“Corona Lockdown के दौरान बेहद रोचक बदलावों को मापने वाला शोध”
दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज ने लॉकडाउन में 1009 लोगों के जरिए एक शोध किया है। “Probing Pandemic Pandemonium : A Real time study of Covid-19 stress, coping and psychological consequences on India” – 10 राज्यों में किया गया ये शोध कहीं न कही हमारी मानसिक स्थिति को हुबहू बताता है। दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, राजस्थान, बिहार, कर्नाटक, असम और महाराष्ट्र के 17 -83 साल के बीच के लोगों ने इस सर्वे में भाग लिया। इसमें 96.5 फीसदी लोगों ने खाना नहीं बर्बाद करने की बात को सबसे ज्यादा तरजीह दी है। वहीं 72.2 फीसदी ने कहा कि वे आने वाले समय में किसी भी लक्जरी सामान पर खर्चा कम करेंगे। 91 फीसदी ने कहा कि वे अब अपने स्वास्थ्य और सफाई का ज्यादा ध्यान देंगे। ये वो बदलाव है, जिनपर शोध में हिस्सा लेने वाले लोगों ने खुद से जवाब दिया।
– खाना नहीं बर्बाद करेंगे (67.7%)
– पर्यावरण के प्रति संवेदनशील रहेंगे (45.6%)
– अपने स्वास्थय का ध्यान रखेंगे (44.3%)
– सफाई पसंद बनेंगे (40.5%)
– परिवार के साथ ज्यादा समय बिताएंगे (31.8%)
– कपड़ों और लक्जरी सामान पर कम खर्च करेंगे (31.4%)
– भारतीय निर्मित सामान खरीदेंगे (26.4%)
– काम को ज्यादा गंभीरता से लेंगे (25.5%)
– चानी सामानों को नहीं लेगें (24.6%)
सबसे रोचक बात ये रही कि प्रतिभागी जरूरी सामानों की उपलब्धता, नौकरी जाने का खतरा और कोरोना से संक्रमण को लेकर बहुत परेशान नहीं दिखे।
कोरोना के बाद लॉकडाउन के चलते मानव व्यवहार में कुछ बदलाव देखे जा रहे है। हम ज्यादा से ज्यादा खुद के साथ और अपने परिवार के साथ रह रहे हैं, लेकिन सोशल मीडिया, टीवी के चलते हमें दुनिया के साथ-साथ अपने आसपास की जानकारी मिल रही है। इस शोध में हिस्सा लेने वालाों में से 15 लोगों के साथ शोधकर्ताओं ने फोन पर लंबी बात की, एक प्रतिभागी ने बताया कि उसे इंस्टाग्राम पर दोस्तों की खाने पीने के सामान की सुंदर फोटो देखकर और देश के गरीबों को हाल देखकर भारी तनाव महसूस होता है।
रोचक ये कि लॉकडाउन के दौरान किसी भी प्रतिभागी ने मेडिटेशन, मन का काम करने (हॉबी) या दोस्तों से बात करने को Stress कम करने में कारगर नहीं माना है। बहुत सारों का मानना था कि सरकार के अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की युद्ध स्तर की कोशिशें सही है। 43 फीसदी ने अपनी बाल्कनी में आकर ताली बजाने, सामूहिक गाने या थाली बजाने जैसे गतिविधियों को मन हल्का करने वाला बताया है।
इस शोध में मध्यम वर्ग और उच्च वर्ग के ज्यादा प्रतिभागी थे जिनमें से 63.1% महिलाएं थी। 44 फीसदी की उम्र 36-59 साल के बीच थी। इनमें 30.2 % छात्र, 12.5 % गृहणी, 7.1% रिटायर्ड और 50.2% नौकरीपेशा लोग थे। कोविड प्रकोप के दौरान उभरने वाले तनाव की पांच खास वजहें भी शोध में बताई गई। पहला, दूसरों से खीज, तात्कालिक चिंताएं, दिनचर्या बदलना, भविष्य को लेकर संशय और वायरस की जानकारी बढ़ने से तनाव पैदा करने वाले कारक। इनमें से दूसरों से खीजना सबसे बड़ी वजह बताई गई।
इसका मतलब है दूसरों द्वारा सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं करना आदि। ऐसे में जब कोरोेना जनित तनाव से निपटने में बहुत सारे तरीके कारगर नहीं हो रहे हैं तो सोशल डिस्टेंसिंग ने भी परिवार में दूरी बना दी है। ऐेसे समय में जब हमें अपने परिवार वालों का हाथ कभी कभी पकड़कर, उन्हें गले लगाकर अपने आप को मजबूत करना चाहिए, ऐसी एक शोधकर्ता ने सलाह दी है।
लेडी श्रीराम कॉलेज की प्रिंसिपल सुमन शर्मा के सहयोग से मनोविज्ञान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर कनिका के आहुजा ने रिसर्च एसोसिएट मिताली तेमुननिकर और वानी भारद्वाज के साछ मिलकर इस शोध को किया है।