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एकेश्वरवाद को मानने वाला धर्म है यहूदी

यहूदी धर्म यहूदियों का एकेश्वरवादी ( एकेश्वरवाद ) धर्म है, जो यह मानता है कि ईश्वर की उपस्थिति का अनुभव मानव गतिविधियों और इतिहास द्वारा होता है. यह उपस्थिति कुछ मान्यताओं और मूल्यों की अभिव्यक्ति है, जो कर्म, सामाजिक व्यवस्था और संस्कृति में दृष्टिगोचर होती है.

क्या है मान्यता

यहूदी धर्म का मानना है कि यहूदी समुदाय का दिव्य के साथ प्रत्यक्ष सामना होता है और स्थापित होने वाला यह संबंध, अनुबंध, अटूट है और यह समूची मानवता के लिए महत्त्वपूर्ण है. ईश्वर को ‘तोरा प्रदायक’, यानी दिव्य प्रदायक के रूप में देखा जाता है. अपने पारंपरिक व्यापक रूप में ‘हिब्रू ग्रंथ’ और यहूदी मौखिक परंपराएं, धार्मिक मान्यताएँ रीति-रिवाज और अनुष्ठान, ऐतिहासिक पुनर्संकलन और इसके आधिकारिक ग्रंथो की विवेचना है. ईश्वर ने दिव्य आशीष के लिए यहूदियों का चुनाव करके उन्हें मानवता तक इसे पहुँचाने का माध्यम भी बनाया और उनसे तोरा के नियमों के पालन और विश्व के अन्य लोगों के गवाह के रूप में काम करने की अपेक्षा की.

क्या है यहूदी धर्म का इतिहास

क्या है यहूदी धर्म का इतिहास

समझा जाता है कि यहूदी धर्म के संस्थापक इब्राहीम 20वीं शताब्दी ई. पू. के मध्य में उत्तरी मेसोपोटामिया से कानान चले गए थे. वहाँ से इब्राहीम के अर्द्ध ख़ानाबदोश वंशज और उनके पुत्र इसाक और जेकब, जो तब तक 12 यहूदी परिवार बन चुके थे, मिस्र चले गए, जहाँ उन्हें कई पीढ़ियों तक ग़ुलाम बनाकर रखा गया और ई.पू 13वीं शताब्दी में वे वहाँ पलायन करके इज़राइली कानान लौटे. यहूदी धर्म की तरह धर्माध्यक्षों का धर्म भी युगों-युगों तक विविध विदेशी विचारो के संपर्क में आया, इनमें मारी, उगारित, बेबिलोनिया, मेसोपोटामिया और मिस्र के प्रभाव सम्मिलित हैं. इज़राइली ईश्वर को विश्व का सृजनहार माना जाता है, जिसकी खोज इब्राहीम ने नहीं की थी, परंतु वह ईश्वर के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हुए थे. ईश्वर ने इब्राहीम के साथ अपने वायदे मोजेज़ के माध्यम से पूरे किए, जिन्होंने पलायन का नेतृत्व किया और माउंट सिनाई में इज़राइल पर और प्रतिज्ञाओं का दायित्व रखा और अपने साथियों को कानान ले आए. धर्माध्यक्षों की कहानियों के अनुसार, कानान में बसना ईश्वर द्वारा प्रतिज्ञा पालन का अभिन्न अंग है. मिस्र में ग़ुलाम बने रहने के अनुभव से केवल उक्त मान्यता की नहीं, इसकी भी पुष्टि हुई कि इज़राइली ईश्वर क्षेत्रीय सीमाओं से परे समूची पृथ्वी का ईश्वर है.

यहूदी और यहूदत

ऐसा माना जाता है प्राचीन मेसोपोटामिया में सामी मूल की विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले अक्कादी, कैनानी, आमोरी, असुरी आदि कई खानाबदोश कबीले रहा करते थे. इन्हीं में से एक कबीले का नाम हिब्रू था. वे यहोवा को अपना ईश्वर और अब्राहम को आदि-पितामह मानते थे. उनकी मान्यता थी कि यहोवा ने अब्राहम और उनके वंशजों के रहने के लिए इस्त्राइल प्रदेश नियत किया है. प्रारम्भ में गोशन के मिस्त्रियों के साथ हिब्रुओं के सम्बंध अच्छे थे, परन्तु बाद में दोनों में तनाव उत्पन्न हो गया. अत: मिस्त्री फराओं के अत्याचारों से परेशान होकर हिब्रू लोग मूसा के नेतृत्व में इस्त्राइल की ओर चल पड़े. इस यात्रा को यहूदी इतिहास में ‘निष्क्रमण’ कहा जाता है. इस्त्राइल के मार्ग में सिनाई पर्वत पर मूसा को ईश्वर का संदेश मिला कि यहोवा ही एकमात्र ईश्वर है, अत: उसकी आज्ञा का पालन करें, उसके प्रति श्रद्धा रखें और 10 धर्मसूत्रों का पालन करें. मूसा ने यह संदेश हिब्रू कबीले के लोगों को सुनाया. तत्पश्चात् अन्य सभी देवी-देवताओं को हटाकर सिर्फ़ यहोवा की आराधना की जाने लगी. इस प्रकार यहोवा की आराधना करने वाले ‘यहूदी’ और उनका धर्म ‘यहूदत’ कहलाया.

