Post Image

देवकीनंदन ठाकुरजी : संत, समाजसेवी और कृष्ण के दास

देवकीनंदन ठाकुरजी : संत, समाजसेवी और कृष्ण के दास

12 सितम्बर 1978 को श्री कृष्ण जी की जन्मभूमि मथुरा के माॅंट क्षेत्र के ओहावा ग्राम में एक ब्राहम्ण परिवार में जन्में श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी अपने बाल्यकाल से ही भारतीय संस्कृति और संस्कारों के संवाहक बने हुये हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि के माताजी श्रीमती अनसुइया देवी एंव पिताजी श्री राजवीर शर्मा जी से बृज की महत्ता और श्री कृष्ण भगवान की लोक कथाओं का वर्णन सुनते हुये आपका बालजीवन व्यतीत हुआ। राम-कृष्ण की कथाओं का प्रभाव आप पर इस कदर पड़ा कि प्रारम्भिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही वृन्दावन की कृष्णलीला मण्डली में शामिल हो गये। यहाॅं श्री कृष्ण का स्वरूप निभाते कृष्णमय होकर आत्मिक शान्ति का अनुभव करने लगे। आप लीला मंचन में इतना खो जाते कि साक्षात कृष्ण प्रतिमा लगते। यहीं दशर्कों ने आपको ‘ठाकुर जी’ का सम्बोधन प्रदान किया। वृन्दावन में ही श्री वृन्दावनभागवतपीठाधीश्वर श्री पुरूषोत्तम शरण शास्त्री जी महाराज को गुरू रूप में प्राप्त कर प्राचीन शास्त्र-ग्रन्थों की शिक्षा प्राप्त की।

समाजिक क्षेत्र में पदार्पण

आपने प्राचीन भारतीय ग्रन्थों का गहनता से अध्ययन किया तो पाया कि ईश्वर के अवतारों, सन्तो, ऋषि-मुनि और महापुरूषों की सभी क्रियायें समाज का हित करने का सन्देश देती है। सभी धर्म भी समाज और उसमें रहने वाले प्राणिमात्र की उन्नति और कल्याण की बात कहते हैं । श्री राम और श्री कृष्ण की विभिन्न लीलाये और जीवन क्रियायें समाज में व्याप्त अत्याचार, अधर्म, हिंसा, अनैतिकता, धनी-निर्धन, ऊॅंच-नीच और छुआछूत जैसी सामाजिक कुरूतियों और बुराईयों के विनाश और निदान के लिये समर्पित थीं । आज हम अपने अराध्य को मानते हैं लेकिन उनकी शिक्षाओं को नहीं मानते हैं। जबकि हम उनके जीवन से शिक्षा लेकर अपने वर्तमान समाज को ऐसी बुराईयों से दूर रख सकते हैं । 

इसी विचार को सिधान्त मानकर श्री देवकीनन्दन ठाकुर जी ने श्री राम-कृष्ण कथाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराईयों के खिलाफ सन्देश देने का कार्य प्रारम्भ किया। आप कथा प्रसंगों को केवल कहानी की तरह प्रस्तुत नहीं करते वरन् वर्तमान परिस्थितियों में उनकी सार्थकता और उपयोगिता सिद्ध करते हैं । जिससे श्रोतागणों में अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूकता का विकास होता है। 

सन् 1997 में दिल्ली से इन प्रेरणादायी कथाओं का प्रारम्भ आपने किया । 10 अगस्त 2012 तक 439 कथाओं के माध्यम से आज जनमानष में आपसी प्रेम, सदभाव, संस्कृति संस्कार के विचार फैला चुके हैं । निसन्देह इसका व्यापक प्रभाव भी श्रोताओं पर होता है । महाराज श्री की कथाओं में दिन-प्रतिदिन बढ़ती श्रोताओं की संख्या इस बात की गवाह है कि आज भी लोग भारतीय सभ्यता और संस्कारों में विश्वास रखते हैं और इससे जुड़ते हैं । बस जरूरत उन्हे जागरूक करने की है । महाराज श्री इस प्रयास में सफल रहे हैं ।

