भागवताचार्य देवकीनंदन ठाकुरजी के सानिध्य में नार्थ कैरोलिना, अमेरिका में शुरू हुई श्रीमद्भागवत कथा के षष्टम दिवस में श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सुन्दर वर्णन भक्तों को श्रवण कराया।
महाराज श्री ने कहा कि अच्छा समय न जाने कब निकल जाता है इसका हमको पता भी नहीं चल पाता है। भगवान से सदा ही अपने मन की बात करते रहनी चाहिए। कुछ बातें उनसे करनी चाहिए और कुछ बातें उनसे हमें सुननी चाहिए। तभी तो हमारे जीवन का हर प्रकार से उद्धार हो सकता है। भगवान का नाम हमारे मुख से तब तक नहीं निकलता है जब तक भगवान स्वयं हम पर अपनी कृपा नहीं करते है। हर चीज हमारे मुख से आसानी से निकल जाती है लेकिन भगवान का नाम आसानी से नहीं निकलता है।
“सुन बरसाने बारी दूर बड़ी दूर नगरी,कैसे मैं मिलने आऊं बड़ी दूर नगरी” भजन श्रवण कराकर महाराज श्री ने सभी भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। महाराज श्री ने कहा की मानव जीवन का उद्देश्य ये नहीं है की खाओ कमाओ और सो जाओ। उसका तो एक ही उद्देश्य होना चाहिए की वह भगवान को कैसे प्राप्त कर सके। इस दुनिया में एक साकार ब्रह्म को मानने वाले लोग होते है और एक निराकार ब्रह्म को मानने वाले लोग होते है। महाराज श्री ने कहा कि हमारे कर्मकांड के 84 हज़ार श्लोक है। किसी ने भगवान से पूछा की आप कैसे हो? आपका आकर कैसा है? आप निराकार हो या साकार हो?
भगवान ने कहा कि जो लोग मुझे निराकार रूप में भजते है उनके लिए मैं निराकार हूँ और जो लोग मुझे साकार रूप में भजते है उनके लिए मैं साकार हूँ। क्योँकि कई बार राधा कहती है कि “बंसी बजाते हुए क्या किसी ने मेरे शयाम देखे” जो चीजे हमारे लिए जीवन है और जो चीजे हमारे लिए मृत्यु का एक मार्ग बन जाती है। वही सब चीजें भगवान के चरणों में बंधन करती है क्योँकि ये सब चीजे ही उनसे प्रकट हुई है। जिन लोगों को भगवान पर डाउट हो वो या तो किसी संत के चरणों में जा कर बैठे। जो भगवान के बारे में सब कुछ जानते हो और उनसे भगवान के बारे में जानने की कोशिश करो उन पर कुछ थोपो नहीं।
पार्वती माता ने भी एक प्रश्न किया था की साकार ब्रह्म निराकार कैसे हुआ? यहाँ पर महाराज श्री ने भगवान राम के बारे में भी उदाहरण दिया है कि भगवान राम कौन है। अब भगवान पर संदेह करना कहाँ की सही बात है उसको तो हमें मिटाना ही पड़ेगा। इसके लिए हमें किसी जानकर या संत के चरणों में जाकर बैठना पड़ेगा। जिससे हमें भगवान के सही रूप के बारे में सही से जानकारी मिल सके। हम भगवान के सही रूप को जान सके। हमें भी तो भगवान के बारे में जानने अपनी जिज्ञासा दिखानी पड़ेगी। क्योँकि जैसे ही हम किसी ज्ञानी पुरुष या संत के पास ये प्रश्न लेकर जायेंगे की भगवान कौन है तो वह ज्ञानी हमें उस ईश्वर की सभी लीलाओं के बारे में बताता है।
तब हम को उस ज्ञानी से उस भगवान का बहुत ही सुन्दर वर्णन प्राप्त हो जाता है। जिसके बाद हमें अपने उस प्रभु के बारे में जानने की और जिज्ञासा नहीं रहती है। भगवान का एक स्वाभाव और है कि भगवान किसी का अहंकार बर्दाश्त नहीं करता है। आज के इस जीवन में या समय में हमें अपनी छोटी छोटी चीजों पर अहंकार हो जाता है। अगर हम कोई नई गाड़ी भी घर में ले आते है तो अपने रिश्तेदारों को चिढ़ाने के लिए एकबार जरूर ही उनके पास जाते है कि तुम्हारे पास इतनी बड़ी गाडी नहीं है मेरे या हमारे पास तो है। तो हम अपने अहंकार के कारण उस को चिढ़ाते है की तुम इतनी बड़ी गाडी नहीं ले सकते है पर लेकिन हम ले सकते है और उसको इसी बात से जलन कराते है।
