शरद पूर्णिमा का उत्सव
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे ‘रास पूर्णिमा’ भी कहते हैं। आज पूरे देश में शरद पूर्णिमा मनाई जा रही है। ज्योतिष की मान्यता है कि संपूर्ण वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा षोडश कलाओं का होता है। धर्मशास्त्रों में इस दिन ‘कोजागर व्रत’ माना गया है। इसी को ‘कौमुदी व्रत’ भी कहते हैं। रासोत्सव का यह दिन वास्तव में भगवान कृष्ण ने जगत की भलाई के लिए निर्धारित किया है, क्योंकि कहा जाता है इस रात्रि को चंद्रमा की किरणों से सुधा झरती है।
इस दिन श्री कृष्ण को ‘कार्तिक स्नान’ करते समय स्वयं (कृष्ण) को पति रूप में प्राप्त करने की कामना से देवी पूजन करने वाली कुमारियों को चीर हरण के अवसर पर दिए वरदान की याद आई थी और उन्होंने मुरलीवादन करके यमुना के तट पर गोपियों के संग रास रचाया था। इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा-पूजन किया जाता है। माना जाता है कि इसी दिन श्रीकृष्ण रासलीला करते थे।
इसी वजह से वृदांवन में इस त्योहार को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को ‘रासोत्सव’ और ‘कामुदी महोत्सव’ भी कहा जाता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं….
‘पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।’
अर्थात रसस्वरूप अमृतमय चन्द्रमा होकर सम्पूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं। (गीताः15.13)
वैज्ञानिक भी मानते हैं की शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य व सकारात्मकता देने वाली मानी जाती है क्योंकि चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है। आज की रात चन्द्रमा की किरणों में खास तरह के लवण व विटामिन आ जाते हैं। पृथ्वी के पास होने पर इसकी किरणें सीधे जब खाद्य पदार्थों पर पड़ती हैं तो उनकी क्वालिटी में बढ़ौतरी हो जाती है।
हिन्दू पंचांग के आनुसार शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी पूर्णिमा से ज्यादा है, क्योंकि आशिवन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शास्त्रों में इस पूर्णिमा का महत्व बताया गया है। कहा जाता है की धन की देवी माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस लिए इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।
शरद पूर्णिमा के विषय में विख्यात है, कि इस दिन कोई व्यक्ति किसी अनुष्ठान को करे, तो उसका अनुष्ठान अवश्य सफल होता है। तीसरे पहर इस दिन व्रत कर हाथियों की आरती करने पर उतम फल मिलते है।
इस दिन के संदर्भ में एक मान्यता प्रसिद्ध है, कि इस दिन भगवान श्री कृ्ष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था. इस दिन चन्द्रमा कि किरणों से अमृत वर्षा होने की किवदंती प्रसिद्ध है। इसी कारण इस दिन खीर बनाकर रत भर चांदनी में रखकर अगले दिन प्रात: काल में खाने का विधि-विधान है।
द्वापर युग में भगवन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। तब मां लक्ष्मी के रूप में धरातल में अवतरित हुई थी। कहा जाता है की शरद पूर्णिमा की रात भगवन श्री कृष्ण ने बंशी बजाकर गोपियों को अपने पास बुलाय था, और उनसे रास रचाई थी। इसलिए इसे “रास पूर्णिमा या कामुदी “महोत्सव भी कहा जाता है। अत : शरद पूर्णिमा की रात्री का विशेष महत्व है। मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी शरद पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। इसलिए इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है।
पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में इस दिन कुमारी कन्याएं प्रातः स्नान करके पूर्ण विधि विधान से भगवान सूर्य और चन्द्रमा की पूजा करती हैं। जिससे उन्हें योग्य एवं मनचाहा पति प्राप्त हो।
हिन्दु धर्म शास्त्रों में मान्यता है कि माँ लक्ष्मी को खीर बहुत प्रिय है इसलिए हर पूर्णिमा को माता को खीर का भोग लगाने से कुंडली में धन का प्रबल योग बनता है। लेकिन शरद पूर्णिमा के दिन माँ लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने का और भी विशेष महत्व है।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शरद पूर्णिमा बहुत सारे शुभ संयोग एक साथ लेकर आती है। कहा जाता है की इस दिन समुद्र मंथन हुआ था, उसमें से देवी लक्ष्मी का प्राकट्य हुआ था। इस दिन मां लक्ष्मी संग चंद्रमा के पूजन करने का विधान है।