उमड़ता जनसैलाब

महाराज श्री की भाषाशैली और व्यवहारिक प्रवचनों से प्रभावित होकर हजारों की संख्या में लोग कथा पण्डालों में पहुंचते हैं । कई प्रमुख आयोजनों में श्रोताओं की संख्या 40 हजार से लेकर 1 लाख तक की सीमा पार कर जाती हैं । टी.वी. चैनलों के माध्यम से भी महाराज श्री के समाजकल्याणकारी विचार करोड़ो लोगों तक पहुंचंते हैं । हिन्दु, मुस्लिम, सिंख, ईसाई, जैन आदि सभी धर्मो को मानने वाले लोग आपके कार्यक्रमों में सम्मिलित होकर आपके विचारों को शक्ति प्रदान करते हैं । विनम्र, मृदभाषी महाराज श्री मृदल वाणी में जब भगवान की विभिन्न लीलाओं का मार्मिक वर्णन करते हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते हैं । वहीं सामाजिक कुरूतियों और विसंगतियों पर आपकी ओजस्वी वाणी में कटाक्ष लोगों में जोश और साहस का संचार कर देती है ।

सामाजिक योगदान

आपकी अध्यक्षता में 20 अप्रेैल 2006 में विश्व शान्ति सेवा चैररिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की गई । जिसके माध्यम से भारत के विभिन्न स्थानों पर कथाओं एंव शान्ति संदेश यात्राओं का आयोजन किया जाता है । अपने कार्यक्रमों में सम्मिलित विशाल जनसमुदाय को विभिन्न सामाजिक कुरूतियों और विसंगतियों के विरूद्ध जागरूक करने के लिये कई अभियान आपने शुरू किये हैं । जिनके माध्यम से लोगों को एकजुट करके एक नये समाज के र्निमाण में उनका योगदान लिया जा रहा है ।

इन सेवा अभियानों में से कुछ निम्न प्रकार हैं ।

1. गऊ रक्षा अभियान- भारत में गऊ का महत्व किसी से छिपा नहीं है । यह हिन्दुस्तानियों की माता के रूप में सम्मान प्राप्त है । फिर भी हमारे देश में निर्यात के लिये प्रतिदिन हजारों र्निदोष गायों की हत्या कर दी जाती है । इसके विरूद्ध आवाज उठाते हुये महाराज श्री ने गऊ रक्षा अभियान शुरू किया हुआ है । अपनी प्रत्येक कथा में वह गऊ रक्षा रैली निकालते हैं । जिसमें हजारों की संख्या में स्त्री पुरूष बच्चे शामिल होकर गऊ रक्षा के लिये आवाज बुलन्द करते हैं । इन रैलियों के माध्यम से महाराज श्री लोगों को गऊ हत्या रोकने के लिये जागरूक करते हैं । कानपुर, मुम्बई, भागलपुर, विलासपुर, होशंगाबाद, वृन्दावन, नागपुर आदि स्थानों पर विशाल गऊ रक्षा रैलियां निकाली जा चुकी हैं.

2. गंगा-यमुना प्रदुषण- गंगा-यमुना हमारी आस्था का केन्द्र ही नहीं बल्कि हमारे लिये जीवन दायिनी भी हैं । अपने उद्गम स्थल से निर्मल जल धारा के साथ निकली यह नदियां हमारे कर्मो के मैले ढोते-ढोते आज गन्दे नालों मे तब्दील हो रहीं हैं । ये आज इतनी प्रदुषित हो चुकी हैं कि कई स्थानों पर यह आगमन लायक भी नहीं बचीं हैं । इस प्रदुषण के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से गंगा-यमुना पद यात्रायें महाराज श्री के सानिध्य में विश्व शान्ति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से निकाली जाती हैं । गंगा-यमुना प्रदुषर्ण के विरूद्ध किये जा रहे तमाम आन्दोलनो में महाराज श्री बढ़चड़ कर भाग लेते हैं और अपने कार्यक्रमों में आने वाले प्रत्येक श्रोता को इस दिशा में प्रयास करने को सहमत करते है । इसी सन्दर्भ में कथा स्थल पर ही स्थानीय समाजसेवियों और पयार्वरण प्रेमियों के साथ मिलकर इस विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया जाता है जिसमें इन नदियों के प्रदुषित होने के कारणों और आम जनता की जिम्मेदारी पर विचार प्रकट कर उपस्थित श्रोतागणों को इसके प्रति जागरूक किया जाता है ।

