चार धाम यात्रा 2018: अप्रैल से खुलेंगे चारों धाम के कपाट
चार धाम की यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं को अब और इंतज़ार नहीं करना होगा. इस माह यानि अप्रैल माह से ही उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा शुरू हो जाएगी. आस्था का केंद्र माने जाने वाले इन मंदिरों के कपाट इस माह ही खुल जायेंगे और सबसे पहले यमुनोत्री के कपाट खुलेंगे. मंदिरों के कपाट खुलने के बाद अगले छह महीने तक श्रद्धालु हिमालय की सुंदर चोटियों के बीच बसे इन देव स्थलों के दर्शन का लाभ उठा पाएंगे. मंदिर प्रशासन की ओर से इन सभी मंदिरों के खुलने की तारीख और समय का ऐलान कर दिया गया है.
यमुनोत्री धाम– यमुनोत्री धाम के दरवाजे भक्तों को लिए 18 अप्रैल को दिन में 12.15 पर खोल दिए जाएंगे.
हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में बसा “यमुनोत्री धाम” हिन्दुओ के चार धामों में से एक है. यमुनोत्री मंदिर गढ़वाल हिमालय के पश्चिम में समुद्र तल से 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है.यह मंदिर चार धाम यात्रा का पहला धाम अर्थात यात्रा की शुरूआत इस स्थान से होती है तथा यह चार धाम यात्रा का यह पहला पड़ाव है.यमुनोत्री धाम का इतिहास यानी मंदिर का निर्माण टिहरी गढ़वाल के महाराजा प्रतापशाह ने सन 1919 में देवी यमुना को समर्पित करते हुए बनवाया था. यमुनोत्री मंदिर भुकम्प से एक बार पूरी तरह से विध्वंस हो चुका है.और इस मंदिर का पुनः निर्माण जयपुर
की “महारानी गुलेरिया” के द्वारा 19वीं सदी में करवाया गया था.
यमुनोत्री का वास्तविक स्रोत जमी हुयी बर्फ की एक झील और हिमनंद (चंपासर ग्लेशियर) है.जो समुन्द्र तल से 4421 मीटर की ऊँचाई पर कालिंद पर्वत पर स्थित है.मंदिर के मुख्य कर्व गृह में माँ यमुना की काले संगमरमर की मूर्ति विराजत है |इस मंदिर में यमुनोत्री जी की पूजा पुरे विधि विधान के साथ की जाती है.यमुनोत्री धाम में पिंड दान का विशेष महत्व है.श्रद्धालु इस मंदिर के परिसर में अपने पितरो का पिंड दान करते है.
गंगोत्री मंदिर– गंगोत्री मंदिर के कपाट अक्षय तृतीया के दिन यानी 18 अप्रैल को दिन में 1.15 मिनट पर भक्तों के लिए खोल दिए जाएंगे. मां के इस धाम तक पहुंचने के लिए आपको चढ़ाई नहीं करनी होती वाहन मंदिर तक पहुंच सकता है.
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में यह मंदिर मां गंगा को समर्पित है यहां से करीब 18 किलोमीटर ऊपर गंगा जी का उद्गम स्थल है गोमुख के नाम से जाना जाता है. यह चार धाम यात्रा का दूसरा पवित्र पड़ाव है , जो कि यमुनोत्री धाम के बाद आता है.गंगोत्री मंदिर हिन्दुओ का एक पवित्र व तीर्थ स्थान है.गंगोत्री मंदिर भागीरथी नदी के तट पर स्थित है.यह मंदिर 3100 मीटर (10,200 फीट) की ऊँचाई पर ग्रेटर हिमालय रेंज पर स्थित है.यह स्थान गंगा नदी का उद्गम स्थल है.गंगोत्री मंदिर भारत का सबसे प्रमुख मंदिर है.गंगोत्री में गंगा का उद्गम स्रोत यहाँ से लगभग 24 किलोमीटर दूर गंगोत्री ग्लेशियर में 4,225 मीटर की ऊँचाई पर होने का अनुमान है.गंगा का मन्दिर तथा सूर्य, विष्णु और ब्रह्मकुण्ड आदि पवित्र स्थल यहीं पर हैं.