शरद पूर्णिमा इसलिए भी खास है क्योंकि देवी लक्ष्मी को दीपावली पर हमेशा के लिए अपने पास रखने की तैयारी शुरू हो जाती है। चांद की चांदनी अमृत किरणों की वर्षा करती है और देवी लक्ष्मी अपने भक्तों को बनाती हैं अपार धन-संपदा के मालिक।
आज के दिन किए गए कुछ उपाय कर सकते हैं आपकी हर इच्छा को पूरा। सूर्यास्त के बाद जब चांद की किरणें चारों और फैलती हैं, उस समय करें चंद्र देव और देवी लक्ष्मी को प्रसन्न। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की मध्य रात्री के बाद माता लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर धरती पर आई थी। वह यह देखने की कौन को जाग रहा है। इसलिए इस पूर्णिमा की रात को “कोजागरा” भी कहा जाता है।
“कोजागरा”का अर्थ है कौन जाग रहा है। कहते है की जो भक्त रात में जागकर मा लक्ष्मी की पूजा अर्चना करते है। उन पर माता लक्ष्मी अवश्य ही प्रसन होती है।
शरद पूर्णिमा और धार्मिक मान्यता
शरद पूर्णिमा से ही स्नान और व्रत प्रारम्भ हो जाता है। माताएं अपनी संतान की मंगल कामना से देवी-देवताओं का पूजन करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। कार्तिक का व्रत भी शरद पूर्णिमा से ही प्रारम्भ होता है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की विवाह होने के बाद पूर्णिमा (पूर्णमासी) के व्रत का नियम शरद पूर्णिमा से लेना चाहिए। शरद ऋतु में मौसम एकदम साफ़ रहता है। इस दिन आकाश में न तो बादल होते हैं। और न ही धूल-गुबार। इस रात्रि में भ्रमण और चंद्रकिरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है। प्रति पूर्णिमा को व्रत करने वाले इस दिन भी चंद्रमा का पूजन करके भोजन करते हैं। इस दिन शिव-पार्वती और कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है। यही पूर्णिमा कार्तिक स्नान के साथ, राधा-दामोदर पूजन व्रत धारण करने का भी दिन है।
शारद पूर्णिमा के दिन खीर सेवन का महत्त्व
शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा सोलह कलाओं से संपन्न होकर अमृत वर्षा करता है इसलिए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद मानकर खाया जाता है। माना जाता है की इससे रोग मुक्ति होती है और उम्र लंबी होती है। निरोग तन के रूप में स्वास्थ्य का कभी न खत्म होने वाला धन दौलत से भरा भंडार मिलता है।
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूल क्वाथ, सौंठ, काली मिर्च, वासा, अर्जुन की छाल चूर्ण, तालिश पत्र चूर्ण, वंशलोचन, बड़ी इलायची पिप्पली इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकाएं और खीर बना लेंI खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें, अब इस खीर को तांबे के साफ बर्तन में रात भर पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीचे ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें और अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्घ देकर,अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे प्रातः) सेवन कराएं I
इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है I रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है , इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना हैI इस खीर को मधुमेह से पीड़ित रोगी भी ले सकते हैं, बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें I
उक्त खीर को स्वस्थ व्यक्ति भी सेवन कर सकते हैं ,बल्कि इस पूरे महीने मात्रा अनुसार सेवन करने साइनोसाईटीस जैसे उर्ध्वजत्रुगत (ई.एन.टी.) से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभ मिलता हैI कई आयुर्वेदिक चिकित्सक शरद पूर्णिमा की रात दमे के रोगियों को रात्रि जागरण के साथ कर्णवेधन भी करते हैं, जो वैज्ञानिक रूप सांस के अवरोध को दूर करता हैI तो बस शरद पूर्णिमा को पूनम की चांदनी का सेहत के परिप्रेक्ष्य में पूरा लाभ उठाएं बस ध्यान रहे दिन में सोने को अपथ्य माना गया है।
