दीपावली : अपनों और प्रकृति की रक्षा का पर्व
- आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी
दीपावली अंधकार से प्रकाश पर, धर्म से अधर्म पर जीत का नाम हैं। हम सब के भीतर जो मानवीयता है, उसकी स्थापना को स्थापित करती हैं। एक ऐतिहासिक राम प्रकृति और धर्म और संस्कृति से जुड़ा हुआ यह महापर्व निश्चित ही हमारे जीवन में स्वाभाविक प्रसन्नता, उल्लास और आनन्द को प्रकट करता हैं। इस दीपावली को हम सब मिलकर प्रयत्न करें के परिवार के सामंजस्य के साथ, इस पर्व को मनाए। आज के समय में परिवार को जोड़ के रखना सबसे महत्वपूर्ण विषय हैं और दीपावली वास्तव में परिवार का “Reunion” ही हैं। जिस तरह श्रीराम जी अयोध्या वापस लौटे वो रामजी का Reunion ही था।
जिन सब के साथ आपका प्रेम और लगन हैं, उन सब के साथ मिलन, परिवार में एकता, निजी जीवन में पवित्रता, व्यापार में पारदर्शिता और भगवान् से प्रेम यही दीपावली का श्रेष्ठ रूप हैं।
दीपावली के दिन अमावस्या थी, तो अयोध्यावासियों ने दीप मलिकाओं द्वारा रामजी का स्वागत किया था। उसी प्रकार हम अपने जीवन को ज्योतिर्मय बनाए “तमसों मा ज्योतिर्गमय”। यह वेद का उपनिषद का जो सूत्र हैं आज के दिन सार्थक होता है की अंधकार पर ज्योतिर्गमय। हम सब भी अपने दिल में प्रेम, दया और आनन्द की ऐसी अग्नि को प्रकट करें, जिससे चारों तरफ़ ख़ुशहाली और आनन्द व्याप्त हो।
चारों तरफ़ जहाँ दीपावली और Fire Crackers या पटाखों को लेकर चर्चा हैं, “मैं यही कहना चाहूँगा के मैं निश्चित ही प्रकृति की संवेदनाओं जानता हूँ और अपनी कथाओं के माध्यम से प्रकृति को सदैव संपोषित करने कि ही बात कहता हूँ। हमारा हिंदू धर्म हैं निश्चित रूप से प्रकृति को सम्भालने बात करता है। हम पेड़ो को देवता और अपनी नदियों को माँ कहते हैं, तो कोई भी ऐसा कार्य जिससे प्रकृति को समस्या हो, वो बिल्कुल अनुचित हैं। किसी भी प्रकार के प्रदूषण का में स्वयं विरोध करता हूँ। जिस प्रकार यह माहौल बना दिया गया हैं, के होली पर पानी की बर्बादी और दीवाली पर प्रदूषण हो रहा हैं, यह गलत हो रहा हैं।” इस पर rules regulation लाने की जगह हमें लोगो में जागरूकता लाने की आवश्यकता हैं। हमारा हिन्दू धर्म इतना श्रेष्ठ हैं, के वो बड़ी सहजता से स्वीकार कर लेगा। Rather than imposing different rules through Supreme or High court, there is a more need of Awareness in the people, in the society.
एक डिबेट यह भी हैं, के पटाखों का क्या प्रमाण हैं? मेरे अपना निजी विचार हैं और अनेकों रामायण में इसका उल्लेख भी हैं के जिस दिन राम जी अयोध्या लौटे थे उस दिन अमावस की रात थी और दीयो को जलाकर रामजी का स्वागत किया गया। उस दिन पटाखे कहा से आ गए? राम जी क्षत्रिय और राजपरिवार से थे। जब वे लौटे तो युवराज पद के अधिकारी थे और भरत ने विधिवत स्वागत की तैयारी की थी। किसी भी राजा के स्वागत के लिए वर्तमान समय में भी विभिन्न तोपो और पटाखों द्वारा स्वागत किया जाता हैं।
आज के समय में भी हमारे प्रधान मंत्री या कोई श्रेष्ठ व्यक्ति आता हैं तो उन्हें Gun Salute दिया जाता हैं। किसी शहीद के लिए भी तोप की सलामी दी जाती हैं।
जब रामजी अयोध्या लौटे तो उन्हें भी अस्त्र शस्त्र द्वारा सलामी देकर स्वागत किया गया। परन्तु; उस समय की बात अलग थी और आज जिस तरह से पटाखों का प्रयोग किया जा रहा हैं, उससे चारों तरफ प्रदूषण ही फैल रहा हैं। यह जिस तरह से सब हमपर थोपा गया हैं, उससे बेहतर हैं कि जागरुकता जगाय, प्रकृति के प्रति।
दीपावली को दिए से मनाए। प्रकृति, पक्षियों की रक्षा करिये।
दीपावली की अनेक शुभकामनाएं।
- आचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी
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