चैत्र नवरात्रि : महत्व, घट स्थापना, कन्या पूजन और देवी का वाहन
हमारा देश भारत रंग-बिरंगी त्यौहारों का देश है। यहाँ पर जीवन के हर एक प्रसंग के लिए त्यौहार है। नवरात्री का आगमन चैत्र माह और अश्विनी माह में होता है। नवरात्रि पर्व की तिथि प्रतिपदा से नवमी तिथि तक होती है। नवरात्रि त्यौहार हमारे देश में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
यह त्यौहार दुर्गा माँ के पूजन के लिए होता है। नौ दिन में माता के नौ रूप का पूजन किया जाता है। भक्त गण नवरात्री के दिनों में उपवास रख कर दुर्गा माँ के प्रति अपनी अटूट श्रद्धा प्रदर्शित करते हैं तथा स्वयं के लिए सुख समृद्धि की कामना करते हैं।
चैत्र नवरात्रि का महापर्व इस बार 18 से 25 मार्च 2018 तक मनाया जाएगा। नवरात्रि का पर्व इस बार आठ दिन का होगा। घट स्थापना सुस्थिर योग में होगी। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री के अनुसार नवमी तिथि का क्षय होने के कारण इस बार फिर से नवरात्रि का एक दिन घटने से यह आठ दिन की होगी।
यह होंगी चैत्र नवरात्र 2018 की तिथियां
18 मार्च (रविवार), घट स्थापना एवं माँ शैलपुत्री का पूजन।
19 मार्च (सोमवार), माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन।
20 मार्च (मंगलवार), माँ चंद्रघंटा की पूजा।
21 मार्च (बुधवार), माँ कुष्मांडा पूजा का पूजन।
22 मार्च (बृहस्पतिवार ), माँ स्कंदमाता का पूजन।
23 मार्च (शुक्रवार ), माँ कात्यायनी की पूजा।
24 मार्च (शनिवार), माँ कालरात्रि पूजा , माँ महागौरी पूजा, दुर्गा अष्टमी।
25 मार्च (रविवार ), 2018: राम नवमी।
26 मार्च (सोमवार ), 2018: नवरात्री परायाण।
मां दुर्गा का वाहन
नवरात्र के नौ दिनों में मां दुर्गा का वाहन क्या होगा शास्त्रों में इसे लेकर एक नियम है…
‘शशिसूर्ये गजारूढ़ा शनिभौमे तुरंगमे।
गुरौ शुक्रे च दोलायां बुधे नौका प्रकीर्ति्तता।।’
इस वर्ष हाथी पर आएंगी मां दुर्गा
इसका अर्थ है कि नवरात्र शुरू होने पर रविवार या सोमवार को मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आती हैं। शनिवार और मंगलवार माता घोड़े पर सवार होकर आती हैं। गुरुवार और शुक्रवार को माता पालकी में आती हैं और बुधवार को मां दुर्गा नाव पर सवार होकर आती है।इस बार पहला नवरात्र रविवार को पड़ रहा है, इसलिए मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आयेगी।
चैत्र नवरात्र का पर्व आत्मशुद्धि और मुक्ति के लिए होता हैं। वैसे भी सभी नवरात्र का आध्यात्मिक दृष्टि से अपना महत्व है।आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यह प्रकृति और पुरुष के संयोग का भी समय होता है। प्रकृति मातृशक्ति होती है इसलिए इस दौरान देवी की पूजा होती हैं । शक्ति ही विश्व का सृजन करती है, शक्ति ही उसका संचालन करती है, शक्ति ही उसका संहार करती है ।
इस प्रकार शक्ति ही सब कुछ है । शक्ति ब्रह्मा की सक्रिय अवस्था है । ब्रह्मा की क्रिया का नाम ही शक्ति है । जिस प्रकार उष्णता अग्नि से सर्वथा अभिन्न है उसी प्रकार शक्ति से ब्रह्मा अभिन्न है । माया, महामाया आदि शक्ति कै पर्यायवाची हैं । महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली शक्ति के तीन व्यक्त स्वरूप हैं ।
माँ दुर्गा के नौ रूप
(1)-माँ शैलपुत्री (2)-माँ ब्रह्मचारिणी (3)-माँ चन्द्रघण्टा (4)-माँ कुष्मांडा
(5)-माँ कात्यायनी (6)-माँ सिद्धिदात्री (7)-कालरात्रि (8)-माँ महागौरी
(9)-माँ स्कंदमाता
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण सृष्टि प्रकृतिमय है और वह सिर्फ पुरुष हैं। यानी हम जिसे पुरुष रूप में देखते हैं वह भी आध्यात्मिक दृष्टि से प्रकृति यानी स्त्री रूप है। स्त्री से यहां मतलब यह है कि जो पाने की इच्छा रखने वाला है वह स्त्री है और जो इच्छा की पूर्ति करता है वह पुरुष है।
नवरात्र के नौ दिनों में मनुष्य अपनी भौतिक, आध्यात्मिक, यांत्रिक और तांत्रिक इच्छाओं को पूर्ण करने की कामना से व्रतोपवास रखता है और ईश्वरीय शक्ति इन इच्छाओं को पूर्ण करने में सहायक होती है। इसलिए आध्यात्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना महत्व है।
इस बार चैत्र नवरात्र 18 मार्च से 26 मार्च तक रहेंगे। अबकी बार चैत्र नवरात्र में विशेष यह है कि लगातार चौथे वर्ष चैत्र नवरात्र 8 दिन की होगी, क्योंकि अष्टमी-नवमी तिथि एक साथ है। नवरात्रि की शुरुआत प्रतिपदा को सर्वार्थ सिद्धि योग में होगी।
