‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है. वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो. ‘बीजमंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है. यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं.
क्या है बीजमंत्र
जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है. इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है.
इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं. हम यह कह सकते हैं कि बीजमंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं.
बीजमंत्र के रहस्य
हिन्दू धर्मशास्त्रों में अनेक प्रकार के बीज मंत्रों की जानकारी मिलती है. बीज मंत्र में अनेक प्रकार के गूढ़ रहस्य होते हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान नहीं होता है. तो आइए आप भी जानें बीजमंत्र का रहस्य-
देवी काली के लिए बीजमंत्र
“क्रीं” इसमें चार वर्ण हैं। (क, र, ई, (म)अनुस्वार) क-काली, र-ब्रह्मा, ईकार-दुःखहरण, म-महाकाली. अर्थात ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे.
लक्ष्मी बीजमंत्र
“श्रीं” चार स्वर व्यंजन (श, र, ई, (म)अनुस्वार) श-महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई तुष्टि, अनुस्वार- दुःखहरण. अर्थात धन- ऐश्वर्य संपत्ति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी आप मेरे दुखों का नाश करें.
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शिव बीजमंत्र
“ह्रौं” (ह्र, औ, अनुस्वार) ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार–दुःख हरण. अर्थात शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें.
दुर्गा बीजमंत्र
“दूँ” ( द, ऊ, अनुस्वार) द दुर्गा, ऊ–रक्षा, अनुस्वार करना. अर्थात हें माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो, यह दुर्गा बीज है.
शक्ति बीज
“ह्रीं” यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है. (ह, र, ई, नाद, बिंदु) ह-शिव, र-प्रकृति, ई-महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता. अर्थात शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करें.
गुरु बीज मंत्र
“ऐं” (ऐ, अनुस्वार) ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण. अर्थात हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश करें.
काम बीज मंत्र
“क्लीं” इसे काम बीज कहते हैं। (क, ल, ई अनुस्वार) क-कृष्ण अथवा काम, ल- इंद्र, ई-तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता। अर्थात कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें.
गणपति बीज
“गं” यह गणपति बीज है. (ग, अनुस्वार) ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहर्ता. अर्थात श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें।
कूर्च बीज
“हूँ” ( ह, ऊ, अनुस्वार) ह-शिव, ऊ- भैरव, अनुस्वार- दुःखहरता. यह कूर्च बीज है. अर्थात असुर-संहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें.
गणेश बीज
“ग्लौं” (ग, ल, औ, बिंदु) ग-गणेश, ल-व्यापक रूप, आय-तेज, बिंदु-दुखहरण. अर्थात- व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें.
माँ तारा का बीज मंत्र
“स्त्रीं” (स, त, र, ई, बिंदु) स-दुर्गा, त- तारण, र- मुक्ति, ई- महामाया, बिंदु- दुःखहरण. अर्थात- दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें.
भगवान नृसिंह का बीजमंत्र
“क्ष्रौं ” (क्ष, र, औ, बिंदु) क्ष- नरसिंह, र-ब्रह्मा, औ- ऊर्ध्व, बिंदु- दुःख-हरण. अर्थात- ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों को दूर करें.
अमृत बीजमंत्र
“वं” (व्, बिंदु) व- अमृत, बिंदु दुःखहर्ता. अर्थात हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण करें.
इसी प्रकार के कई बीजमंत्र हैं। और उनके गूढ़ रहस्य भी इसी प्रकार अलग-अलग हैं।
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