3. दहेज प्रथा- आज हमारे समय में बड़ी कुरीति है दहेज प्रथा । दहेज लोभियों द्वारा हजारों विवाहित महिलायें इसकी बलि चढ़ा दी जाती हैं । कई परिवार दहेज लोभियों की मांगे पूरी करते-करते बर्बाद हो जाते हैं । आज समाज में इस दहेज दानव को समाप्त करने की आवश्यकता है । महाराज श्री इस दिशा में विशेष रूप से प्रयास कर रहे हैं । अपने प्रत्येक कथा कार्यक्रम में सम्मिलित हजारों श्रोताओं को वह इस बात के लिये शपथ दिलाते हैं कि वह ना तो दहेज लेगें और ना ही दहेज देंगे । कथा में शामिल नवयुवक और युवतियों को वह इस बुराई से लड़ने के लिये प्रेरित करते हैं । वह पैसे से ज्यादा संस्कार और विचार की अहमियत सिद्ध करते हैं । वह धनी वर्ग को सादा विवाह समारोह आयोजित करने की सीख देते हैं । विश्व शान्ति सेवा चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा दहेज रहित सामूहिक विवाह समारोह आयोजित किये जाते हैं । जिसमें सभी वर्गो के लोगों के पुत्र-पुत्रियों का दहेज रहित विवाह कराया जाता है ।

4. जल एंव पर्यावरण संरक्षण- आज हमारे देश में कई स्थानों पर लोग पीने के पानी की कमी से जूझ रहे हैं । प्रतिदिन जल की कमी के आंकड़े और भविष्य की भयावय तस्वीरे मीडिया के माध्यम से सामने आती रहती हैं । वहीं दूसरे ओर जिनके पास पर्याप्त जल संसाधन मौजूद हैं वह इसकी उपयोगिता नहीं समझ रहे हैं । भारी मात्रा में जल व्यर्थ गंवा रहे हैं । महाराज श्री इस दिशा में भी प्रयासरत हैं वह अपने कथा प्रेमियों को जल संरक्षण और सदुपयोग करने, वृक्ष लगाकर मानसून में सक्रीयता बनाये रखने के लिये प्रेरित करते हैं ।

5. छूआछूत और ऊॅंच-नींच के खिलाफ- भगवान श्री कृष्ण और श्री राम ने अपने मानव जीवन मे छूआ छूत, ऊॅंच नीॅंच और धनी निर्धन जैसी विसंगतियों को कड़ा जवाब देकर आपसी प्रेम और सद्भाव के प्रतिमान स्थापित किये थे । कथा के मध्य आने वाले विभिन्न प्रसंग इस बात की पुष्टि करते हैं और सन्देश देते हैं कि हम सभी को ऐसी संकीर्ण मानसिकताओं से ऊपर उठकर आपस में भाईचारे के साथ व्यवहार करना चाहिये । महाराज श्री प्रभावी ढंग से हमारे पुराणों का यह सन्देश हजारों श्रोताओं तक पहुॅंचा रहे हैं ।

6. नवयुवाओं में सस्कारों की प्रेरणा- आज का युवा पाश्चात्य जगत से प्रभावित होकर अपनी प्राचीन भारतीय संस्कृति और संस्कारों से विमुख होता जा रहा है । भोतिकतावादी युग में युवक-युवतियाॅं अपने बुजुगों, माता-पिता और समाज के प्रति कर्तव्यों से दूर हो रहे हैं । हमारे प्राचीन गन्थों के प्रसंगं एंव लोककथायें हमें माता-पिता, गुरू, समाज के प्रति सेवा भाव की प्रेरणा देती हैं । ऐसी दशा में जरूरत है कि युवाओं में हमारे प्राचीन संस्कारों की जानकारी देकर उन्हें अपने बुजुर्गोे और समाज के प्रति कत्वर्यशील बनाया जाये । इसकी शुरूआत बाल जीवन से ही की जानी चाहिये । महाराज श्री की ओजस्वी वाणी से प्रभावित बालक/बालिकायें कथा कार्यक्रमों में अधिक संख्या में भाग लेते हैं। यंहा महाराज जी बड़े प्रभावी ढंग से भारतीय संस्कार और संस्कृति की शिक्षा देकर उन्हे अपने परिवार, समाज और देश की सेवा के लिये जागरूक कर रहे हैं ।

