दीपों का त्योहार दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या को मनाई जाएगी. 14 नवंबर को मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा की जाएगी. शाम 5:24 से रात 8:06 तक पूजा का शुभ मुहूर्त है.
आइये जानते हैं प्रकाश के इस पर्व दीपावली का शुभ मुहूर्त, पूजन सामग्री और पूजन विधि के बारे में
रूप चौदस और दिवाली एक ही दिन
ज्योतिष गणना के अनुसार इस बार छोटी व बड़ी दिवाली एक ही दिन मनायी जाएगी. दरअसल, कार्तिक मास की त्रयोदशी से भाईदूज तक दिवाली का त्योहार मनाने की परंपरा होती है. लेकिन, इस बार छोटी दिवाली और बड़ी दिवाली 14 नवंबर यानी कार्तिक मास की चतुर्दशी को मनायी जाएगी.
शुभ मुहूर्त
14 नवंबर को चतुर्दशी तिथि है. यह दोपहर 1:16 तक रहेगी. इसके बाद अमावस तिथि शुरू हो जाएगी जो 15 नवंबर की सुबह 10:00 बजे तक रहेगी. ऐसे में शाम 5:24 से रात 8:06 बजे तक दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त है. 15 तारीख को केवल स्नान दान की अमावस्या की जाएगी.
यंत्र की पूजा जरूरी
मां लक्ष्मी के साथ-साथ दिवाली में में श्री यंत्र की पूजा भी की जाती है. श्री यंत्र की पूजा कच्चे दूध से करने से सभी राशि के जातकों को लाभ होगा.
पूजन सामग्री
दीपावली पर मां-लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा-पाठ के लिए आपको कुमकुम, चावल (अक्षत), रोली, सुपारी, पान, लौंग, नारियल, इलायची, अगरबत्ती, धूप, रुई बत्ती, मिट्टी, दीपक, दूध, दही, गंगाजल शहद, फल, फूल, चंदन, सिंदूर, पंचमेवा, पंचामृत, श्वेत-लाल वस्त्र, चौकी, कलश, जनेऊ, बताशा, कमलगट्टा, संख, माला, एक आसन, हवन कुंड, आम के पत्ते, लड्डू, काजू की बर्फी व अन्य सामग्री की आवश्यकता होती है.
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दीपावली पूजन विधि
पूजा की चौकी लेकर उसपर साफ़ कपड़ा बिछाएं. अब मां लक्ष्मी, सरस्वती व गणेश जी की प्रतिमा को वहां स्थापित करें.
याद रहे मूर्तियों का मुख हमेश पूर्व की ओर होना चाहिए.
हाथ में थोड़ा गंगाजल ले लें, अब भगवान की प्रतिमा पर इस मंत्र का जाप करते हुए छिड़कें…
ऊँ अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स: वाह्याभंतर: शुचि:।।
इसके बाद जल को अपने आसन और खुद पर भी छिड़कें.
अब धरती मां को प्रणाम करें और आसन पर बैठें, हाथ में गंगाजल लेकर पूजा करने का संकल्प करें.
इसके बाद जल से भरा कलश लें और मां लक्ष्मी के पास अक्षत की ढेरी रखें. अब कलश पर मौली बांध दें और ऊपर आम का पल्लव रखें.
उसमें सुपारी, दूर्वा, अक्षत व सिक्का रखें.
कलश पर एक नारियल स्थापित करें. नारियल लाल वस्त्र में लपेटा होना चाहिए. याद रहे उसका अग्रभाग दिखाई देता रहे. इसे कलश वरुण का प्रतीक माना गया है.
सर्वप्रथम श्री गणेश की पूजा करें. फिर माता लक्ष्मी की आराधना करें. वहीं, इस दौरान देवी सरस्वती, भगवान विष्णु, मां काली और कुबेर का भी ध्यान लगाएं.
पूजा के समय 11 या 21 छोटे सरसों के तेल के दीपक जरूर जला लें और एक बड़ा दीपक भी जलाएं. इसके अलावा एक दीपक चौकी के दाईं ओर एक बाईं ओर रख दें.
भगवान के बाईं तरफ घी का दीपक जलाकर रखें और फूल, अक्षत, जल व मिठाई उन्हें अर्पित करें.
अपने इच्छा अनुसार गणेश, लक्ष्मी चालीसा पढ़ सकते हैं.
अब गणेश जी और मां लक्ष्मी की आरती उतारें और उन्हें भोग लगाकर पूजा संपन्न करें.
11 या 21 दीपकों को घर के सभी दरवाजों के कोनों में रख दें.
याद रहे पूरी रात पूजा घर में एक घी का दीपक भी जलता रहना चाहिए. यह बेहद शुभ माना जाता है.
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