मनुष्य के जीवन में अच्छे और बुरे दो प्रकार के संस्कार होते हैं। परन्तु बुरे संस्कारों में कुछ ऐसे संस्कार होते हैं, जो सर्वाधिक नुकसानकारक होते हैं। जिसका अनुमान खुद जिसके ऊपर होता है, उसे भी उसकी भनक नहीं लगती। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार वैसे तो ये मनुष्य के पांच शत्रु है। परन्तु इनमें अहंकार अर्थात अभिमान ऐसा अवगुण होता है, जो अपने साथ कई सारी बुराईयों को साथ लेकर आता है। अहंकार की बदबू ऐसा पुष्प होता है, जिसकी बदबू असहनीय और खुद उसी पेड़ को नष्ट कर देती है जिसपर वह फलता और फूलता है। अहंकार में डूबे व्यक्ति को ना तो हानि और ना लाभ दिखता है। उसे तो बस अहंकार की ज्वाला उसे क्रोध के शिखर तक ले जाती है।
अहंकार प्रेम को नष्ट कर देता है, इससे सीखने की योग्यता समाप्त हो जाती है इसलिए व्यक्ति से विचारों का आदान-प्रदान बन्द हो जाता है। उसके लिए विनम्रता को बढ़ाने की जरूरत है क्योंकि विनम्रता मनुष्य को श्रेष्ठता के ओर ले जाने के मार्ग की पहली सीढ़ी है। जिस व्यक्ति ने अपने पांव इस सीढ़ी पर रख दिया वह आगे चलकर एक महान व्यक्ति बन जाता है जिसका दुनिया अनुसरण करती है। ऐसा नहीं है कि अहंकार का जन्म एकाएक उत्पन्न हो जाता है। बल्कि उसकी आधारशिला तो पहले रखी होती है जिसकी एक भनक तक नहीं लगती। अहंकार मनुष्य को इतना अंधा बना देता है कि वह अहंकार को ही स्वभिमान मान लेता है। क्योंकि स्वाभिमान और अहंकार की रेखा इतनी पतली है कि अच्छे-अच्छे लोग भी इसके लपेटे में आ जाते हैं। अहंकार का जब आगमन होता है तो वह केवल अकेले नहीं आता है बल्कि अपने साथ कई सारी बुराईयों को साथ लेकर आता है।
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इतिहास इसका गवाह है कि एक अहंकार ने परिवार एवं कुल को भी समाप्त कर दिया है। 72 चौकड़ी राज्य करने वाला जन्म से ब्राह्मण महाबली रावण के एक अहंकार ने पूरे असुर समुदाय के नाश का कारण बना। ठीक इसी तरह महाभारत में भी दुर्योंधन के अहंकार ने समस्त हस्तिनापुर के भरत वंश का सर्वनाश कर दिया। अहंकार दीमक की भांति पूरे व्यक्तित्व को अंदर से खोखला कर देता है। जिससे व्यक्ति एक सूखे पेड़ की भांति हो जाता है। जहॉं कोई भी व्यक्ति जाना भी पसन्द नहीं करता है। ना तो उससे छांव मिलता और ना ही वह उपयोगी होता है। अहंकार की लपट इतनी तीव्र होती है कि व्यक्ति अन्दर ही अन्दर दूसरों के सुख और श्रेष्ठ भाग्य को देखकर गुरूर पालता रहता है कि मेरे से बड़ा कोई है ही नहीं।
हमेशा मनुष्य को अपने जीवन के उपर पहरेदार की भांति चौकन्ना रहना चाहिए। इसके साथ ही ईश्वर के साथ का सान्निध्य हमेंशा रखना चाहिए। इससे ही हम अहंकार जैसी बुरी आदतों को सही रूप में परख और पकड़ सकते हैं। अहंकार का दंश ऐसा होता है कि वह हर पल आपको परेशान करता रहेगा। चाहे वह पारिवारिक, सामाजिक व व्यक्तिगत स्तर पर हो। मानों कही गये और किसी ने आपको उचित स्थान नहीं दिया तो वहीं अहंकार का ऐसा रूप प्रकट होगा जिससे आप समझ ही नहीं सकते। अहंकार उसे तुरन्त ही अपमान की अग्नि में बदल देगा। व्यक्ति हाव भाव, चाल-चलन व्यवहार सबकुछ बदल जाता है। दूर से ही देखने पर महसूस होने लगता है कि व्यक्ति के अन्दर अहंकार का भूत है जो उसके चेहरे और नयन नुक्श से साफ झलकता है।