जानिए चैत्र नवरात्र का महत्व
ज्योतिष की दृष्टि से चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्योंकि इस नवरात्र के दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन होता है। सूर्य 12 राशियों में भ्रमण पूरा करते हैं और फिर से अगला चक्र पूरा करने के लिए पहली राशि मेष में प्रवेश करते हैं। सूर्य और मंगल की राशि मेष दोनों ही अग्नि तत्व वाले हैं इसलिए इनके संयोग से गर्मी की शुरुआत होती है।
प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्र से नववर्ष के पंचांग की गणना शुरू होती है। इसी दिन से वर्ष के राजा, मंत्री, सेनापति, वर्षा, कृषि के स्वामी ग्रह का निर्धारण होता है और वर्ष में अन्न, धन, व्यापार और सुख शांति का आंकलन किया जाता है। नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा का कारण यह भी है कि ग्रहों की स्थिति पूरे वर्ष अनुकूल रहे और जीवन में खुशहाली बनी रहे।
धार्मिक दृष्टि से नवरात्र का अपना अलग ही महत्व है क्योंकि इस समय आदिशक्ति जिन्होंने इस पूरी सृष्टि को अपनी माया से ढ़का हुआ है जिनकी शक्ति से सृष्टि का संचलन हो रहा है जो भोग और मोक्ष देने वाली देवी हैं वह पृथ्वी पर होती है इसलिए इनकी पूजा और आराधना से इच्छित फल की प्राप्ति अन्य दिनों की अपेक्षा जल्दी होती है।
जहां तक बात है चैत्र नवरात्र की तो धार्मिक दृष्टि से इसका खास महत्व है क्योंकि चैत्र नवरात्र के पहले दिन आदिशक्ति प्रकट हुई थी और देवी के कहने पर ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण का काम शुरु किया था।
इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष शुरु होता है। चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में पहला अवतार लेकर पृथ्वी की स्थापना की थी। इसके बाद भगवान विष्णु का सातवां अवतार जो भगवान राम का है वह भी चैत्र नवरात्र में हुआ था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्र का बहुत महत्व है।
नवरात्र का महत्व सिर्फ धर्म, अध्यात्म और ज्योतिष की दृष्टि से ही नहीं है बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी नवरात्र का अपना महत्व है। ऋतु बदलने के लिए समय रोग जिन्हें आसुरी शक्ति कहते हैं उनका अंत करने के लिए हवन, पूजन किया जाता है जिसमें कई तरह की जड़ी, बूटियों और वनस्पतियों का प्रयोग किया जाता है।
देश भर में नवरात्र पर्व पर शक्ति के इन्हीं स्वरूपों की उपासना की जाती है । हमारे देश में नवरात्र-पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है । नवरात्र का पहला पर्व चैत्र मास में मनाया जाता है । इसका आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है । हिंदू जन अपने-अपने घरों में कलश स्थापना कर दुर्गा-पाठ या तो स्वयं करते हैं या अपने कुल पुरोहित से करवाते हैं ।
वे आठ दिन फलाहार करते है। आठवें दिन दुर्गाष्टमी का पर्व मनाया जाता है । दुर्गा-पाठ के पश्चात् हवन आदि होना है । नौवें दिन रामनवमी मनाई जाती है । इसी तिथि पर भगवान् राम ने माता कौशल्या के गर्भ से जन्म लिया था । इस दिन भी लोग व्रत रखकर फलाहार करते हैं ।
हमारे ऋषि मुनियों ने न सिर्फ धार्मिक दृष्टि को ध्यान में रखकर नवरात्र में व्रत और हवन पूजन करने के लिए कहा है बल्कि इसका वैज्ञानिक आधार भी है। नवरात्र के दौरान व्रत और हवन पूजन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही बढ़िया है। इसका कारण यह है कि चारों नवरात्र ऋतुओं के संधिकाल में होते हैं यानी इस समय मौसम में बदलाव होता है जिससे शारीरिक और मानसिक बल की कमी आती है। शरीर और मन को पुष्ट और स्वस्थ बनाकर नए मौसम के लिए तैयार करने के लिए व्रत किया जाता है।
नवरात्र का पर्व हमें सिखाता है- ‘प्रयत्न करो, पुरुषार्थ करो, परिश्रम करो, तप करो और तुम्हारे भीतर शक्ति का जो भंडार है, उसे खोल दो । तुम्हारे अंदर एक ऐसी शक्ति मौजूद है कि तुम उसकी सहायता से अपनी इच्छानुसार सबकुछ कर सकते हो “।
जानिए आखिर क्यों देवी मां को यह समय पसंद है और चैत्र नवरात्र का क्या है ज्योतिषीय महत्व…
- चैत्र नवरात्र से ही नववर्ष के पंचांग की गणना की जाती है.
