बैकुण्ठ चतुर्दशी : 2 नवम्बर 2017 : क्यों और कैसे मनाएं?
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह व्रत, 2 नवम्बर 2017 को रखा जाएगा। इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है. इसके साथ ही व्रत का पारण किया जाता है. यह बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है. इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं. यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है. इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है।
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन परमब्रह्म भगवान शिव और विष्णु एकाकार रूप में रहते हैं। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन 1000 कमल पुष्पों से भगवान विष्णु की पूजा करता है, वह अपने कुल परिवार के साथ वैकुण्ठ में स्थान प्राप्त करता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हमारे अनेक धर्मग्रंथो में इसका उल्लेख मिलता है| निर्णय सिन्धु में इसका विवरण दिया हुआ है। इसके इलावा स्मृति कोस्तुम और पुरुषार्थ चिंतामणि में भी इसका विवरण मिलता है कि कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में – अरुणोदय काल में ब्रह्म मुहूर्त में स्वयं भगवान ने वाराणसी में मणि कर्णिका घाट पर स्नान किया था। पाशुपत व्रत करके विश्वेश्वर ने पूजा कि थी, तब से इस दिन को काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक बार श्रीविष्णु देवाधिदेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। वहां मणिकार्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। लेकिन, जब वे पूजन करने लगे तो महादेव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने को एक कमल का पुष्प कम कर दिया। यह देख श्रीहरि ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी ही हैं और उन्हें चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। तब महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है।
महाभारत युद्घ के बाद भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी तिथि के दिन ही मृतक व्यक्तियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्घ तर्पण की व्यवस्था की थी। इसलिए शास्त्रों में इस दिन श्राद्घ तर्पण करने का भी बड़ा महत्व बताया गया है।इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान श्रीहरि विष्णु का संपूर्ण विधि विधान से पूजन किया जाता है। इसके साथ ही आज व्रत-उपवास करके नदी, सरोवरों आदि के तट पर 14 दीपक प्रज्वलित करने की परंपरा है।
हर साल एक दिन ऐसा होता है जब स्वर्ग का द्वार बंद नहीं होता है। इस दिन शरीर का त्याग करने वाले को स्वर्ग में स्थान मिलता है। जो व्यक्ति इस दिन व्रत करके भगवान शिव और विष्णु की पूजा करते हैं उनके सभी पाप कट जाते हैं और जीवात्मा को बैकुण्ठ में स्थान प्राप्त होता है। उज्जैन में इस दिन वैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन सवारी निकाली जाती है। जो अलग-अलग स्थानों, शहरों के विभिन्न मार्गों से होते हुए श्री महाकालेश्वर मंदिर पर पहुंचती है। वैकुंठ चतुर्दशी पर भक्तजनों का तांता लग जाता है। रात को ठाठ-बाठ से भगवान शिव पालकी में सवार होकर आतिशबाजियों के बीच भगवान भगवान विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण से मिलने पहुंचते हैं। माना जाता है कि भगवान शिव चार महीने के लिए सृष्टि का भार भगवान विष्णु को सौंप कर हिमालय पर्वत पर चले जाएंगे।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहा जाता हैं। इस वर्ष 2017 में 02 नवंबर को यह पुण्य दिवस है। शास्त्रों में वर्णित कथाओं के अनुसार भगवान शिव ने इसी दिन भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र प्रदान किया था। बैकुंठ चतुर्दशी, इसी समन्वयात्मक प्रकृति की प्रतीक है। हिंदू पंचांग में कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र ऐसी तिथि है, जिस दिन भगवान शिव और विष्णु दोनों को समान रूप से पूजा जाता है। माना जाता है कि भगवान शंकर ने भगवान विष्णु के तप से प्रसन्न होकर इस दिन पहले विष्णु और फिर स्वयं उनकी पूजा करने वाले हर भक्त को बैकुंठ पाने का आशीर्वाद दिया। बैकुंठ लोक भगवान विष्णु का निवास व सुख का धाम माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक बैकुंठ लोक चैतन्य, दिव्य व प्रकाशित है। जगत पालक विष्णु और कल्याणकारी देवता शिव की भक्ति में भी यही संकेत है। शास्त्रों के मुताबिक इस दिन शिव और विष्णु की विधिपूर्वक पूजा करने से शक्ति व लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। दरिद्रता दूर होती है और सांसारिक कामनाओं जैसे दौलत, यश, प्रतिष्ठा और हर कामना सिद्ध होती है।
वैकुण्ठा चतुर्दशी निशीथ काल = 24:18+ to 25:14+
कुल अवधि = 0 Hours 56 Mins
चतुर्दशी तिथि का प्रारम्भ = 06:41 on 2/Nov/2017
चतुर्दशी तिथि का समापन = 04:16 on 3/Nov/2017
बैकुण्ठ चौदस का महत्व
कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी के “ऎक्य” का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने “कमल नयन” नाम और “पुण्डरी काक्ष” नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं.
भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी “बैकुण्ठ चौदस” के नाम से जानी जाएगी.
भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं.
बैकुण्ठ चतुर्दशी पौराणिक महत्व
एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते हैं. नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा – भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है.
बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विशेष महात्म्य है इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुण्ठ धाम पाते हैं. मान्यता है कि कमल से पूजन करने पर भगवान को समग्र आनंद प्राप्त होता है तथा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. बैकुण्ठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए. बैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से भगवान श्री विष्णु पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा उन्हें तुलसी पत्ते अर्पित करते हुए भोग लगाना चाहिए.
जानिए बैकुंठ चतुर्दशी की पूजन-विधि
इस दिन सुबह व शाम के वक्त भगवान विष्णु व उनके बाद शिवलिंग या शिव की प्रतिमा का पंचोपचार विधि से पूजन करना चाहिए। भगवान विष्णु को केसरिया चंदन मिले जल से स्नान कराएं। स्नान के बाद चंदन, पीले वस्त्र, पीले फूल वहीं शिवलिंग पर दूध मिले जल से स्नान के बाद सफेद आकड़े के फूल, अक्षत, बिल्वपत्र और दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाकर चंदन धूप व गोघृत जलाकर भगवान विष्णु और शिव का नीचे लिखे मंत्रों से स्मरण करें।
विष्णु मंत्र
पद्मनाभोरविन्दाक्षः पद्मगर्भःशरीरभूत्।
महद्धिऋद्धो वृद्धात्मा महाक्षो गरुड़ध्वजः।।
अतुलः शरभो भीमः समयज्ञो हविर्हरिः।
सर्वलक्षणलक्षण्यो लक्ष्मीवान् समितिञ्जयः।।
शिव मंत्र
वंदे महेशं सुरसिद्धसेवितं भक्तैसदा पूजितपादपद्ममम्।
ब्रह्मेंद्रविष्णुप्रमुखैश्च वंदितं ध्यायेत्सदा कामदुधं प्रसन्नम्।।
मंत्र स्मरण के बाद खासतौर पर दोनों देवताओं को कमल फूल भी अर्पित करें। पूजा व मंत्र जप के बाद विष्णु व शिव या त्रिदेव की धूप, दीप व कर्पूर आरती कर घर के द्वार पर दीप प्रज्वलित भी करें। एक बार देवर्षि नारद ने श्रीविष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछा। तब श्रीविष्णु बोले, हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन कर श्रद्धा-भक्ति से मेरी पूजा करते हैं, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। लेकिन, पूजा रात्रिकाल में की जानी चाहिए। एक बार श्रीविष्णु देवाधिदेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। वहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान कर उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। जब वे पूजन करने लगे तो महादेव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने को एक कमल का पुष्प कम कर दिया। यह देख श्रीहरि ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी ही हैं और उन्हें चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। तब महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक पहले आपका पूजन करने वाला बैकुंठ को प्राप्त होगा। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी श्रीहरि और महादेव के ऐक्य का प्रतीक है। निर्णय सिंधु के अनुसार जो एक हजार कमल पुष्पों से श्रीविष्णु के बाद शिव की पूजा-अर्चना करते हैं, वे भव-बंधनों से मुक्त हो बैकुंठ धाम पाते हैं। इस दिन व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने करोड़ों सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र श्रीविष्णु को प्रदान किया था। भगवान विष्णु इसी अस्त्र की सहायता से त्रिलोक में धर्म स्थापना का कार्य करते हैं।
देव दीपावली
बैकुंठ चतुर्दशी का संबंध त्रिपुरासुर वध से भी जोड़ा जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर ने देवताओं की प्रार्थना पर राक्षस त्रिपुरासुर का वध किया था। इसके बाद देवताओं ने खुशी मनाने के लिए पूरे स्वर्ग को दीयों से जगमगा दिया था। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि काशी में भगवान भोले नाथ साक्षात विराजते हैं और देव दीपावली के दिन सभी देवता काशी आकर दीप जलाते हैं। इसके कारण देव दीपावली का पर्व काशी में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्रीहरि का मत्स्यावतार हुआ था। इसलिए इस दिन गंगा स्नान, दान के बाद दीपदान का फल दस यज्ञों के समान प्राप्त होता है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश, अंगिरा और आदित्य ने इसे ‘महापुनीत पर्व’ माना है। सांध्यकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्म का कष्ट नहीं होता। अगर गंगा स्नान, पितरों को जलांजलि और कुशा अर्पित करें और कंबल दान करें, तो घर में सुख-संपत्ति आती है।
