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पिता कभी मरता नहीं…..देवकीनंदन ठाकुरजी

“मैंने भगवान को नहीं खोया लेकिन भगवान से कम भी नहीं खोया है। हमारे संस्कारों में पिता जी हमेशा जीवित रहेंगे।” – देवकीनंदन ठाकुरजी, भागवताचार्य। 

देश के प्रसिद्ध भागवताचार्य देवकीनंदन ठाकुरजी के सिर से पिता का साया उठ गया है। बीती पांच सितंबर को उन्होेेंने इस जगत के अलविदा कह दिया। देवकीनंदनजी के लिए ये भावनात्मक पीड़ा के असह्य पल हैं। श्री राजवीर शर्मा जी का जन्म 15 अगस्त 1947 को आजादी के दिन हुआ था। मथुरा के अहोवामाट में वे जन्में। इस परिवार सदियों पुराना रिश्ता महर्षि गर्गाचार्यजी से है, जिन्होनें भगवान श्रीकृष्ण का नामकरण किया था। आजादी के दिन जन्म लेने के काऱण उनका नाम राजवीर रखा गया था। वे अपने भाई-बहनों में सबसे बडे थे और जीवन भर उन्होंने सबकी जिम्मेदारी निभाई।

देवकीनंदन ठाकुरजी के पिताजी की याद में रखी गई प्रार्थना और श्रद्धाजंलि सभा के दृश्य

पूज्य पिताजी का जीवनवृत्त देखिए…

https://www.youtube.com/watch?v=wdqfiXmgm-k

अपने पुत्रों को संस्कारपरक जीवन देने के लिए उन्होंने कभी भी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया, जीवन के उतार चढ़ाव देखे, पर संतानों को कभी भी कमजोर नहीं बनने दिया। देवकीनंदन जी महाराज उन्हें याद करते हुए एक मार्मिक संस्मरण बताते हैं कि, “एक रात मूसलाधार वर्षा हो रही थी, बड़े-बड़े ओले पड़ रहे थे, जिस झोपड़ी में ये पूरा परिवार रहता था, उसकी पूस की छत हवा-पानी-ओले के वेग से हिली जा रही थी। पिता ने बच्चों को और अपनी धर्मपत्नी को एक एक कोने पर इस छत को पकड़ने को कहा, जिससे वो उड़ न जाए। एक कोने पर राजवीर जी, एक कोने पर माताजी, और एक-एक कोने पर देवकीनंदनजी और उनके बडीे भाई लटके छत को उड़ने से बचाने के लिए लटके रहे। ओलों से छत हिली जा रही थी, साथ में मूसलाधार वर्षा। माताजी ने कहा कि ऐसे कैसे हम बचेंगे। उन्होनें कहा कि पास ही सरकारी स्कूल है, वहां जाकर शरण ले लेते हैं। पर पिता ने कहा कि अगर बाहर जाएंगे को ये बालक ओलों से घायल हो सकते हैं। पिता ने कहा अब भगवान का नाम लेकर हम सब यहीं बीच में बैठेंगे, और जो होगा देखा जाएगा। 

देवकीनंदनजी की अश्रुपूरित रचना, अपने पिता के लिए...
देवकीनंदनजी की अश्रुपूरित रचना, अपने पिता के लिए…

मर्माहत देवकीनंदन ठाकुरजी को इस बात का दुख है कि वे आईसीयू में पिता के होने के कारण उनसे बात नहीं कर पाए, ये खबर मिलते ही वो अमेरिका से अपनी कथा छोड़कर आनन फानन भारत आए। पिता की दी हुई मिसालें उन्हें सदैव आगे ले जाती रही है। वे बतातें हैं कि, “वो रोज सुबह पांच बजे उठते, पास के पार्क में जाकर योग और शारीरिक अभ्यास करे, फिर घर आकर नहा-धोकर पास के शिव मंदिर में रोजाना अभिषेक करने जाते थे। इसके बाद अपनी मोपेड़ लेकर वो रोज आश्रम जाते, दिन भर वहीं पर रहते, काम काज में हाथ बटाते। शाम को प्रियाकांतजू के दर्शन करके वो घर आते, अपने दो खास धार्मिक सीरियल देखते और बच्चों के साथ खेलते और सो जाते थे। उनके रहने से इतनी निश्चिंतता रहती थी, कि हम महीनों बाहर रहते थे, पर एक बार भी नहीं सोचते थे”। 

देवकीनंदन जी सालों से देश और विदेश में घूम-घूम कर भागवतकथा और रामकथा का वाचन करते हैं। उनकी शैली ने उनके लाखों प्रशंसक बनाएं हैं। अपनी कमाई को भी समर्पित करके उन्होनें वृंदावन में एक आश्रम, भगवान प्रियाकांतजू का एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। अब वे गरीब और अनाथ बच्चों के लिए एक अनाथाालय के लिए समर्पित प्रयास कर रहे है।

17 सितंबर को देवकीनंदन जी के पिताजी की त्रियोदशी एंव ब्रह्मभोज का आयोजन किया गया है। सुबह 11 बजे सबको आना है। पगड़ी की रस्म उसी दिन शाम 4 बजे होगी।

रिलीजन वर्ल्ड की ओर से इस पुण्यात्मा को भावभीनीं श्रद्धांजलि……

Post By Religion World