दीपोत्सव का महापर्व
- आचार्य चन्दना जी
अमावस्या की काली कजराली रात, साधन अन्धकार है। प्रकृति के प्रकाश देवता सूर्य और चन्द्र भी इस रात आकाश में नजर नहीं आ रहे हैं तो क्या करें? अन्धेरे में निष्क्रिय हो बैठे रहना, मनुष्य स्वाभाव में नहीं हैं। उसने प्रकाश का प्रबन्ध किया। अन्धकार पर विजय पानेवाला “दीपक का आविष्कार”, मानव जाति का महत्तम आविष्कार है। मानव जाति आज भी अपने ही आविष्कार के प्रति चिर ऋणी है।
प्रकृति से प्राप्त प्रकाश उसके नियंत्रण में नहीं है, किन्तु; दीप-प्रकाश उसकी स्वतन्त्रता में उसके अधिकार में है। जहाँ सूर्य-चन्द्र नहीं पहुच पाता, शताब्दियों के अन्धकार को चीरता हुआ मनुष्य निर्मित प्रज्वलित दीपक वहाँ पहुँचता है। गुफाओं को जगमगाया, अन्धाकाराच्छादित पथ आलौकिक कर दिये। अम्बर से अवनि ताल तक दिव्य दिव्य आलोक भर दिया। मनुष्य जाति अद्भुत आनन्द से भर गई। प्रकाश का सामूहिक अभिनंदन है प्रकाश पर्व दीपावली। भारत की बौद्धिक क्षमता के साथ अन्तश्श्चेतना विलक्षण है। भारत में अन्तर जगत में ज्ञान दीप प्रज्वलित करने वाला भौतिक ज्योतिपर्व के साथ आध्यात्मिक ज्योतिपर्व के दिव्य रूप के प्रस्तोता है तीर्थंकर भगवान् महावीर। भगवान् महावीर के चैतन्यदीप ने अनादि के अज्ञान अन्धकार के पत्तों को तोड़ा, अन्धकार के विरोध में उनकी जीवन यात्रा, विजय यात्रा है। अनन्त ज्योतिर्मय आत्मदीप को “लोग्पज्जोयगारे” सम्पूर्ण जगत को प्रघोत करने वाले उच्चतम भूमिका तक पहुँचा दिया। राग द्वेष के धुंए से मुक्त, अज्ञान, अन्धकार से मुक्त निर्धूम निर्विकार स्वरुप को पाया। भगवान् महावीर का उद्घोष रहा- अन्तर्जगत के अन्धकार को तोड़ों, अनन्त ज्योतिर्मय बनो। ओर ऐसा दीप प्रगट करो जो कभी बुझता नहीं।
भगवान् महावीर ने अनन्त प्रकाशी चैतन्य्दीप ने लाखों-लाख जीवन के ज्ञान-दीप प्रज्वलित किए ओर कार्तिक अमावस्या की पावन निशा में परिनिर्वाण प्राप्त किया, पावापुरी की धर्मसभा में। भगवान महावीर के परिनिर्वाण की मंगलमय आध्यत्मिक स्मृति से जुड़ा है दीपावली पर्व।
दीपावली पर्व का आध्यात्मिक सन्देश है – एक छोटे बिन्दु ने अन्तर यात्रा शुरू की ओर साधनारत रहते हुए एक दिन विराट सिन्धु बना। साधारण पंकिल आत्मा में विशुद्ध अनन्त ज्योतिर्मय आत्मा प्रकट हुई जिसका हर गुण अनन्त है। विरत आत्मा का दर्शन अनन्त, ज्ञान अनन्त, विर्यशक्ति अनन्त, सुख-आनन्द-शान्ति अनन्त सबकुछ अनन्त। उस विरत अवस्था में स्थित रहते हुए तीस वर्ष तक प्राणियों के कल्याण के लिए, उनकी रक्षा के लिए विचरण करते रहे महावीर। एक नगर से दुसरे नगर, एक गावँ से दुसरे गावँ , एक देश से दुसरे देश, उनके चरण पड़े, वहाँ वहाँ घर-घर में, झोपड़ी में, महलों में ज्योतियाँ प्रज्वलित होती गई। बिना किसी जाती, पंथ, धर्म, परम्परा के भेदभाव के सबको स्पर्श किया ओर सबकी अन्तज्योति को जगाया।
भगवान् महावीर की मृण्मय अर्थात देह ज्योति विलीन हो गई, वह आज हमारे बीच नहीं रही। हाँ, परम सौभाग्य है, वह ज्ञान-ज्योति जिससे लाखों-लाख ज्योतियाँ जगी वह परम ज्ञान ज्योति हमारे पास है, उसके संस्पर्श से हम चैतन्य, ज्योति जगाय। “जह दिवो दिव सयं” एक दीप से सैकड़ों दीप जगाए।”
वाहृय जगत का अन्धकार भयंकर हैं। उसके लिए उपक्रम हो रहे हैं। बाहृय अन्धकार से भी अधिक भयंकर हैं भीतर का अन्धकार। उस अन्धकार को तोड़ने का प्रयास है अध्यात्म। अन्तर चेतना में ज्ञान का आलोक प्रसारित होना शुरू होता है तब साधक आध्यात्मिक पाथ पर गतिशील होता है। अन्धकार में विकार, वासना, मोह-माया की जहरीली लताएँ कटीली झाड़ियाँ पनपती है। ज्ञानलोक में प्रेम का, स्नेह का, क्षमा का सहिष्णुता का क्षीर सागर लहराता है, गरजता है। तब साधक परिवार में रहता है तो वहाँ भी और समाज में रहता हैं वहाँ भी नयी दृष्टि से, नये विजन से एक अद्भुत सृष्टि का निर्माण करता है। उसकी जीवन यात्रा सत्य के आलोक की यात्रा है, धर्म की यात्रा है, अमृत की ज्योति यात्रा है। अध्यात्म संपृक्त ऐश्वर्य की यात्रा है।
भगवान् महावीर परिनिर्वाण के दीपपर्व के एवं गौतम स्वामी के कैवल्य प्राप्ति का दिन गौतम प्रतिपदा से प्रारम्भ होनेवाले वीर संवत् में नववर्ष की प्रतिपदा के उपलक्ष्य में सबके आनन्द, कल्याण ऐश्वर्य, सुख, सम्पदा के लिए अध्यात्मश्री के लिए भगवान् महावीर के सर्व मंगल चरणों में प्रर्थन करती हूँ।
भगवान् ज्ञान ज्योति के प्रकाश में जीवन ज्योतिर्मय हो, ज्ञान ज्योतिर्मय हो, कर्म ज्योतिर्मय हो। आपके संपर्क में आनेवाले जो भी हो, उनका मन अन्धकार से दूर हो, स्वार्थान्धता मिटे, निर्मल ज्ञान चक्षु खुले। प्रकाश पथ पर निर्विघ्न यात्रा हो।