कैसे मनाएँ शरद पूर्णिमा
इस दिन प्रात: काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करके आवाहन, आसान, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से उनका पूजन करना चाहिए।
रात्रि के समय गौदुग्ध (गाय के दूध) से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर अर्द्धरात्रि के समय भगवान को अर्पण (भोग लगाना) करना चाहिए।
पूर्ण चंद्रमा के आकाश के मध्य स्थित होने पर उनका पूजन करें तथा खीर का नैवेद्य अर्पण करके, रात को खीर से भरा बर्तन खुली चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें तथा सबको उसका प्रसाद दें।
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शरद पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनानी चाहिए। कथा सुनने से पहले एक लोटे में जल तथा गिलास में गेहूं, पत्ते के दोनों में रोली तथा चावल रखकर कलश की वंदना करके दक्षिणा चढ़ाए। फिर तिलक करने के बाद गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुनें। फिर गेहूं के गिलास पर हाथ फेरकर मिश्राणी के पांव स्पर्श करके गेहूं का गिलास उन्हें दे दें। लोटे के जल का रात को चंद्रमा को अर्ध्य दें।
शरद पूर्णिमा की कथा
एक साहूकार की दो पुत्रियां थीं। वे दोनों पूर्णमासी का व्रत करती थीं। बड़ी बहन तो पूरा व्रत करती थी पर छोटी बहन अधूरा। छोटी बहन के जो भी संतान होती, वह जन्म लेते ही मर जाती। परन्तु बड़ी बहन की सारी संतानें जीवित रहतीं। एक दिन छोटी बहन ने बड़े-बड़े पण्डितों को बुलाकर अपना दु:ख बताया तथा उनसे कारण पूछा। पण्डितों ने बताया-‘तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती हो, इसीलिए तुम्हारी संतानों की अकाल मृत्यु हो जाती है। पूर्णिमा का विधिपूर्वक पूर्ण व्रत करने से तुम्हारी संतानें जीवित रहेंगी।’ तब उसने पण्डितों की आज्ञा मानकर विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया। कुछ समय बाद उसके लड़का हुआ, लेकिन वह भी शीघ्र ही मर गया। तब उसने लड़के को पीढ़े पर लेटाकर उसके ऊपर कपड़ा ढक दिया। फिर उसने अपनी बड़ी बहन को बुलाया और उसे वही पीढ़ा बैठने को दे दिया। जब बड़ी बहन बैठने लगी तो उसके वस्त्र बच्चे से छूते ही लड़का जीवित होकर रोने लगा। तब क्रोधित होकर बड़ी बहन बोली-‘तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी। यदि मैं बैठ जाती तो लड़का मर जाता।’ तब छोटी बहन बोली-‘ यह तो पहले से ही मरा हुआ था। तेरे भाग्य से जीवित हुआ है। हम दोनों बहनें पूर्णिमा का व्रत करती हैं तू पूरा करती है और मैं अधूरा, जिसके दोष से मेरी संतानें मर जाती हैं। लेकिन तेरे पुण्य से यह बालक जीवित हुआ है।’ इसके बाद उसने पूरे नगर में ढिंढोरा पिटवा दिया कि आज से सभी पूर्णिमा का पूरा व्रत करें, यह संतान सुख देने वाला है।
शरद पर्णिमा पर ये कार्य अवश्य करें
कहा जाता है की व्यक्ति इस दिन व्रत के साथ अपने मन को साफ़ रखना चाहिय | कोई भी व्यक्ति तांबे या मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके उसकी पूजा करनी चाहिए | शाम के समय चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 101 दीपक जलाने चाहिए | इस के बाद खीर तैयार करे | उसे शुद्ध पत्र में डाल कर उसे चंद्रमा की चांदनी में रखे | इसे एक पहर या 3 घंटे बाद लक्ष्मी को अर्पित करे | इसके बाद यह खीर सात्विक ब्राह्मणों को प्रसाद के रूप में परोसे या इसका भोजन करवाए | इस दिन आप भजन कीर्तन भी कर सकते है | सुबह के समय स्नान करके लक्ष्मीजी वह प्रतिमा किसी आचार्य को देदे |
कहा जाता है की सर्दपूर्णिमा की रात महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं | और मन ही मन संकल्प करती है की कोन मेरी सेवा कर रहा ही कोण नहीं और जमीं पर कोन मेरे लिए जागकर मेरी पूजा कर रहा है | उस व्यक्ति को में आज घन का भंडार दूंगी | इस प्रकार प्रतेक वर्ष किया जाने वाला शरद पूर्णिमा का उपवास लक्ष्मीजी को संतुष्ट और प्रसन्न करने के लिए करते है | कहा जाता है की मा लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।