ईश्वर को प्रिय है मार्गशीर्ष महीना
ईश्वर को प्रिय है मार्गशीर्ष महीनाश्रीमद्भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को सभी महीनों में कार्तिक का महीना बताया है-
‘मासानां मार्गशीर्षो्हम्।’
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की मार्गशीर्ष का माह भगवान श्री हरि का परम प्रिय है। श्री हरि ने स्वयं कहा कि यह महीना मुझे वश में करने वाला, मेरी कृपा और सान्निध्य दिलाने वाला यह दुर्लभ मास है। जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर भक्ति भाव से मेरे अनंत और विराट स्वरूप का पूजन- अर्चन करता है, व्रत रखता है, यज्ञ हवन आदि करता है, वह मेरी विशिष्ट कृपा का पात्र बनता है। इस महीने में की जाने वाली साधना और भक्ति निश्चित ही फलवती होती है। श्री हरि कहते हैं कि इस माह की गई भक्ति से भौतिक इच्छाएं तो पूरी होती हैं, यह ब्रह्मतेज और देवत्व प्रदान करती है। मार्गशीर्ष मास के माहात्म्य का श्रवण करने और नियमों का पालन करने से श्रीहरि भक्त के वश में हो जाते हैं और उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।
पूजन विधि – ब्रह्ममुहूर्त में संपूर्ण शुद्धता के साथ ‘ॐ नमो नारायणाय नमः’ मंत्र का यथाशक्ति हजार या सौ बार जप प्रभु की प्रतिमा के समीप बैठ करें। जो लोग शंख में जल लेकर प्रतिमा को स्नान कराते हैं, वे समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। जो तुलसी दल, गंगा जल तथा आंवला मुझे अर्पित करते हैं, उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। मार्गशीर्ष के महीने में गुड़, नमक के दान की विशेष महिमा कही गई है।
दान मंत्र – शरण्यं सर्वलोकानाम् लज्जाया रक्षणं परम्। देहालंघरणं वस्त्रमतः शांतिं प्रयच्छ में।
मार्गशीर्ष महीना शीतकाल में पड़ता है, इसलिए ऊनी और सूती वस्त्रों के दान की भी इसमें विशेष महिमा बताई गई है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन बैकुंठाधिपति भगवान श्री हरि विष्णु का संपूर्ण विधि-विधान से पूजन किया जाता है। इस दिन जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करता है उसे बैकुंठ की प्राप्ति होती है। बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कैसे शुरू हुआ इसकी कुछ कथाएं हैं।
आइए आपको बताते हैं बैकुंठ चतुर्दशी व्रत कथाओं के बारे में
एक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु महादेव का पूजन करने के लिए काशी गए। वहां पर उन्होंने मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके 1,000 स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ की पूजा करने का संकल्प किया। लेकिन जब श्रीहरि विष्णु पूजा करने लगे तो भगवान शिव ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। यह देख श्रीहरि विष्णु ने सोचा कि उनकी आंखे भी तो कमल की भांति हैं अौर उन्हें अर्पित करने लगे। तभी महादेव ने प्रकट हुए अौर उन्होंने कहा हे हरि- तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा भक्त नहीं है। आज से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की यह चतुर्दशी अब ‘बैकुंठ चतुर्दशी’ के नाम से जानी जाएगी। इस दिन जो भी व्यक्ति पूर्ण भक्ति भाव से पहले आपका पूजन करेगा, उसे बैकुंठ की प्राप्ति होगी।
यह दिन श्रीहरि विष्णु और भगवान भोलेनाथ के पूजन का दिन है। निर्णय सिन्धु के मुताबिक जो व्यक्ति इस दिन 1,000 कमल फूलों से श्रीहरि विष्णु के बाद भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। पुरुषार्थ चिंतामणि में उल्लेख है कि इस दिन भगवान शिव ने श्रीहरि विष्णु को सुदर्शन चक्र दिया था। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी का दिन उपवास करके तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है। इस दिन उपवास रखकर श्रीहरि विष्णु अौर भोलेनाथ का पूजन करने से स्वर्ग के द्वार खुलते हैं।
हिन्दू धर्मग्रंथो में 36 करोड़ देवी-देवताओं के होने का उल्लेख मिलता है| जिनमें सृष्टि के रचियता ‘ब्रह्मा’, सृष्टि के पालनकर्ता ‘विष्णु’ और सृष्टि के हर्ता ‘शिव’ सर्वप्रमुख है| एक बार भगवान विष्णु, शिवजी की पूजा-अर्चना के लिए काशी आए। यहां मणिकर्णिका घाट पर स्नान करके उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल फूलों से भगवान शिव की पूजा का संकल्प लिया।