महाराज श्री ने बताया की भगवान हर इंसान से कहता है कि आप सब को अहंकार से दूर रहना चाहिए। क्योँकि जो लोग अहंकार करते है मैं उन लोगों से कोशों दूर रहता हूँ। जहाँ पर अभिमान होता है वहां पर भगवान का वास नहीं होता है। और दूसरी बात ये है की भगवान अहंकार को भी नहीं रहने देता है। जीव जिस भी चीज का अभिमान करता है भगवान उससे उस चीज को ही छीन लेता है। यहाँ पर महाराज श्री ने बहुत ही सुन्दर पंक्तियों का वर्णन किया है कि “बनतो को भी बिगड़ते देखा है बिगड़तों को भी बनते देखा है,जो खूब अकड़के चलते थे उनको मिटटी में भी मिलते देखा है “.इन पंक्तियों के द्वारा महाराज श्री ने वहां पर मौजूद सभी लोगों को अहंकार को छोड़ने के लिए कहा है। क्योँकि अहंकार से मनुष्य का हर प्रकार से नाश ही होता है। उसका भला कभी भी नहीं हो सकता है।
कल आप सभी ने गोवर्धन की परिक्रमा की थी। पर भगवान ने आप सभी से गोवर्धन की परिक्रमा कराई क्योँ थी। इसकी तो आवश्यकता ही नहीं थी। अगर भगवान श्री कृष्ण नहीं होते तो क्या वहां पर भगवान इंद्र की पूजा नहीं छुड़वा सकते थे। जब स्वयं बनाने वाला ही मिटाने पर आ जाये तो कोई भी आपको बचा नहीं सकता है। इस बात को आप देर से मानो या जल्दी से मानो, जितनी जल्दी से मान लोगे तो आप का ही भला हो सकता है। क्योँकि जितनी जल्दी ही मान लोगे तो उतना ज्यादा समय ही आप के पास मिल जाता है कुछ अच्छा करने के लिए।
देवराज इंद्र ने वहां पर घनघोर वर्षा की। वहां पर इंद्र ये चाहते थे की इस भारी वर्षा से पूरा का पूरा ब्रज ही बह जाना चाहिए यमुना नदी में और इन लोगों का नामो निशान ही मिट जाना चाहिए। जब वहां पर काले काले बदल घुमड़ कर आये तो सब ब्रज वासी भगवान कान्हा से कहने लगे की आज तो आप हमारा सूपड़ा ही साफ करा दिया है। बादलों को देखकर सभी लोग काफी परेशान हो गए। सभी लोग कन्हैया से कहने लगे की देखो कान्हा कितने भयंकर बादल बन कर आ रहे है। अब तो यहाँ पर काफी बाहरी बारिश होगी और सब कुछ ही ख़त्म हो जायेगा।
तब भगवान श्री कृष्ण सभी ब्रज वासियों से कहते है कि कमाल करते हो की जिस भगवान की पूजा करते हो उस पर तो भरोसा करो। इसलिए ही तो हमारी पूजा इतनी फलीभूत नहीं है जितनी होनी चाहिए। लोग कहते है कि पूजा करो पर ब्लाइंड फेथ मत करो। पर मैं कहता हूँ की ब्लाइंड फेथ करके ही पूजा करो। अगर आप का भगवान में भरोसा नहीं होगा तो इसमें आपका ही नुक्सान होगा। भगवान का कुछ नहीं बिगड़ेगा। अगर तुम चार पांच व्यक्ति भगवान को नहीं मानोगे तो इससे भगवान को मानने वालों की कमी नहीं होगी। तो इससे कौनसे भगवान की पूजा होनी बंद हो जाएगी। क्योँकि मेरे ऋषियों ने मुझसे कहा है, मेरे वेदों ने मुझसे कहा है, मेरे पुराणों ने मुझसे कहा है, ग्रंथों ने मुझसे कहा है ,मेरे गुरुओं ने मुझसे कहा है कि कृष्ण भगवान है।
तभी तो बालभाचार्य ने कहा है कि इस पृथ्वी के कण कण में हमारे प्रभु श्री कृष्ण बसते है। फिर अगर हमको इस बात का ब्रह्म है तो हमने भगवान को जानने की कोशिश नहीं की है। क्योँकि आज का व्यक्ति काफी फ़ास्ट सर्विस चाहता है। अगर आज हमने पूजा की है तो आज शाम तक ही हमको उस पूजा का फल मिल जाये तभी हम यकीन करेंगे की पूजा का कोई असर हुआ है। नहीं फल मिला तो हम जानेंगे की हमारी पूजा का बेकार ही चली गयी है।
