हमारे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पटाखों पर बैन लगाने का निर्णय लिया था। लेकिन त्यौहार से जुड़ी लोगों की आस्था को ध्यान में रखते हुए 8 से 10 मात्र 2 घंटों के लिए पटाखे जलाने की अनुमति प्रदान कर दी गई। इसके साथ ही इको फ्रेंडली ग्रीन पटाखों का ही उपयोग करने की साफ़ हिदायत दी गई है। अब आपके मन में अगर यह प्रश्न उठा रहा है कि ग्रीन पटाखे क्या होते हैं तो इसका उत्तर भी हम आपको देंगे।
नयी दिल्ली, 24 अक्टूबर; बच्चों के लिए दिवाली का मतलब पटाखे छुड़ाना है. ऐसे में बेहतर है कि समझाया जाए कि पटाखे जलाने से हवा कितनी जहरीली होती जा रही है. लेकिन इसके बावजूद भी अगर वो जिद करते हैं तो ग्रीन पटाखे सामान्य तौर पर जलाए जाने वाले पटाखों से काफी कम नुकसानदेह होते हैं. आइए जानते हैं क्या होते हैं ग्रीन पटाखे और किस तरह से करें ग्रीन पटाखे की पहचान…
क्या होते हैं ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे सामान्य तौर पर इस्तेमाल होने वाले वाले पटाखों से बस थोड़ा सा अलग होते हैं. ग्रीन पटाखों का खोल सामान्य पटाखों से थोड़ा छोटा होता है. इन्हें बनाने में कम नुकसानदायक कच्चे माल का इस्तेमाल होता है. आज के समय में, भारत में पटाखों के कारोबार से सालाना तौर पर 1,800 करोड़ का फायदा हो रहा है. सीएसआईआर ने पटाखे बनाने और उन्हें बिक्री के लिए उपलब्ध कराने के लिए 230 कंपनियों के साथ करार किए हैं. नैशनल इन्वाइरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट ने ग्रीन पटाखों को तैयार किया है.
ग्रीन पटाखों के निर्माण में लिथियम, आर्सेनिक, बेरियम और लेड जैसे घातक और सरकार द्वारा बैन किए जा चुके पदार्थों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. यही वजह है कि यह पर्यावरण और हवा को दूषित करते हैं. सामान्य पटाखों को छुड़ाने पर नाइट्रोजन और सल्फर जैसी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है.
कई तरह के ग्रीन पटाखे
ग्रीन पटाखे भले ही देखने, जलने व आवाज में सामान्य पटाखों जैसे दिखाई देते हों लेकिन यह कम धुआं पैदा करते हैं, साथ ही इनसे निकलने वाली गैस भी अपेक्षाकृत कम हानिकारक होती हैं। हालांकि ग्रीन पटाखों से भी प्रदूषण होता है लेकिन यह परंपरागत पटाखों से कम होता है। इतना ही नहीं, ग्रीन पटाखे कई तरह के होते हैं जैसे−
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वाटर रिलीजर क्रैकर
इस तरह के ग्रीन पटाखों की खासियत यह है कि जब इसे जलाया जाता है तो जलने के बाद इसमें पानी के कण पैदा होते हैं। पानी के कारण पटाखों से निकलने वाला प्रदूषण कम होता है। पटाखों के जलने के बाद पैदा होने वाले पानी के अणु में सल्फर और नाइट्रोजन के कण घुल जाते हैं।
सफल क्रैकर
इस तरह के क्रैकर को बनाने में एल्युमीनियम की मात्रा का इस्तेमाल सामान्य पटाखों की अपेक्षा काफी कम होता है। यहां तक कि 50 से 60 फीसदी तक एल्युमीनियम कम इस्तेमाल होने पर इसे सेफ मिनिमल एल्युमीनियम कहा गया है। इस तरह प्रदूषण को नियंत्रित करने में यह पटाखे काफी कारगर साबित होंगे।
स्टार क्रैकर
अपने नाम की तरह ही इस तरह के पटाखे वास्तव में किसी स्टार से कम नहीं हैं। स्टार क्रैकर अर्थात् सेफ थर्माइट क्रैकर के निर्माण में ऑक्सीडाइजिंग एजेंट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसके कारण जब इन्हें जलाया जाता है तो उसमें से हानिकारक सल्फर और नाइट्रोजन गैस बेहद कम मात्रा में उत्पन्न होती है और वायु प्रदूषण भी करीबन पचास से साठ फीसद तक कम होता है।
अरोमा क्रैकर्स
यह एक बेहद अलग तरह के पटाखे हैं। नीरी द्वारा निर्मित इन पटाखों की खूबी यह है कि इन्हें हानिकारक गैसों का उत्पादन तो कम होता है ही, साथ ही इन्हें जलाने पर भीनी−भीनी खुशबू भी निकलेगी।
कैसे करें ग्रीन पटाखों की पहचान
- ग्रीन पटाखों के रैपर पर QR कोड और स्टिकर लगा होता है. ये कोड और स्टीकर देखने के बाद ही पटाखे खरीदें.
- ग्रीन पटाखों को जलाने पर सल्फर की बदबू नहीं आती है.