क्या है चीन की नास्तिकता के पीछे का रहस्य, क्यों है चीन की धर्म के प्रति इतनी बेरुखी ?
चीन आधिकारिक तौर पर एक नास्तिक देश है, हालांकि पिछले 40 सालों में यहां धार्मिक गतिविधियां बढ़ी हैं। चीन का संविधान वैसे तो किसी भी धर्म का पालन करने की आजादी देता है, लेकिन इसके बावजूद चीन में धर्म के रास्ते में कई पाबंदियां हैं.
राज्य केवल 5 धर्मों को मान्यता देता है जिसमें बौद्ध, कैथोलिजम, दाओजिम, इस्लाम और प्रोटेस्टेंट शामिल हैं। इनके अलावा किसी अन्य धर्म के क्रियाकलापों पर लगभग बैन है। धार्मिक संगठनों को राज्य स्वीकृत इन 5 धर्मों में से किसी एक के साथ रजिस्टर करना होता है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, चीन में धार्मिक लोगों की संख्या बढ़ रही हैं. शंघाई आधारित ईस्ट चाइना नॉर्मल यूनिवर्सिटी ने 4500 लोगों पर उनकी धार्मिक मान्यताओं पर एक शोध किया. इस शोध में यह बईात सामने आई कि 31.4 प्रतिशत लोग किसी ना किसी धर्म को मानते हैं. गैर-पंजीकृत धार्मिक लोगों की भी तादाद बढ़ी है. अंडरग्राउंड हाउस चर्च और प्रतिबंधित धार्मिक संगठनों में कई गैर-पंजीकृत धार्मिक लोग शामिल हैं.
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चीनी सरकार की धर्म से डरने की क्या है वजह
सत्तारूढ़ पार्टी सीसीपी आधिकारिक तौर पर नास्तिक है. यह राजनीतिक पार्टी अपने 9 करोड़ सदस्यों को धार्मिक मान्यताएं रखने से प्रतिबंधित करती है. पार्टी के किसी सदस्य के किसी धार्मिक संगठन या संस्था से जुड़ा पाए जाने पर उन्हें पार्टी से बर्खास्त तक किया जा सकता है. पार्टी के रिटायर सदस्यों को भी किसी धर्म का पालन करने की मनाही है.
सरकार का मानना है कि धार्मिक आस्था से वामपंथ की विचारधारा कमजोर होती है. पार्टी के सदस्यों को मार्क्सवादी नास्तिक बनने को कहा जाता है. चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग ने ही धर्म को नष्ट करने की कोशिश की थी. उन्होंने नास्तिकवाद को बढ़ावा दिया था.
अधिकारियों का कहना है कि सीसीपी पार्टी के सदस्यों को किसी धार्मिक कार्यक्रम में सार्वजनिक तौर पर शरीक होने की अनुमति नहीं दी जाती है. हालंकि इन प्रतिबंधों को कड़ाई से लागू नहीं किया जाता है. उदाहरण के तौर पर, जनवरी 2015 में पार्टी के 15 अधिकारियों को पार्टी अनुशासन का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया था जिसमें कुछ लोगों को दलाई लामा की मदद करने का आरोपी पाया गया था.
व्यक्तिगत अनुभव के तौर पर धर्म के उभार को लेकर पार्टी को चिंता नहीं है. लेकिन धर्म को एक सामूहिक क्रियाकलाप के तौर पर चीनी सरकार बढ़ने नहीं देना चाहती है. चीन की सरकार को डर है कि धार्मिक संस्थाएं पार्टी की अथॉरिटी पर सवाल खड़े कर सकती है और उसके लिए खतरा पैदा हो सकता है.
कुछ स्कॉलर्स के मुताबिक, चीन में धर्म का दायरा इतना सीमित है कि शायद ही वह सत्ता को चुनौती दे सके. चीनी सरकार लगातार पारंपरिक चीनी मूल्यों को बढ़ावा देने वाली विचारधाराओं और विश्वासों को प्रचारित करती है जैसे कि कन्फ्यूशियनिजम और बौद्ध धर्म.
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चीन में मुस्लिमों को भी कई तरह की पाबंदियों का सामना करना पड़ता है. शिनजियांग प्रांत में हिजाब पहनने, दाढ़ी बढ़ाने और रमजान महीने में रोजा रखने तक पर मनाही है. 1980 के बाद से चीन में ईसाई धर्म के अनुयायियों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है. राज्य में राज्य नियमित तीन ईसाई संगठन हैं और इसके अलावा कई अंडरग्राउंड हाउस चर्च हैं. 2010 में प्यू सेंटर के एक रिसर्च के मुताबिक, चीन की कुल जनसंख्या का 5 प्रतिशत आबादी ईसाई धर्म को मानती है. इसके बावजूद ईसाई धर्म और चीन सरकार के बीच बड़ा फासला है. सरकार ने प्रसिद्ध पादरी झांग शाओजी को भीड़ इकठ्ठा कर कानून व्यवस्था को बाधित करने के आरोप में 12 साल की जेल की सजा सुनाई थी. चीन में ईसाइयों की गिरफ्तारी और सजा मिलने के मामलों की संख्या काफी ज्यादा है.
बौद्ध धर्म के प्रति चीन का रवैया थोड़ा अलग है. इस्लाम और ईसाई धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म के प्रति ज्यादा सहिष्णु है. पूर्व चीनी नेता जियांग जेमिन और हू जिंताओ ने बौद्ध धर्म के प्रचार को बढ़ावा दिया था. उन्हें लगता था कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार से शांतिपूर्ण राज्य की छवि उभरकर आती है. इससे सीसीपी की सौहार्दपूर्ण समाज के लक्ष्य की पूर्ति होती है. इससे ताइवान के साथ संबंध सुधारने में भी मदद मिलती है.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद भी बौद्ध धर्म को सरकार ने बढ़ावा दिया. शी जिनपिंग ने सार्वजनिक तौर पर बौद्ध, कन्फ्यूसियनिजम और दाओजिम से देश के नैतिक पतन पर नियंत्रण की बात कही थी।