- ऐसा कहा जाता है कि चैत्र नवरात्र के पहले मां आद्यशक्ति अवतरित हुर्इ थीं. ब्रह्म पुराण के अनुसार, देवी ने ब्रह्माजी को सृष्टि निर्माण करने के लिए कहा।
- चैत्र नवरात्र के तीसरे दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अवतार लिया था. श्रीराम का जन्म भी चैत्र नवरात्र में ही हुआ था।
- ज्योतिष की दृष्टि से भी चैत्र नवरात्र का विशेष महत्व है क्योंकि इसके दौरान सूर्य का राशि परिवत्रन होता है।
- कहा जाता है कि नवरात्र में देवी और नवग्रहों की पूजा से पूरे साल ग्रहों की स्थिति अनुकूल रहती है और जीवन खुशहाल रहता है।
- पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि चैत्र नवरात्र के दिनों में माता स्वयं पृथ्वी पर रहती हैं, इसलिए इनकी पूजा से इच्छित फल की प्राप्ति होती है।
इस चैत्र नवरात्रि 2018 में होंगे यह त्यौहार
आठ दिन की नवरात्रि में चार दिन खास होंगे। नवरात्रि के दिनों में 20 मार्च को गणगौर पूजा, 21 को सर्वार्थ सिद्धी योग, 22 को रवि योग एवं 23 को यमुना छठ पर्व मनाया जाएगा।
घट स्थापना का समय यह रहेगा
नवरात्रि के प्रथम दिन घट स्थापना सुबह मीन लग्न में सुबह 06.30 से 7.50बजे तक एवं दोपहर में 12.04 से 12.51 बजे तक का समय रहेगा।
इसके अलावा वृषभ लग्न एक स्थिर लग्न है इसलिए वृषभ लग्न में कलश स्थापित करना अधिक शुभ रहेगा। वृषभ लग्न सुबह 9:30 मिनट से 11:15 मिनट तक रहेगी। इस शुभ कार्यकाल में कलश स्थापित करने लाभकारी रहेगा।
आइए जाने नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन में क्या रखें सावधानियां..
नवरात्र में कन्या पूजन का बडा महत्व है । लेकिन हम मे से बहुत कम लोगो को ही कन्या पूजन से जुड़ी विशेष बाते पता होगी जैसे की कन्या पूजन विधि क्यों करते हैं ? कन्या पूजन विधि का लाभ और महत्व क्या हैं ? कन्या पूजन विधि के दौरान क्या सावधानियॉ रखने की खास आवश्यकता होती हैं और सबसे मत्वपूर्ण चीज की कन्या पूजन की विधि क्या हैं ? आइये इन सारी बातो को एक-एक करके विस्तार पूर्वक जानें…
ऐसी मान्यता है कि जप और दान से देवी इतनी खुश नहीं होतीं, जितनी कन्या पूजन से। शास्त्रों के अनुसार एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य, दो की पूजा से भोग और मोक्ष, तीन की अर्चना से धर्म, अर्थ व काम, चार की पूजा से राज्यपद, पांच की पूजा से विद्या, छ: की पूजा से छ: प्रकार की सिद्धि, सात की पूजा से राज्य, आठ की पूजा से संपदा और नौ की पूजा से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
देवी पुराण के अनुसार, इन्द्र ने जब ब्रह्मा जी से भगवती दुर्गा को प्रसन्न करने की विधि पूछी तो उन्होंने सर्वोत्तम विधि के रूप में कन्या पूजन ही बताया और कहा कि माता दुर्गा जप, ध्यान, पूजन और हवन से भी उतनी प्रसन्न नहीं होती जितना सिर्फ कन्या पूजन से हो जाती हैं |
दूसरी मान्यता है कि माता के भक्त पंडित श्रीधर के कोई संतान नहीं थी। उन्होंने नवरात्र के बाद नौ कन्याओं को पूजन के लिए घर पर बुलवाया। मां दुर्गा उन्हीं कन्याओं के बीच बालरूप धारण कर बैठ गई। बालरूप में आईं मां श्रीधर से बोलीं सभी को भंडारे का निमंत्रण दे दो। श्रीधर से बालरूप कन्या की बात मानकर आसपास के गांवों में भंडारे का निमंत्रण दे दिया। इसके बाद उन्हें संतान सुख मिला।
नवरात्रि में सामान्यतः तीन प्रकार से कन्या पूजन का विधान शास्त्रोक्त है…
- प्रथम प्रकार- प्रतिदिन एक कन्या का पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ कन्याओं का पूजन – इस पूजन को करने से कल्याण और सौभाग्य प्राप्ति होती है |
- दूसरा प्रकार- प्रतिदिन दिवस के अनुसार संख्या अर्थात प्रथम दिन एक, द्वितीय दिन दो, तृतीया – तीन नवमी – नौ कन्या (बढ़ते क्रम में ) अर्थात नौ दिनों में 45 कन्याओ का पूजन – इस प्रकार से पूजन करने पर सुख, सुविधा और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती
- तीसरा प्रकार – नौ कन्या का नौ दिनों तक पूजन अर्थात नौ दिनों में नौ X नौ = 81 कन्याओं का पूजन– इस प्रकार से पूजन करने पर पद, प्रतिष्ठा और भूमि की प्राप्ति होती है |
क्या हो कन्याओ की उम्र व अवस्था ?
शास्त्रों के अनुसार कन्या की अवस्था….
एक वर्ष की कन्या का पूजन नहीं करना चाहिए
दो वर्ष – कुमारी – दुःख-दरिद्रता और शत्रु नाश
तीन वर्ष – त्रिमूर्ति – धर्म-काम की प्राप्ति, आयु वृद्धि
चार वर्ष– कल्याणी – धन-धान्य और सुखों की वृद्धि
पांच वर्ष – रोहिणी – आरोग्यता-सम्मान प्राप्ति
छह वर्ष – कालिका – विद्या व प्रतियोगिता में सफलता
सात वर्ष – चण्डिका – मुकदमा और शत्रु पर विजय
आठ वर्ष – शाम्भवी – राज्य व राजकीय सुख प्राप्ति
नौ वर्ष – दुर्गा – शत्रुओं पर विजय, दुर्भाग्य नाश
दस वर्ष – सुभद्रा – सौभाग्य व मनोकामना पूर्ति
जानिए किस दिन करें कन्या पूजन
वैसे तो प्रायः लोग सप्तमी से कन्या पूजन शुरू कर देते हैं लेकिन जो लोग पूरे नौ दिन का व्रत करते हैं वह तिथि के अनुसार अथवा नवमी और दशमी को कन्या पूजन करते हैं । शास्त्रों के अनुसार कन्या पूजन के लिए दुर्गाष्टमी के दिन को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और शुभ माना गया है।
सर्वप्रथम व्यक्ति को प्रातः स्नान करना चाहिए। उसके पश्चात् कन्याओं के लिए भोजन अर्थात पूरी, हलवा, खीर, चने आदि को तैयार कर लेना चाहिए । कन्याओं के पूजन के साथ बटुक पूजन का भी महत्त्व है, दो बालकों को भी साथ में पूजना चाहिए एक गणेश जी के निमित्य और दूसरे बटुक भैरो के निमित्य कहीं कहीं पर तीन बटुकों का भी पूजन लोग करते हैं और तीसरा स्वरुप हनुमान जी का मानते हैं |
एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के अधूरी होती है।
पण्डित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि कन्याओं को माता का स्वरुप समझ कर पूरी भक्ति-भाव से कन्याओं के हाथ पैर धुला कर उनको साफ़ सुथरे स्थान पर बैठाएं | ऊँ कुमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं का पंचोपचार पूजन करें । सभी कन्याओं के मस्तक पर तिलक लगाएं, लाल पुष्प चढ़ाएं, माला पहनाएं, चुनरी अर्पित करें तत्पश्चात भोजन करवाएं | भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें।
भोजन के बाद कन्याओं के विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा/उपहार देकर हाथ में पुष्प लेकर यह प्रार्थना करे…
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्।।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।।
तब वह पुष्प कुमारी के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।
क्या रखें नवरात्रि में कन्या पूजन विधि में सावधानियॉ ?
कन्याओ की आयु दो वर्ष से कम न हो और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो।
एक वर्ष या उससे छोटी कन्याओं की पूजा नहीं करनी चाहिए।
कन्या पूजन में ध्यान रखें कि कोई कन्या हीनांगी, अधिकांगी, अंधी, काणी, कूबड़ी, रोगी अथवा दुष्ट स्वाभाव की नहीं होनी चाहिए |
एक-दो-तीन कितने भी बटुक पूजें पर कन्या पूजन बिना बटुक पूजन के न करे ।
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पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)