कम खर्च में सर्वाधिक दूध देने वाली नस्ल की गाय है थारपारकर
थारपारकर गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है. गुजरात राज्य के कच्छ में भी इस गाय की बड़ी संख्या है. थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल ‘मालाणी’ (बाड़मेर) है. यह गाय अत्यधिक दूध के लिए प्रसिद्ध है. राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे ‘मालाणी नस्ल’ के नाम से जाना जाता है. थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं. इस गाय के स्वरूप को देखकर लोक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के पास यही गाय थी, जो अब पश्चिमी राजस्थान की ‘कामधेनु’ के रूप में मान्य है.
थारपारकर नस्ल की गाय का मूल स्थान
देशी गौवंश में थारपारकर का कोई मुकाबला नहीं है. मूलतः यह नस्ल कराची (पाकिस्तान) के पास थारपारकर ज़िले की है. सरहदी होने से पश्चिमी राजस्थान में इस गौवंश का प्रभाव अधिक है. थारपारकर नस्ल की गाय को दूर से ही पहचाना जा सकता है.सफ़ेद रंग, पूर्ण विकसित माथा, कानों की तरफ़ झुके हुए मध्यम सींग, सामान्य कद-काठी वाली इन गायों की ऊँचाई साढ़े तीन से पौने चार फीट होती है. शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होने के साथ ही सबसे कम खर्च में सर्वाधिक दूध देने वाली यह गाय क्षेत्रीय ग्रामीणों के लिए जीवन निर्वाह का सम्बल है.
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थारपारकर नस्ल की अन्य विशेषता
इसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहोत अच्छी होती है. ये शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होने के साथ ही सबसे कम खर्च में सर्वाधिक दूध देने वाली गाय मानी जाती है. थारपारकर गाय का विकास कांकरेज, सिन्धी और नागोरी नस्लों से किया गया है.
इस नस्ल को दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल माना जाता है. इस नस्ल के बैल बहोत मेहनती होते हैं
नर थारपारकर को सूखे के उद्देश्य के लिए अच्छा माना जाता है. ये जानवर सूखे और चारे की कमी की स्थिति के दौरान छोटे जंगली वनस्पतियों पर भी फल-फूल सकते हैं.
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थारपारकर गाय का दूध उत्पादन
थारपारकर गाय अच्छी दूध उत्पादक मानी जाती हैं. इनके दूध में पांच फ़ीसदी वसा पायी जाती है. इस नस्ल की गाय प्रतिदन दस लीटर तक दूध देती हैं.
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बढ़ी थारपारकर नस्ल की गाय की डिमांड
भारत की आज़ादी के बाद इस महत्त्वपूर्ण नस्ल के संरक्षण व संवर्द्धन की आवश्यकता महसूस की गई. इसके लिए हवा, भूमि की उपलब्धता, चारा-पानी आदि के लिहाज से जैसलमेर ज़िले को उपयुक्त मानकर चाँधन में एक केन्द्र की स्थापना की गई है. आरंभिक दौर में इसका नाम ‘बुल मदर फॉर्म’ था. थारपारकर नस्लीय गौवंश की मांग पूरे देश में है.नागालैण्ड, मणिपुर, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल और सिक्किम जैसे कुछ राज्यों को छोड़कर भारतवर्ष में सभी राज्यों में इसे श्रेष्ठ देशी गाय के रूप में स्वीकारा गया है. देश के पशुपालन व डेयरी संस्थानों में इसकी काफ़ी मांग बनी रहती है.
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