अभिषेक के बाद जब भगवान विष्णु पूजन करने लगे, तो शिवजी ने उनकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक कमल का फूल कम कर दिया। भगवान विष्णु को अपने संकल्प की पूर्ति के लिए एक हजार कमल के फूल चढ़ाने थे। एक पुष्प की कमी देखकर उन्होंने सोचा कि मेरी आंखें ही कमल के समान हैं, इसलिए मुझे कमलनयन और पुंडरीकाक्ष कहा जाता है। एक कमल के फूल के स्थान पर मैं अपनी आंख ही चढ़ा देता हूं।
ऐसा सोचकर भगवान विष्णु जैसे ही अपनी आंख भगवान शिव को चढ़ाने के लिए तैयार हुए, वैसे ही शिवजी प्रकट होकर बोले, ‘हे विष्णु। इस संसार में आपके समान मेरा कोई दूसरा भक्त नहीं है। आज से यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब से बैकुंठ चतुर्दशी के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका और बाद में मेरा पूजन करेगा, उसे बैकुंठ लोक की प्राप्ति होगी।’ प्रसन्न होकर शिवजी ने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र भी प्रदान किया और कहा कि यह चक्र राक्षसों का विनाश करने वाला होगा। तीनों लोकों में इसकी बराबरी करने वाला कोई अस्त्र नहीं होगा।
एक अन्य कथानक के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत का एक महत्व यह भी है कि यह व्रत देवोत्थानी एकादशी के ठीक तीन दिन बाद ही होता है। एक बार नारदजी बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास गये । विष्णुजी ने नारद जी से आने का कारण पूछा । नारद जी बोले,”हे भगवान! आपको पृथ्वी वासी कृपा विधान कहते है । किन्तु इससे तो केवल आफ प्रिय भक्त ही तर हो पाते है साधारण नर नारी नही । इसलिए कोई ऐसा उपाय बताईये जिससे साधारण नर नारी भी आपकी कृपा मे पात्र बन जाए।“ इस पर भगवान बोले, ”हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेगे उसकी स्वर्ग प्राप्त होगा । लेकिन, पूजा रात्रिकाल में की जानी चाहिए। “ इसके बाद भगवान विष्णु ने जय विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुंले रखे जाये । भगवान ने यह भी बताया कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे बैकुण्ठधाम प्राप्त होगा।
श्रीमद भागवत के सातवे स्कन्द के पांचवे अध्याय के श्लोक २३ व २४ वें में दिया गया है।
श्रवण कीर्तन विष्णो: स्मरण याद्सेवनम, अर्चन वन्दन दास्य सख्यामातम निवेदनम।
अर्थात कथाएँ सुनकर , कीर्तन करके , नाम स्मरण करके , विष्णु जी की मूर्ति के रूप में, सखाभाव से आप अपने को श्री विष्णु जी को समर्पित करें।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की विश्वास स्तर बढ़ने के लिए इस दिन श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर को नहला धुलाकर कर अच्छे वस्त्र पहना कर मूर्ति सेवा स्वर भक्ति करनी चाहिए।
मंत्र – ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’
नाम और प्रसिद्धि कि कामना रखने वाले को इस दिन श्री विष्णु जी की पूजा करके यानि पचोपचार पूजा यानि धूप , दीप नवैद्द गंध आदि से पूजा करनी चाहिए। तन्त्रशास्त्र के मतानुसार श्री विष्णु जी को अक्षत नहीं चढ़ाना चाहिए और कहना चाहिए –
‘श्रीघर माधव गोपिकवाल्लंभ , जानकी नायक रामचंद्रभये’
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की बेहतर नौकरी और कैरियर के लिए…
बैकुन्ठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भी विष्णु को प्रणाम करना चाहिए और सप्तारीशियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए। वे नाम हैं – मरीचि, अत्रि, अंगीरा, पुलत्स्य, ऋतू और वसिष्ठ। आहवाहन के बाद सप्तऋषियों से निवेदन करना चाहिए कि वे नारद से कहें कि वे श्री विष्णु जी के दास के रूप में आपकी स्वीकृति करवा दें।
दांपत्य सुख कि कामना रखने वालों को श्री विष्णु को वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सच्चे भाव से, मित्र की तरह स्मरण करें और उनसे अपनी इच्छा कहें। बाद में श्री राम की यह स्तुति पढनी चाहिए –
‘श्री राम राम रघुनन्दन राम राम ; श्री राम राम भारताग्रज राम राम
श्री राम राम रणककर्श राम राम ; श्री राम राम शरण भाव राम राम ‘
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की विद्या और ज्ञान प्राप्ति के लिए – इस दिन सेवक के रूप में श्री विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए और कहना चाहिए :-
ॐ नम: पद्मनाभाय , दामोदराय गोविन्दाय
नारायणाय च केशवाय , मधुसूदनाय नमो नमः
इन विधियों से आपातकाम मनुष्य पुरुषार्थ चतुर्दशी को पूर्ण करके पूर्णायु भोगकर वैकुण्ठधाम को प्राप्त करता है।
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पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)