छठ पूजा में उगते और ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान सूर्य को काशी में भी कुछ समय तक रहना पड़ा था।
उत्तर भारत में अब दिवाली के बाद छठ पूजा की तैयारी शुरू हो चुकी है. इस त्योहार को उत्तर भारत के बिहार राज्य में बहुत श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. यह हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है. बिहार के साथ ही उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ क्षेत्रों में छठ पूजा की अनूठी छवि देखने को मिलती है.छठ पूजा में उगते और ढलते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान सूर्य को काशी में भी कुछ समय तक रहना पड़ा था। चलिए जानते हैं क्यों भगवान सूर्य को जाना पड़ा काशी
भगवान सूर्य का काशीगमन
एक बार भगवान शिव ने सूर्यदेव को बुलाकर कहा सप्तवाहन! तुम मडंग्लमयी काशीपुर को जाओ। वहां का राजा परम धार्मिक है। उसका नाम दिवोदास है। राजा के धर्म विरुद्ध आचरण से जिस प्रकार आचरण से जिस प्रकार काशी उजड़ जाय, वैसा उपाय करो। परंतु उस राजा का अपमान मत करना, क्योंकि धर्माचारण में लगे हुए सतपुरुष को जो अनादर किया जाता है वह अपने ऊपर ही पड़ता है और ऐसा करने से महापाप होता है। यदि तुम्हारे बुद्धिबल से राजा धर्मच्युत हो जाय।
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तब अपनी दु:सह किरणों से तुम नगर को उजाड़ देना। मैने देवताओं और योगनियों को काशी भेजकर देख लिया। वे सब मिलकर भी देवोदास के धर्माचरण में कोई छिद्र न ढुंढ सके और असफल होकर लौट आए। दिवाकर! इस संसार में जितने जीव हैं उन सबकी चेष्टाओं को तुम जानते हो। इसलिए लोकचक्षु कहलाते हो। अत: मेरे कार्य की सिद्धि के लिए तुम शीघ्र जाओ।मैं काशी को दिवोदास से खाली कराकर वहां निवास करना चाहता हूं। भगवान शिव की आज्ञा पाकर शिरोधार्य करके सूर्यदेव काशी गए।
वहां बाहर- भीतर विचरते हुए उन्होंने राजा में थोड़ा सा भी धर्म का व्यतिक्रम नही देखा। वे अनेक रूप धारण काशी में रहें। कभी – कभी उन्होंने नाना प्रकार के दुष्टान्तों और कथानकोंद्वारा अनेक प्रकार के व्रत का उपदेश करके काशी काशी के नर नारियों को बहकाने की चेष्टा की, किंतु वे किसी को भी धर्म मार्ग से डिगाने में सफल नही हुए। इस प्रकार काशी में विचरते हुए सूर्य ने कभी किसी भी मनुष्य के धर्माचरण में किसी प्रकार का प्रमाद नही पाया। दुर्लभ काशीपुरी को पाकर कौन सचेत पुरुष उसे छोड़ सकता है। इस संसार में प्रत्येक जन्म में स्त्री, पुत्र, धन मिल सकते हैं। केवल काशीपुरी नहीं मिल सकती। इस प्रकार काशी के धर्ममय प्रभाव को देखकर भगवान सूर्य का मन काशी में रहने के लिए चंचल हो उठा। इसलिए उनका काशी में लोलार्क नाम प्रसिद्ध हुआ। दक्षिण दिशा में असी संगम के समीप लोलार्क स्थित है। वे सदा काशी में रहकर काशी निवासियों के योग क्षेम का वहन करते हैं। मार्गशीष मास की षष्ठी या सप्तमी तिथि को रवि योग होने पर मनुष्य वहां की यात्रा तथा लोलार्क सूर्य का दर्शन करके समस्त पापों से मुक्त हो जाता है। जो मनुष्य रविवार को लोलार्क सूर्य का दर्शन करता है। उसे कोई दुख नहीं रहता है।