जीसस क्राइस्ट , यीशु मसीह परमेश्वर है या परमेश्वर के पुत्र या एक साधारण इंसान. आज इस लेख के माध्यम से यीशु मसीह के बारे में विस्तृत जानकारी देने का प्रयास करेंगे. तो आइये जानते हैं यीशु मसीह कौन है –
यीशु मसीह कौन थे ?
ईसाई धर्म के अनुयायियों के अनुसार यीशु मसीह परमपिता परमेश्वर के पुत्र और परमेश्वर के तृतीय सदस्य माने जाते हैं|ईसा के जीवन और उनके द्वारा दिये गए उपदेश ईसाई धर्म की पवित्र पुस्तक बाइबिल के नये नियम में दिये गये हैं.
यीशु मसीह का जीवन परिचय
यीशु को जानने के लिए उनका जीवन परिचय जानना आवश्यक है. बाइबिल के अनुसार यीशु की माँ मैरी विवाह से पहले ही ईश्वरीय प्रभाव से गर्भवती हो गई थी, ईश्वर की ओर से संकेत पाने के बाद उनका विवाह यूसुफ (जोसेफ़) नामक बढ़ई से हुआ.
यीशु ने बढ़ई का काम सीख लिया और लगभग 30 साल की उम्र तक वे बढ़ई का काम करते रहे. हालाँकि बाइबिल (इंजील) में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई जिक्र नहीं मिलता, 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से बपतिस्मा लेकर दीक्षा ग्रहण करी. बपतिस्मा के बाद यीशु पर पवित्र आत्मा आई| 40 दिन के उपवास के बाद यीशु लोगों को शिक्षा देने लगे.
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यीशु का धर्म प्रचार
तीस साल की उम्र में ईसा ने इजराइल की जनता के साथ यहूदी धर्म का एक नया रूप प्रचारित करना शुरु कर दिया. उन्होंने कहा कि ईश्वर (जो केवल एक ही है) साक्षात प्रेमरूप है और उस वक्त के वर्त्तमान यहूदी धर्म की पशु बलि और कर्मकाण्ड नहीं चाहता.
यहूदी ईश्वर की परम प्रिय नस्ल नहीं है, ईश्वर सभी मुल्कों को प्यार करता है. इंसान को क्रोध में बदला नहीं लेना चाहिए और क्षमा करना सीखना चाहिए.
यीशु ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे ही ईश्वर के पुत्र हैं, वे ही मसीह हैं और स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग हैं.
यहूदी धर्म में कयामत के दिन का कोई खास जिक्र या महत्त्व नहीं था, पर ईसा ने कयामत के दिन पर खास जोर दिया – क्योंकि उसी वक़्त स्वर्ग या नर्क इंसानी आत्मा को मिलेगा.
ईसा ने कई चमत्कार भी किए. सबसे प्रसिद्ध चमत्कारी घटनाओं में से कुछ में कब्र से लाजर नाम के एक मृत व्यक्ति को उठाना, पानी पर चलना और अंधे का इलाज करना शामिल था।