अन्य सेवा कार्य

1. कैदियों के लिये सुधारकार्य- अपराध बड़ा होता है अपराधी नहीं । अगर व्यक्ति को सुधारना है तो उसमें प्रायश्चित की भावना का विकास करना ज्यादा लाभकारी रहता है । इसी सिद्धान्त पर कार्य करते हुये महाराज श्री देश के विभिन्न कारागारेां में जाकर वहाॅं निरूद्ध बन्दियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं । वह उन्हे मानव जीवन की उपयागिता और उद्देश्य के प्रति जागरूक करते हैं । जबलपुर, झारसूखड़ा उड़ीसा, लखीमपुर खीरी, आदि स्थानों की कारागारों में जाकर वहाॅं बन्दियों को प्रवचन प्रदान कर आपराधिक भावनाओं को सद्भावनाओं में परिवर्तित करने का कार्य कर रहे हैं ।

2. असहाय, आपदापीडि़त एंव रोगपीडि़तों की सहायता- विश्व शान्ति सेवा चेरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से महाराज श्री की अध्यक्षता में अन्य सेवा कार्य भी किये जा रहे हैं । गत वर्ष बिहार में आयी बाड़ में भागलपुर से आगे पहुॅचकर बाड़ पीडि़तों को वस्त्र, भोजन व आर्थिक सहायता प्रदान की गयी । कथाओं के मध्य केन्सर जैसी बीमारियों से पीडि़त लोगों को रोग इलाज हेतु सहायता राशि प्रदान की जाती रही है । लगभग प्रत्येक कथा स्थल पर गरीब व असहाय व्यक्तियों को वस्त्र वितरण का कार्यक्रम रखा जाता है । विभिन्न अनाथालयों में बच्चों के साथ समय व्यतीत कर उन्हें स्नेह और आर्थिक मदद प्रदान की जाती रही है ।

विश्व शान्ति के लिये शान्ति यात्रायें भारत की संस्कृति और संस्कारों के प्रसार एवं प्रेम और सद्भाव का सन्देश देने के लिये महाराज श्री के सानिध्य में अनेक देशों में शान्ति यात्रायें आयोजित की गई हैं । अमेरिका, इंग्लैण्ड, हाॅगकाॅंग, दुबई, यूरोप , थाईलेण्ड, इण्डानेशिया, सिंगापुर, बर्मा, फ्रान्स आदि देशों में वहाॅं निवास कर रहे भारतीय परिवारों के साथ मिलकर शान्ति, सद्भाव और भारतीय संस्कृति के प्रसार के लिये उपदेश एंव कथा कार्यक्रम आयोजित किये जाते रहें हैं ।

आगामी योजनाऐं-विश्व शान्ति सेवा चैरीटेबल ट्रस्ट के माध्यम से विभिन्न योजनाओं को सम्पादित किया जा रहा है । इसी दिशा में श्री धाम वृन्दावन में शान्ति सेवा धाम आश्रम का निर्माण किया जा रहा है । जहाॅं असहाय वृद्धों के लिये वृद्धाश्रम बनाया जा रहा है । गरीब बच्चों के लिये निःशुल्क विद्यालय की योजना पर कार्य चल रहा है । निराश्रित गायों के लिये एक गऊशाला की परिकल्पना की गई है । बीमार जन की सेवा के लिये निःशुल्क अस्पताल का र्निमाण प्रस्तावित है ।

अन्त में – निष्कर्षतय यह कह सकते हैं कि महाराज श्री का जीवन समाज सेवा के लिये सर्मपित है । अपने विभिन्न क्रियाकलापों एंव गतिविधियों से वह समाज और देश की सेवा कर रहे हैं ।

मूलतः कथाओं के माध्यम से लोगों को जोड़कर उनमें प्राचीन संस्कृति, संस्कार, सद्भाव और सामाजिक जिम्मेदारी के प्रति जागरूक करने का कार्य महाराज श्री कर रहे हैं । जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव आपकी कथाओं में शामिल होने वाले विशाल जनसमुदाय की उपस्थिति में देखा जा सकता हैं । पौराणिक कथा प्रंसगों को वर्तमान परिस्थितियों से जोड़कर प्रभावी रूप से सिद्ध करने की कला आपको प्राप्त है । जिससे सहज ही आकृष्ट होकर जनमानस आपके उपदेशों पर अमल करना शुरू कर देते हैं । यहीं से सामाजिक सुधारों की एक श्रृंखला शुरू होती है जो वास्तविक्ता की जमीन पर अपना असर दिखाती हैं ।

साभार : http://vssct.com/

Post By Religion World