जानिए किस तरह से मुस्लिम समुदाय में मनाया जाता है अशुरा मुहर्रम
मुहर्रम का महीना इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है. इसे एक बहुत पवित्र महीना माना जाता है. इसे हिजरी भी कहा जाता है. इसे मुस्लिम संप्रदाय के लोग मनाते हैं. हिजरी सन की शुरुआत इसी महीने से होती है. इस्लाम धर्म में चार पवित्र महीने होते हैं, उनमें से एक पवित्र महीना मुहर्रम का होता है. मुहर्रम शब्द में से हरम का मतलब होता है किसी चीज पर पाबंदी और ये मुस्लिम समाज में बहुत महत्व रखता है. मुहर्रम की तारीख हर साल बदलती रहती है, क्योंकि इस्लाम का कैलेंडर एक लूनर कैलेंडर होता है. इस साल मुहर्रम महीने की शुरुआत 21 सितंबर से लेकर 19 अक्टूबर तक है . मुहर्रम को एक विशेष दिन सभी मुस्लिम शोक मनाते हैं. ये दिन मुहर्रम महीने का 10 वां दिन होता है. इस दिन से इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है.
यह भी पढ़ें-मुहर्रम पर अनोखी लुट्टस रस्म
मुहर्रम शहीद को दी जाने वाले शहादत के रुप में मनाया जाता है. ये एक शोक दिवस है. मुहर्रम के माह में 10 दिनों तक पैगम्बर मुहम्मद साहब के वारिस इमाम हुसैन की तकलीफों का शोक मनाया जाता है. इसके बाद इसे जंग में शहीद को दी जाने वाली शहादत के जश्न के रुप में मनाया जाता है और तजिया सजाकर इसे जाहिर किया जाता है. इन दस दिनों को आशुरा कहा जाता है. इन दस दिनों में सुन्नी समुदाय के लोग रोजा रखते हैं और शिया समुदाय के लोग काले कपडे़ पहनते हैं. इस दिन लोग तजिया निकालते हैं. तजिया बांस से बनाई जाती है, ये झांकियों के जैसे सजाई जाती है. इसमें इमाम हुसैन की कब्र बनाकर उसे शान से दफनाया जाता है. इसे ही शहीदों को श्रद्धांजली देना कहा जाता है और जूलुस में लोग मातम मनाते हुए चलते हैं.