जैन धर्म के प्रमुख पर्वों में से एक अष्टान्हिका पर्व रविवार से शुरू हो गया है। आठ दिन मनाया जाने वाला अष्टान्हिका पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है। आठ दिन का यह उत्सव, साल में तीन बार मनाया जाता है।
इस अवधि में जैन मत को मानने वाले रोज मंदिरों में विशेष पूजा, सिद्धचक्र विधान, मंडल विधान, नंदीश्वर विधान और मंडल पूजा सहित कई प्रकार के अनुष्ठान करते हैं।
अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 28 जून से 5 जुलाई तक चलेगा। भगवान महावीर स्वामी को समर्पित उत्सव जैन धर्म के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। ये साल में तीन बार कार्तिक, फाल्गुन और आषाढ़ के महीनों में मनाया जाता है। 28 जून से शुरू हुआ ये आषाढ़ मास का अष्टान्हिका उत्सव है।
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क्यों मनाते हैं अष्टान्हिका पर्व
अष्टान्हिका पर्व की शुरुआत मैना सुंदरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए किए गए प्रयासों से हुई थी। पति को निरोग करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल और तीर्थंकरों के अभिषेक जल के छीटें देने तक साधना की थी। इसका जैन ग्रथों में भी उल्लेख मिलता है।
तभी से आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले, ध्यान और आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व व्रत आदि करते हैं। इस समय हर प्रकार की बुरी आदतों और बुरे विचारों से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है।
अष्टान्हिक पर्व का महत्व
वर्ष में तीन बार आने वाले अष्टान्हिक पर्व के बारे में जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर आठ दिन तक धर्म कार्य करते हैं।
कार्तिक, फाल्गुन, और आषाढ़ इन तीन महीनों के शुक्ल पक्ष में मनाये जाने इस पर्व पर जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते वे अपने निकट के मंदिरों में पूजा आदि कर लेते हैं।
ये विधान हिंदी तिथि के अनुसार किया जाता है यानि, यदि तिथियां घट बढ़ जाती हैं तो सप्तमी अथवा नवमी से पर्व मनाया जाता है। जैसे तिथि घट जाए तो सप्तमी से और बढ़ जाए तो नवमी से व्रत रखे जाते हैं।
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