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अहंकार यहीं नहीं रूकता बल्कि वह अधर्मी भी बना देता है। अहंकार का भूत इतना हानिकारक होता है कि उसका कोई आकलन ही नहंी कर सकते। छोटे, बड़े, अच्छे, बुरे सब उसकी श्रेणी से बाहर हो जाते है। बस उसे खुद ही खुद नजर आता है।
कैसे होता है अहंकार का उदय: वैसे तो अहंकार हर व्यक्ति में कुछ ना कुछ होता है जो दूसरे रूप में दिखता है। परन्तु जब व्यक्ति को किसी भी चीज की प्राप्ति होने लगती है और उसे सम्भाल नहीं पाता है तो वह अहंकार के रूप में बदलने में देर नहीं लगती है। पद, प्रतिष्ठा, रूप, शिक्षा, धन, दौलत आदि ऐसी वे मुख्य चीजें है जिससे अहंकार जल्दी आ जाता है। यदि कोई व्यक्ति सुन्दर हो तो उसे अपने रूप पर अहंकार होता है, और किसी के पास ज्यादा धन दौलत हो तो उसमें भी अहंकार पनप जाता है। ठीक ऐसे ही पद और प्रतिष्ठा मिलने पर व्यक्ति आध्यात्मिक संभाल ना करे तो सहज ही उसके अन्दर यह अपना घर बना लेता है। अहंकार आने की भी कोई उम्र नहीं होती है। हॉं इतना जरूर है कि बालपन में इसका असर कम देखने को मिलता है परन्तु जैसे जैसे वह बड़ा होता है। वह भी बरसाती खर पतवार की भांति तेजी से बढऩे हुए असलियत को ढंक देता है। फिर ऐसे में मनुष्य अपने स्वभिमान की चादर ओढ़े अहंकार के कवच पाल लेता है। जिसका परिणाम उसे बुरा ही होता है। अभिमान का असर यह होता है कि वह धर्म, अधर्म, सत्य, झूठ की मर्यादा की उलझनों में डूबता और तैरता रहता है।
क्या है अहंकार के अंश और वंश: अहंकार तो एक वृक्ष की भांति है। परन्तु अहंकार का अंश और वंश रोब, गुरूर, ईष्या और द्वेष है। जब ये अवगुण खर पतवार की भांति उत्पन्न होने लगते है तो फिर यह धीरे-धीरे वट वृक्ष की शक्ल में तब्दील हो जाते हैं। जब यह एक वृक्ष बन जाता है तो वह पूरी तरह से मनुष्य के विवेक और बुद्धि को नष्ट कर देता है। उसे दुनिया में कोई दूसरा उसके मुताबिक नहीं दिखता है। उससे यदि कोई अच्छी बात भी बताता है तो उसे सुझाव के बावजूद आदेश समझने लगता है। अहंकार का वृक्ष इतना कटीला होता है कि उससे सिर्फ कांंटे ही कांटे दिखते है। इसलिए हमें हमेशा अन्तरावलोकन करना चाहिए कि कभी ऐसी बुरी आदतों को बढ़ावा ना मिले।
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नम्रता के विकास से खत्म करें अहंकार: अहंकार एक ऐसा मनोविकार है जो गहराई में छिपा होता है। अधिकांध व्यक्ति जानते भी नहीं कि उनमें अहंकार है। इस सम्बन्ध में उनसे कुछ कहने से केवल उनका अभिमान बढ़ेगा। विनम्रता का भाव पैदा करने से अहंकार पर विजय प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति में ईमानदादी के साथ नम्रता भी होनी चाहिए ताकि जितना हम अपने प्रति ईमानदार बनेंगे उतना विनम्रता हमारे बीच आयेगी। विनम्रता आपके अन्दर आने लगेगी आपके अन्दर एक सकारात्मक बदलाव महसूस होने लगेगा। बात अच्छी हो या बुरी दोनो ही परिस्थितियों में सोचने, समझने की क्षमता का विकास हो जायेगा। व्यक्ति को झुकना आ जायेगा। क्योंकि झुकने की शक्ति विनम्रता के अलावा आ ही नहीं सकती।
राजयोगिनी दादी जानकी, मुख्य प्रशासिका, ब्रह्माकुमारीज, माउण्ट आबू