हिंदू धर्म ग्रंथों में छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक बताया गया है, छठ पूजा शुभ मुहूर्त, महत्व, पूजा विधि और कथा से आप बहुत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
छठ पूजा के पर्व पर विशेष रूप से सूर्यदेव की पूजा की जाती है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है। इसमें शाम को डूबते सूर्य और उगते सूर्य को जल दिया जाता है। पुराणों के अनुसार छठ पूजा महाभारत काल से शुरु हुई थी। इस पूजा को सबसे पहले कर्ण ने शुरु किया था। भगवान सूर्य नारायण की कृपा से ही कर्ण एक महान योद्धा बना था। छठ पूजा पर स्नान और दान को भी विशेष महत्व दिया जाता है। तो आइए जानते हैं छठ पूजा के महत्व और पूजा विधि के बारे में…
छठ पूजा का महत्व
भगवान सूर्य की आराधना साल में दो बार की जाती है। पहले उनकी पूजा चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि और दूसरी र्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन भगवान सूर्यनारायण की पूजा की जाती है। लेकिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ को मुख्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है। छठ पूजा चार दिनों तक की जाती है। जिसे छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि नामों से जाना जाता है।
छठ पूजा में स्नान और दान को विशेष महत्व दिया जाता है। पुराणों के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद भगवान राम ने जिस समय राम राज्य की स्थापना की थी उस दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि थी। जिसमें माता सीता और भगवान राम ने व्रत रखा था और भगवान सूर्यनारायण की आराधना की थी। इसके बाद सप्तमी को पुन: एक बार अनुष्ठान कर भगवान सूर्य से आर्शीवाद लिया था छठ पूजा के बारे में एक और कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार सूर्य पुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की थी। कर्ण भगवान सूर्य के बहुत बड़े भक्त थे। वह रोज कई घंटों तक पानी में खड़े रहकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देते थे। सूर्य देव की कृपा से वह एक महान योद्धा बने थे। इसी कारण सूर्य को आज भी अर्ध्य दिया था।
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छठ व्रत विधि
खाए नहाय
छठ पूजा का व्रत चार दिन तक किया जाता है। पहले दिन नहाने और खाने की विधि होती है। इस दिन घर की साफ- सफाई करके शुद्ध किया जाता है और शाकाहारी भोजन बनाकर ग्रहण किया जाता है।
खरना
दूसरे दिन छठ पूजा में खरना विधि होती है।जिसमें पूरे दिन उपवास रखा जाता है। शाम के समय गन्ने का रस या फिर गुड़ में चावल बनाकर खीर का प्रसाद बनाकर खाना चाहिए।
शाम का अर्घ्य
तीसरे दिन भी व्रत रखकर शाम के समय में डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके लिए सभी पूजा सामग्री को लकड़ी की डलिया में रखकर घाट पर ले जाते हैं। शाम के समय में घर आकर सभी समान को उसी प्रकार रख दिया जाता है। इस दिन रात में छठी माता के गीत और व्रत की कथा भी सुनी जाती है।
सुबह का अर्घ्य:
चौथे और अंतिम दिन सूर्योदय से पहले ही घाट पर पहुंचा जाता है और उगते सूर्य की पहली किरण को जल दिया जाता है। इसके बाद छठी माता को स्मरण और प्रणाम करने के बाद उनसे संतान की रक्षा का वर मांगा जाता है। इसके बाद घर लौटकर प्रसाद का वितरण करें।