यहाँ पर महाराज श्री एक दृष्टांत सुना रहे है। एक व्यक्ति एक संत के पास गए और कहने लगे की महाराज मुझे कोई ऐसा देवता बताओ जल्दी से प्रसन्न हो जाये। क्योँकि मैं चाहता हूँ की कोई देवता जल्दी से प्रसन्न हो और जो मैं चाहता हूँ वो मुझे जल्दी से प्राप्त हो जाए। तब संत ने कहा की तुम एक काम करो की तुम नारायण की पूजा करो और नारायण भगवान से आप जो मांगोगे आपको मिल जायेगा।
फिर वह व्यक्ति भगवान नारायण की मूर्ति ले आया और पूजा शुरू कर दी। इस तरह से एक के बाद दो और दो के बाद एक सप्ताह हो गया तो व्यक्ति काफी नाराज हो गया और बोला की संत ने तो मुझे गलत देवता बता दिया है। एक हफ्ते से मैं पूजा कर रहा हूँ पर अगले ने मुझे ये तक नहीं पूछा है की आप कैसे हो ,प्रसन्न होने की तो बात दूर है। ये देवता तो मुझे ठीक नहीं लगता है।
तब वह व्यक्ति सोचने लगा की शायद कलयुग में देवताओं की कम चलती है तो मुझे देविओं की पूजा करनी चाहिए। तब महाराज जी उस व्यक्ति से कहने लगे की चलों तो आप देवी की पूजा करों। नारायण भगवान तो शायद देर से तुम्हारी सुनेंगे पर देवी जल्दी ही सुन लेंगी। तो इस तरह से वह व्यक्ति एक देवी जी की भी मूर्ति ले आया। पर मंदिर में जगह तो काफी छोटी थी। अब या तो मंदिर में नारायण भगवान रहे या देवी रहे। दोनों एक मंदिर में नहीं रह सकते। तब उस व्यक्ति ने भगवान नारायण की मूर्ति को हटा कर वहां पर देवी की मूर्ति को लगा दिया और वहीँ पास में दीवार पर एक कील लगा कर भगवान नारायण की मूर्ति को उस पर टांक दिया।
उसने उसी दिन से देवी माता की पूजा करनी शुरू कर दी। फिर एक दिन उस व्यक्ति ने देवी की मूर्ति के सामने धुप बत्ती जलाई और सयोंगवश उस धूपबत्ती का धुआँ भगवान नारायण की मूर्ति की तरफ जा रहा था। तो इस को देखकर उस व्यक्ति के मन में काफी टेंशन हो रही थी। तो उसने सोचा की लो जी हो गया कबाड़ा इनकी पूजा हमने करी थी तो खुद तो आये नहीं और अब कहीं देवी जी भी न आ जाये तो इनकी भी धुप ले रहे है। अगर मेरी धूपबत्ती के धुंए को भी नारायण ले गए तो मेरे पास देवी कहाँ से आ पाएंगी।
तब वह व्यक्ति तुरंत गया और वहां से रुई ले आया और उस रुई को भगवान नारायण की नाक में लगा दिया और कहने लगा की अब देखता हूँ की कैसे लोगे धुआँ धुप का। इतना उसका कहना था की भगवान नारायण स्वयं वहां पर उसके सामने प्रकट हुए और कहने लगे की वरदान मांगो। अब वहां पर जो व्यक्ति मौजूद था वह ये देखकर काफी हैरान हो गया। वह कहने लगा की “यह क्या हुआ” और कहने लगा की वरदान देंगे आप! तब नारायण भगवान कहने लगे हाँ देंगे हम वरदान आपको!
पर मेरे मन में एक प्रश्न है? तब भगवान बोले पूछो क्या है? तब वह व्यक्ति बोला की जब मैं आपकी पूजा कर रहा था तब तो आप वरदान देने के लिए नहीं आये और जब मैं देवी की पूजा करने लगा तो तब आपके मन में बड़ा वरदान देने की बात उमड़ आयी है। मैंने तो आपकी नाक में रुई तक लगा दी थी तो फिर भी आप मुझे वरदान देने के लिए क्योँ आ गए है। तब भगवान नारायण ने उस व्यक्ति को जो उत्तर दिया था वह बड़ा ही गजब का था। नारायण ने कहा कि जब तक तुम मेरी पूजा कर रहे थे तब तक तुम मुझे केवल मूर्ति समझ रहे थे। फिर जब तुम मुझे मूर्ति समझ कर पूजा करते रहे तो मैं केवल मूर्ति बनकर ही बैठा रहा। आज पहली बार तुम्हे अहसास हुआ की मैं तुम्हारी धूपबत्ती का धुआँ ग्रहण कर रहा हूँ। इसका मतलब ये है की आज तुमने पहली बार मुझे नारायण समझा है और अपने हाथों से आपने मेरी नाक में रुई लगा दी है तो अब मुझे लगा है की अब तुम्हे ये लग गया है की मैं नारायण हूँ। इसलिए आज में तुम्हारे सामने प्रकट हो गया हूँ और तुमसे वरदान मांगने के लिए कह रहा हूँ। इसलिए मैं तुम्हे वरदान देना चाहता हूँ।
।। राधे राधे बोलना पड़ेगा ।।