देव दिवाली 2017 पूजा विधि: जानिए क्यों मनाई जाती है देव दिवाली
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देव दिवाली हर वर्ष दिवाली के ठीक 15 दिनों बाद माता गंगा की पूजा के लिए मनाई जाती है. कार्तिक माह के पूरे चांद के दिन यानि पूर्णिमा को देव दिवाली मनाई जाती है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवता धरती पर आते हैं और उत्सव मनाते हैं. इस पर्व को वाराणसी में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भोलेनाथ के सभी भक्त एक साथ माता गंगा के घाट पर लाखों दीए जला कर देव दीवाली का उत्सव मनाते हैं. मान्यताओं के अनुसार इस दिन काशी के घाटों पर सभी देव उतर कर भगवान शिव की विजय की खुशी में दिवाली मनाते हैं. इस दिन माता गंगा की पूजा की जाती है. काशी के रविदास घाट से लेरप राजघाट तक लाखों दीए जलाए जाते हैं. गंगा के जल पर बहते दीए एक अद्भुत नजारे की अनुभूति करवाते हैं.
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देव दिवाली पूजा विधि-
इस दिन सभी भक्त गंगा में स्नान करते हैं. शाम के समय भगवान गणेश की आरती के साथ पूजा शुरु होती है. इसके बाद ब्राह्मण और कन्याएं वैदिक मंत्रों का उच्चारण करते हैं. इसके बाद माता गंगा की आरती की जाती है. इस दिन सभी लोग अपने घरों के मंदिर, द्वार और तुलसी के पौधों पर दीपक जलाते हैं. गंगा महोत्सव के दौरान वाराणसी में कई तरह के सांसकृतिक कार्यक्रम होते हैं. गंगा के सभी घाटों को लाखों दीयों से सजाया जाता है और इसके बाद घाटों की सुंदरता देखने के लिए लोग नांव से गंगा की सैर करते हैं. गंगा के बहते पानी में जलते दिए बहते हुए बहुत सुंदर अनुभूति करवाते हैं. इसका आकर्षण ही हजारों यात्रियों को काशी की ओर कार्तिक पूर्णिमा के दिन अपनी ओर खींच लेता है.
इस वर्ष देव दिवाली का पर्व 3 नवंबर 2017 को है. कार्तिक पूर्णिमा की तिथि 3 न नवंबर की रात 1 बजकर 46 मिनट से शुरु होकर 4 नवंबर के 10 बजकर 52 मिनट तक रहेगी. इस दिन सूर्यउदय सुबह 6 बजकर 36 मिनट होगा और सूर्यास्त का समय 5 बजकर 43 मिनट हो सकता है. इसके बाद देव दिवाली की पूजा प्रदोष काल में की जा सकती है. इस दिन माता तुलसी के विवाह की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है और उनकी पूजा करके दीपदान किए जाने की मान्यता है. शाम के समय गंगा किनारे जलते दीए किसी का भी मनमोह लेते हैं.
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