छठ का पर्व 31 अक्टूबर से नहाय खाय के साथ शुरू हो चुका है। आज छठ का दूसरा दिन खरना मनाया जाएगा। खास बात यह है कि आज के दिन बेहद शुभ संयोग बन रहा है।
छठ पर रवि योग का ऐसा संयोग बना है जो नहाय खाय से लेकर 2 नवंबर तक बना रहेगा। इसी शुभ योग में सूर्य देव को संध्या कालीन अर्घ्य भी दिया जाएगा।
क्या होता है खरना
सूर्य उपासना का यह लोकपर्व छठ 4 दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरूआत नहाय-खाय से होती है। अगले दिन खरना किया जाता है। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। दरअसल, छठ का व्रत करने वाले व्रती नहाय खाय के दिन पूरा दिन उपवास रखकर केवल एक ही समय भोजन करके अपने शरीर से लेकर मन तक को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है। यही वजह है कि इसे खरना के नाम से बुलाया जाता है। इस दिन व्रती साफ मन से अपने कुलदेवता और छठ मैय्या की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद चढ़ाते हैं। आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
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खरना का धार्मिक महत्व
खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है और ये चूल्हा मिट्टी का बना होता है। चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है खरना इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन जब व्रती प्रसाद खा लेती हैं तो फिर वे छठ पूजने के बाद ही कुछ खाती हैं।
खरना के बाद आसपास के लोग भी व्रतियों के घर पहुंचते हैं और मांगकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। गौरतलब है कि इस प्रसाद के लिए लोगों को बुलाया नहीं जाता बल्कि लोग खुद व्रती के घर पहुंचते हैं।
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खरना व्रत रखने की विधि
– खरना के दिन से महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है।
– ये व्रत उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के बाद समाप्त होता है।
– इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को स्नान करके विधि-विधान से रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार करती है।
– खीर के अलावा पूजा के प्रसाद में मूली, केला भी रखा जाता है।
– इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है।
– व्रती महिलाएं भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करने के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं।