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विज्ञान के ज़रिये शुभ अशुभ का ज्ञान देता ज्योतिष शास्त्र

ज्योतिष शास्त्र पर अक्सर परिचर्चाएं होती रहती हैं. कोई उसे विज्ञान का दर्जा देता है तो कोई इसे कोरी कल्पना या एक प्रकार की कला का नाम देता है. लेकिन प्रश्न अब भी यही है कि ज्योतिष शास्त्र को विज्ञान का नाम दिया जाना चाहिए या नहीं. चलिए हम इस बात पर थोड़ा प्रकाश डालने का प्रयास करते हैं.

भारतीय ज्योतिष शास्त्र
प्राचीन विद्याओं की जननी यानि ज्योतिष का उद्भव व विकास आज से कई हजारों वर्ष पूर्व ही हो चुका था, ऐसा हम नहीं कह रहे बल्कि कई भारतीय मानक ग्रंथों में इसकी पुष्टि की जा चुकी है. इसकी उपयोगिता इतनी प्रखर है, कि आज भी यह अपने पुराने रूप में स्थित है और भविष्य में होने वाले कई घटना चक्रों की जानकारी देता है. रावण संहिता इसका एक महत्वपूर्ण उदहारण है. ज्योतिष शास्त्र के द्वारा न केवल ब्राह्माण्ड में घटने वाली घटनाओं का सटीक पता चल सकता है बल्कि जीवन में कब कहां और कैसी घटना घटित होने वाली है, उसका भी सही पता लगाने की शक्ति  शास्त्र में ही हैं. इसको कालाश्रितं ज्ञानं भी कहा जाता है. अर्थात् जो हमारे शुभाशुभ समय का ज्ञान कराएं वही ज्योतिष शास्त्र है.

शास्त्र की प्रमाणिकता
शास्त्र अपनी प्रमाणिकता के कारण पूर्व काल में ही तीन भागों में विभक्त हुआ था. जिसे हम सिद्धान्त, संहिता एवं होरा शास्त्र कहते हैं.

सिद्धान्त में ज्योतिषीय गणना को शामिल किया गया जिससे ग्रह नक्षत्रों की गति, पंचाग निर्माण आदि सहित काल के सूक्ष्म इकाइयों का सृजन किया गया है.
संहिता खण्ड में ब्रह्माण्ड में घटित होने वाले घटना क्रम का उल्लेख किया है. जिसमें मेदिनी खण्ड, वर्षाखण्ड तथा शकुन एवं लक्षण विज्ञान का वर्णन किया गया है.
होरा शास्त्र व्यक्ति के जीवन से मृत्यु तक होने वाली शुभाशुभ घटनाओं का वर्णन करता है. जिसे फलित ज्योतिष के नाम से भी जाना जाता है.
इस प्रकार ज्योतिष शास्त्र का क्रमिक विकास होता चला गया है. और आज भी हम इसके उपयोग से लाभान्वित हो रहे हैं. ज्योतिष के पूर्व के प्रवर्तकों में पराशर, नारद, जैमिनी, वराहमिहिर आदि अनेकानेक नामचीन ऋषि है जिन्होंने इस शास्त्र को अधिक सारगर्भित व उपयोगी बनाने में अपना योगदान दिया है.

ज्योतिषाचार्य प्रदीप भट्टाचार्य

लेखक एक ज्योतिषाचार्य हैं आप उनसे इस मेल आईडी पर संपर्क कर सकते हैं: bhattacharyya.alok0@gmail.com

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