केदारनाथ मंदिर– भोलेनाथ के दर्शन के लिए बाबा केदारनाथ के इस धाम के कपाट 29 अप्रैल को सुबह 6.15 मिनट पर खोले जाएंगे. भगवान भोलेशंकर के इस धाम में पहुंचने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश वाहन तो मिल जाते हैं लेकिन वाहन केवल गौरीकुंड तक ही जाते हैं. यहां से करीब 21 किमी की चढ़ाई के बाद आप बाबा के धाम तक पहुंच पाएंगे.
उत्तराखण्ड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मन्दिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है.यह उत्तराखंड का सबसे विशाल शिव मंदिर है, जो कटवां पत्थरों के विशाल शिलाखंडों को जोड़कर बनाया गया है.ये शिलाखंड भूरे रंग की हैं.मंदिर लगभग 6 फुट ऊंचे चबूतरे पर बना है.इसका गर्भगृह प्राचीन है जिसे 80वीं शताब्दी के लगभग का माना जाता है.केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है.एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड.केदारनाथ मंदिर न सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी.इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी आज भी मौजूद है.केदारनाथ धाम के इतिहास के साथ साथ केदारनाथ धाम की मान्यताये को भी जरुर पढ़े.केदारनाथ धाम के इतिहास के अनुसार केदारनाथ मंदिर में स्थित शिवलिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. जयोतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही समस्त पापो से मुक्ति मिल जाती है.केदारनाथ मंदिर के किनारे मे केदारेश्वर धाम स्थित है.पत्थरो से बने कत्य्रुई शैली से बने केदारनाथ मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था.लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि इसकी स्थापना आदिगुरू शंकराचार्य ने की.केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राह्मण ही होते है. श्री केदारनाथ मंदिर में शंकर बैल की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में पूजे जाते है.शिव की भूजाए तुंगनाथ में , मुख रुद्रनाथ में , नाभि मदम्देश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए. इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को “पंचकेदार” कहा जाता है.
बद्रीनाथ धाम– बद्रीनाथ धाम के कपाट 30 अप्रैल को प्रातः 4.30 बजे खोले जाएंगे. बद्रीनाथ धाम में 9 मई, 2018 को हीरों और रत्नों से जड़ित स्वर्ण छत्र बदरीनाथ गर्भगृह में स्थापित किया जाएगा.वर्तमान में बद्री्नाथ गर्भगृह में वर्षों पुराना सोने का छत्र मौजूद है.सोने का यह छत्र करीब दो किलोग्राम का है, जिसे मध्य प्रदेश की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने चढ़ाया था.
बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नामक दो पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित है.ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं.यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है.ऋषिकेश से यह 214 किलोमीटर की दुरी पर उत्तर दिशा में स्थित है.बद्रीनाथ मंदिर शहर में मुख्य आकर्षण है.प्राचीन शैली में बना भगवान विष्णु का यह मंदिर बेहद विशाल है.इसकी ऊँचाई करीब 15 मीटर है. माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने 8 वी सदी में मंदिर का निर्माण करवाया था.शंकराचार्य की व्यवस्था के अनुसार मंदिर का पुजारी दक्षिण भारत के केरल राज्य से होता है.यहाँ भगवान विष्णु का विशाल मंदिर है और पूरा मंदिर प्रकर्ति की गोद में स्थित है.यह मंदिर तीन भागों में विभाजित है. बद्रीनाथ जी के मंदिर के अन्दर 15 मुर्तिया स्थापित है.साथ ही साथ मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु की एक मीटर ऊँची काले पत्थर की प्रतिमा है. इस मंदिर को “धरती का वैकुण्ठ” भी कहा जाता है.बद्रीनाथ मंदिर में वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है.
नारायण के इस धाम में सीधे बस या अपने वाहन से पहुंचा जा सकता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए आपको कोई चढ़ाई नहीं करनी होती है. बदरीनाथ जाने के लिए आपको हरिद्वार या ऋषिकेश से बस मिल जाती है।