आज की रात कुछ देर चाँद के रौशनी में बैठे– शरद पूर्णिमा को औषधि गुणों वाली रात माना जाता है | इस योग में ग्रहण की गई औषधि बहुत जल्दी लाभ पहुँचाती है | जिससे मन को शांति मिलती है |
आखों की रोशनी बढाने का उपाय- अगर आपकी आँख कमजोर है तो आप आज की रात में चाँद को थोड़े समय तक लगातार देखें | ऐसा थोड़ी थोड़ी देर में करे रहें इससे आपके आखों को शीतलता मिलेगी |
रात 12 बजें तक अवश्य जागें, हरिनाम, भजन-कीर्तन करें। रात 12 बजे के बाद चांद की रोशनी में पड़ी खीर खाएं, परिजनों में बांटें।
चांद की पूजा सफेद पुष्पों से करें। मां लक्ष्मी की पूजा पीले फूलों से करें। पंचामृत से लक्ष्मी का अभिषेक करें। चांदी खरीदना बहुत शुभ होता है। सामर्थ्य न हो तो अष्टधातु खरीद सकते हैं।
चांदी से निर्मित देवी लक्ष्मी का दूध से अभिषेक करें। एक महीने के अंदर कर्ज समाप्त हो जाएगा और धन से संबंधित कोई भी परेशानी शेष नहीं रहेगी।
संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग अपने वाद्य यंत्रों को हल्दी-कुमकुम और पुष्प अर्पित करके धूप-दीप दिखाएं।
यात्रा करना बहुत शुभ होता है, न कर सकें तो रूमाल में हल्दी, सुपारी और दक्षिणा बांध कर भगवान के पास रख दें। जिस दिन यात्रा के लिए जाएं उस दिन ये रूमाल साथ ले जाएं, सफलता मिलेगी।
चांद की रोशनी में मखाने और पान खाने से नवविवाहित जोड़ों (विवाहित जोड़े भी खाएं) को देवी लक्ष्मी कभी पीठ नहीं दिखाती।
शरद पूर्णिमा पर फल और दूध का दान अवश्य करें। इस समय चंद्रमा की उपासना भी करनी चाहिए।
लक्ष्मी पूजा घर के पूजा स्थल या तिजोरी रखने वाले स्थान पर करनी चाहिए, व्यापारियों को अपनी तिजोरी के स्थान पर पूजन करना चाहिए।
मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है, सुपारी को पूजा में रखें, पूजा के के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेट कर उसका अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखें, धन की कभी कमी नहीं होगी।
इस दिन तांबे के बरतन में देशी घी भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन -लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़े आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है ।
इस दिन श्रीसूक्त, लक्ष्मीसत्रोत का पाठ एवं हवन करना भी बेहद शुभ माना जाता है।
स्त्री को लक्ष्मी का रूप माना गया है अत: जो भी व्यक्ति इस दिन अपने घर की सभी स्त्रियों माँ, पत्नी, बहन, बेटी, भाभी, बुआ, मौसी, दादी आदि को प्रसन्न रखता है उनका आशीर्वाद लेता है, उनको यथाशक्ति उपहार देता है , माँ लक्ष्मी उस घर से कभी भी नहीं जाती है उस व्यक्ति को जीवन में किसी भी वस्तु का आभाव नहीं रहता है । इस दिन स्त्रियों का आशीर्वाद साक्षात माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद ही होता है, अत: उन्हें किसी भी दशा में नाराज़ नहीं करना चाहिए ।
इस दिन संध्या के समय 100 या इससे अधिक घी के दीपक जलाकर घर के पूजा स्थान, छत, गार्डन, तुलसी के पौधे, चारदिवारी आदि के पास रखने से, अर्थात इन दीपमालाओं से घर को सजाने से भी माँ लक्ष्मी की असीम कृपा प्राप्त होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन रात्रि में चन्द्रमा को एक टक ( बिना पलके झपकाये ) देखना चाहिए । इससे नेत्रों के विकार दूर होते है आँखों की रौशनी बढ़ती है ।
शरद पूर्णिमा के दिन रात को चन्द्रमा की चाँदनी में एक सुई में धागा अवश्य पिरोने का प्रयास करें , उस समय चन्द्रमा के प्रकाश के अतिरिक्त कोई भी और प्रकाश नहीं होना चाहिए। माना जाता है इस प्रयोग को करने से, अर्थात सुई में धागा सफलता पूर्वक पिरोने से वर्ष भर ऑंखें स्वस्थ रहती है।
ध्यान दें– ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया की उक्त समस्त जानकारियां जयोतिषीय शास्त्र के अनुसार है परंतु इनको अपनाने से पहले किसी ज्योतिषीय विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है | आपकी कुंडली दिखा कर इन बताये प्रयोगों को करे |
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)