यहूदियों के पैगम्बर – एकेश्वरवाद यहूदियों के पैगम्बर

यहूदी धर्म की मानता है कि ईश्वर अपना संदेश पैगम्बरों के माध्यम से प्रेषित करता है. यहूदी लोग अब्राहम, ईसाक और जेकब को अपना पितामह पैगम्बर, मूसा को मुख्य पैगम्बर तथा एलिजा, आयोस, होसिया, इजिया, हजकिया, इजकील, जरेमिया आदि को अन्य पैगम्बर मानते हैं. यहूदी धर्म एकेश्वरवाद पर आधारित है. उनका ईश्वर ‘यहोवा’ अमूर्त, निर्गुण, सर्वव्यापी, न्यायप्रिय, कृपालु और कठोर अनुशासनप्रिय है. अपनी आज्ञाओं के उल्लंघन होने पर वह दंड भी देता है. इतना ही नहीं, यहूदी लोग यहोवा की आज्ञाओं में सैन्य कृत्यों का भी संदेश पाते हैं. यहोवा उनको धर्म रक्षा के लिए सैन्य संघर्ष का भी आदेश देता है.

दस धर्म सूत्र (एकेश्वरवाद)

यहूदी धर्म में दस धर्माचरणों का विशेष महत्त्व है, जिनका पालन करने पर यहोवा की अनुपम कृपा प्राप्त होती है. ये दस धर्म सूत्र निम्न हैं-
1.मैं स्वामी हूँ तेरा ईश्वर, तुझे मिस्त्र की दासता से मुक्त कराने वाला.
2.मेरे सिवा तू किसी दूसरे देवता को नहीं मानेगा.
3.तू अपने स्वामी और अपने प्रभु का नाम व्यर्थ ही न लेगा.
4.सबाथ (अवकाश) का दिन सदैव याद रखना और उसे पवित्र रखना. छ: दिन तू काम करेगा, अपने सब काम, किन्तु सातवाँ दिन सबाथ का दिन है. याद रखना कि छ: दिन तक तेरे प्रभु ने आकाश, पृथ्वी और सागर तथा उन सबमें विद्यमान सभी कुछ की रचना की, फिर सातवें दिन विश्राम किया था. अत: यह प्रभु के विश्राम का दिन है. इस दिन तू कोई भी काम नहीं कर सकता.
5.अपने माता-पिता का सम्मान कर, उन्हें आदर दे ताकि प्रभु प्रदत्त इस भूमि पर तू दीर्घायु हो सके.
6.तू हत्या नहीं करेगा.
7.तू परस्त्री, परपुरुष गमन नहीं करेगा.
8.तू चोरी नहीं करेगा.
9.तू अपने पड़ोसी के ख़िलाफ़ झूठी गवाही नहीं देगा.
10.तू अपने पड़ोसी के मकान, पड़ोसी की पत्नी, पड़ोसी के नौकर या नौकरानी, उसके बैल, उसके गधे पर बुरी नज़र नहीं रखेगा.

यहूदियों के धर्मग्रंथयहूदियों के धर्मग्रंथ (एकेश्वरवाद)
यहूदियों के बीच अनेक धर्मग्रंथ प्रचलित हैं, जिसमें कुछ प्रमुख हैं-
तोरा, जो बाइबिल के प्रथम पाँच ग्रंथों का सामूहिक नाम है और यहूदी लोग इसे सीधे ईश्वर द्वारा मूसा को प्रदान की गई थी,
तालमुड, जो यहूदियों के मौखिक आचार व दैनिक व्यहार संबंधी नियमों, टीकाओं तथा व्याख्याओं का संकलन है,
इलाका, जो तालमुड का विधि संग्रह है,
अगाडा, जिसमें धर्मकार्य, धर्मकथाएं, किस्से आदि संग्रहीत हैं,
तनाका, जो बाइबिल का हिब्रू नाम है, आदि.

इन्हें भी देखें
रबी, यहूदियों के पुरोहित को रबी कहते हैं.
सिनागौग,यहूदियों के मंदिर या पूजास्थल को सिनागौग कहते हैं.
धर्मपिटक, धर्मपिटक सिनागौग में रखा कीकट की लकड़ी का स्वर्णजटित एक पिटक है, जिसमें दस धर्मसूत्रों की प्रति रखी होती है. इसे धर्म प्रतिज्ञा की नौका भी कहते हैं.

यहूदी धर्म का भारत में कैसे हुआ प्रवेश(एकेश्वरवाद)

ऐसा माना जाता है की करीब 2985 वर्ष पूर्व अर्थात 973 ईसा पूर्व में यहूदियों ने केरल के मालाबार तट पर प्रवेश किया. यहूदियों के पैगंबर थे मूसा, लेकिन उस दौर में उनका प्रमुख राजा था सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहते हैं. नरेश सोलोमन का व्‍यापारी बेड़ा, मसालों और प्रसिद्ध खजाने के लिए आया. आतिथ्य में प्रिय हिंदू राजा ने यहूदी नेता जोसेफ रब्‍बन को उपाधि और जागीर प्रदान की. यहूदी कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्य में बस गए. विद्वानों के अनुसार, 586 ईसा पूर्व में जूडिया की बेबीलोन विजय के तत्‍काल पश्‍चात कुछ यहूदी सर्वप्रथम क्रेंगनोर में बसे. तभी से भारत वर्ष में यहूदी धर्म को प्रवेश मिला.

श्वेता सिंह

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