दीक्षा दानेश्वर परमपूज्य आचार्य श्रीविजय गुणरत्न सूरीश्वरजी महाराज आज प्रातः 3:20 मिनट पर समाधिपूर्वक कालधर्म को प्राप्त हुए। पालखी का चढ़ावा सुबह 10 बजे ऑनलाइन रखा गया था जिसके बाद 2 बजे पालखी उमरा के लिए निकाली गयी।
आचार्य श्री का जीवन परिचय
आचार्य विजय गुणरत्न सुरीश्वर जी महाराज का सांसारिक नाम गणेशमलजी हीराचंदजी जी था।उनके पिता हीराचंद जेरुपूजी और माता का नाम मनुबाई हीराचंदजी था। महाराज जी का जन्म विक्रम संवत 1989 , पोष सुद 4 , ई. स. 1932 में पादरली, जिला जालोर राजस्थान में हुआ था। विक्रम संवत 2010 , महा सुद 4 , ई. स. 1954 में प.पू. सिद्धांत महोदधि आचार्य श्री विजय प्रेमसूरी म.सा.के पट्टलंकार प.पू. वर्तमान तपोनिधि आचार्य श्री विजय भुवनभानुसूरी महाराज साहेब से दीक्षा ग्रहण की थी।
आचार्य श्री की विशेषताएं
महाराज जी ने 21 वर्ष की उम्र में सगाई छोड़ कर दीक्षा ली थी ।
श्री जीरावला तीर्थ मे 3200 व्यक्तिओ की सामुहिक चैत्री ओळीजी की आराधना ।
2700 आराधको का मालगांव से पालिताणा तीर्थ , 6000 आराधको का राणकपुर तीर्थ तथा 4000 आराधको का पालिताणा से गिरनारजी का ऐतिहासिक छ’री पालित संघ ।
28 युवक – युवतियों को सूरत में , 38 युवक युवतियों की पालिताणा मे सामुहिक दीक्षा के साथ अभि तक कुल 451 दीक्षाओं के दीक्षादाता रहे।
श्री शंखेश्वर महातीर्थ मे 4700 अठ्ठम और 1700 आराधको का ऐतिहासिक उपधान तप ।
पालिताणा घेटी की पाग के बीच 2200 आराधको की नव्वाणुं यात्रा ।
सूरत दीक्षा में 51000 , पालिताणा दीक्षा में 52000 तथा अहमदाबाद में 55000 युवाओं को समूह सामायिक ।
क्षपकक्षेणी ग्रंथ के सर्जनकर्ता , जिसके विषय को लेकर जर्मन प्रोफेसर ” कलाउझ ब्रुन ” ने भी प्रशंसा की है ।
55 से अधिक आध्यात्मिक ज्ञान शिबिरो के सफळ प्रवचनकार ।
439 से अधिक साधु साध्विजी भगवंतो के योगक्षेम कर्ता
नाकोडा ट्रस्ट द्वारा संचालित निःशुल्क ” विश्व प्रकाश पत्राचार पाठ्यक्रम ” द्वारा 1 लाख विधार्थीओ के जीवन मे ज्ञान का प्रकाश फेलाने वाले ।
राजस्थान स्थित सुमेरपुर मे ” अभिनव महावीर धाम ” के मुख्य मार्ग दर्शक
शंखेश्वर सुखधाम , महावीर धाम , पावपुरी जीव मैत्री धाम , भेरुतारक तीर्थ के प्रेरणा दाता : जिसकी प्रतिष्ठा मे 700 साधु साध्वीजी की उपस्थिती थी । चैत्री ओळीजी मे एक साथ मे 274 आराधक भाई बहेनो ने जावजजीव – आजीवन चोथे व्रत का स्वीकार करवाया और श्री जीरावाला तीर्थ मे जीणोद्धार मे सामुहिक मार्ग दर्शन मे सबसे वडील , और श्री वरमाण तीर्थ के जीणोद्धार के मार्ग दर्शक
परम पूज्य दादा प्रेमसूरीश्र्वरजी महाराजा का ओघो गुरूदेव के पास मे ही है , अहमदाबाद मे श्री भवंरलालजी दोशी की दीक्षा के समय सभी को दर्शन करवाये थे ।
विक्रम संवत 2071 मे अहमदाबाद जिन शासन की यादगार दीक्षा श्री भवंरलालजी दोशी की हुयी जो स्वयं भारत के बडे उधोगपति थे और गुरुदेव के हाथो से दीक्षा ली थी ।
आपके शिष्य परिवार मे आचार्य श्री रविरत्नसूरी , आचार्य श्री रश्मिरत्नसूरी , आचार्य श्री पुण्यरत्नसूरी , आचार्य श्री यशोरत्नसूरी , आचार्य श्री जिनेशरत्नसूरि आदि है ।
श्रमण संस्कृति के महान सूर्य प.पू.आचार्य श्री विजय गुणरत्नसुरीश्वरजी महाराज एक व्यक्ति नहीं, विचार और संस्कृति थे।वैचारिक रूप से वे प्रकाश स्तम्भ बनकर सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
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