई प्रेत उन्हें तंग करने का प्रयास कर रहा है. अपने तपोबल से उन्होंने उसे देख लिया और उसका भविष्य सुधारने का जतन सोचने लगे. सर्वप्रथम उन्होंने प्रेत को पकड़कर उसे अच्छाई का पाठ पढ़ाया फिर उसके मोक्ष के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत रखा और संकल्प लेकर अपने व्रत का पुण्य प्रेत को दान कर दिया. इस प्रकार उसे प्रेत जीवन से मुक्ति मिली और बैकुंठ गमन कर गया।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार एक राजा ने अपने राज्य में एक बहुत ही मनमोहक उद्यान तैयार करवाया. इस उद्यान में इतने मनोहर पुष्प लगते कि देवता भी आकर्षित हुए बिना नहीं रह सके और वे उद्यान से पुष्प चुराकर ले जाते. राजा चोरी से परेशान, लगातार विरान होते उद्यान को बचाने के सारे प्रयास विफल नजर आ रहे थे. अब राजपुरोहितों को याद किया गया. सभी ने अंदाज लगाया कि है तो किसी दैविय शक्ति का काम किसी इंसान की हिम्मत तो नहीं हो सकती उन्होंने सुझाव दिया कि भगवान श्री हरि के चरणों में जो पुष्प हम अर्पित करते हैं उन्हें उद्यान के चारों और डाल दिया जाएं. देखते हैं बात बनती है या नहीं।
देवता और अप्सराएं नित्य की तरह आए लेकिन दुर्भाग्य से एक अप्सरा का पैर भगवान विष्णु को अर्पित किये पुष्प पर पड़ गया जिससे उसके समस्त पुण्य समाप्त हो गए और वह अन्य साथियों के साथ उड़ान न भर सकी. सुबह होते ही इस अद्वितीय युवती को देखकर राजा को खबर की गई. राजा भी देखते ही सब भूल कर मुग्ध हो गए. अप्सरा ने अपना अपराध कुबूल करते हुए सारा वृतांत कह सुनाया और अपने किए पर पश्चाताप किया. तब राजा ने कहा कि हम आपकी क्या मदद कर सकते हैं. तब उसने कहा कि यदि आपकी प्रजा में से कोई भी ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का उपवास रखकर उसका पुण्य मुझे दान कर दे तो मैं वापस लौट सकती हूं.
राजा ने प्रजा में घोषणा करवा दी ईनाम की रकम भी तय कर दी, लेकिन कोई उत्साहजनक प्रतिक्रिया नहीं मिली. राजा पुरस्कार की राशि बढाते-बढ़ाते आधा राज्य तक देने पर आ गया लेकिन कोई सामने नहीं आया. किसी ने एकादशी व्रत के बारे में तब तक सुना भी नहीं था. परेशान अप्सरा ने चित्रगुप्त को याद किया तब अपने बही खाते से देखकर जानकारी दी कि इस नगर में एक सेठानी से अंजाने में एकादशी का व्रत हुआ है यदि वह संकल्प लेकर व्रत का पुण्य तुम्हें दान कर दे तो बात बन सकती है. उसने राजा को यह बात बता दी.
राजा ने ससम्मान सेठ-सेठानी को बुलाया. पुरोहितों द्वारा संकल्प करवाकर सेठानी ने अपने व्रत का पुण्य उसे दान में दे दिया, जिससे अप्सरा राजा व प्रजा का धन्यवाद कर स्वर्गलौट गई. वहीं अपने वादे के मुताबिक सेठ-सेठानी को राजा ने आधा राज्य दे दिया. राजा अब तक एकादशी के महत्व को समझ चुका था उसने आठ से लेकर अस्सी साल तक राजपरिवार सहित राज्य के सभी स्त्री-पुरुषों के लिए वर्ष की प्रत्येक एकादशी का उपवास अनिवार्य कर दिया।
लेख – पं. दयानंद शास्त्री, उज्जैन