धनतेरस का धन
|| ॐ धन्वन्तरये नमः ||
धन-त्रयोदशी और धनतेरस का त्यौहार भगवान् धन्वन्तरी को समर्पित है। वैसे धनतेरस के दिन नई वस्तुएं विशेष कर धातु के बने हुए बर्तन अथवा गहने आदि खरीदने का रिवाज़ है। आज के दिन धन कुबेर की पूजा भी होती है और लोग लक्ष्मी-गणेश जी की प्रतिमा अपने घर में स्थापित करते हैं। भक्त-याचक ईश्वर से धन वृद्धि की याचना भी करते हैं। मानना है कि धनतेरस के दिन गहने, बर्तन आदी धातु की बनी हुई वस्तुओं को खरीदने से पुरे वर्ष धन का आगमन बना रहता है। कहते हैं जब भगवान् धन्वन्तरी प्रगट हुए तब अपने हाँथ में चांदी का अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। जिसके कारण धनतेरस के दिन कलश के समान बर्तन खरीदने का प्रचलन शुरू हुआ।
कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन ही भगवान् धन्वन्तरी का अवतरण हुआ था। वो भगवान् विष्णु के ही अवतार माने जाते हैं। अतः इस तिथि को धन्वन्तरी जयंती, धन त्रयोदशी, धनतेरस और राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है। महर्षि धन्वन्तरी आयुर्वेद के जनक भी माने जाते हैं। आयुर्वेद अर्थात चिकित्सा एवं आयु से सम्बंधित विषय। आयुर्वेद कोई धन से सम्बंधित विषय नहीं है। परन्तु धनतेरस के दिन लोगों में धन की पूजा या धन कुबेर की पूजा मात्र धन प्राप्ति की कामना के कारण ही की जाती है। परन्तु धन एकत्र करना कोई धन्वन्तरी का विषय नहीं है | धन्वन्तरी का विषय तो आयुर्विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान और स्वास्थ्य रक्षा एवं सुधार सम्बन्धी था। फिर इसका सम्बन्ध धन से कैसे बन गया?
अर्थात ! अगर धन गया तो समझो कुछ नहीं गया अगर स्वास्थ्य गया तो कुछ हानि हो गयी ऐसा समझना चाहिए लेकिन अगर चरित्र गया तो समझो कि सब कुछ ही खो गया | यह इस कहावत का अभिप्राय है, परन्तु भारतीय संस्कृति की परम्परागत धारा का अध्ययन करें तो समझ में आता है कि स्वास्थ्य से बढ़कर कुछ नहीं | स्वास्थ्य गया तो फिर धन भी जाएगा और चरित्र भी जाएगा | क्योंकि यहाँ स्वास्थ्य की परिभाषा बहुत विशाल है | स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है और स्वस्थ रहना ही जीवन का उद्देश्य है | अगर हम स्वस्थ नहीं हैं तो हमारे पास कितना भी धन वैभव क्यों न हों , हम उसका आनंद नहीं उठा सकते | और अगर हम स्वस्थ हैं तो बिना धन-वैभव के भी आनंद में रह सकते हैं | क्योंकि सुखी होने के लिए किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है, सुख तो आत्मा का स्वभाव है | अतः जो आत्म स्थित है अर्थात स्व: स्थित है वही स्वस्थ है | आत्म स्थित योगी पुरुष अपने शरीर पर और मन में चलने वाले विचारों पर पूर्ण नियंत्रण रख पाता है |
जब हमारे शास्त्रों में स्वास्थ्य की चर्चा होती है तो उसका तात्पर्य मात्र शारीरिक दृढ़ता से नहीं होता | मन के स्वस्थ हुए बिना शरीर का स्वस्थ रह पाना संभव नहीं है | और मन ही कर्म की प्रेरणा एवं आधार बनता है और कर्म से चरित्र और आचरण परिभाषित होते हैं, अतः मन का स्वास्थ्य सर्वोपरि है | अतः ईसी कारण से गोस्वामी तुलसी दास जी ने रामचरित मानस के उत्तर काण्ड में मानस रोगों की चर्चा की है | ये मन के रोग हीं बाद में शरीर के असाध्य रोग बन जाते हैं, जिन्हें हम वर्तमान समय में Psychosomatic disease के नाम से जानते हैं | और फिर मन की यही बीमारियाँ मृत्यु के कारण भी बनाते हैं | अतः स्वस्थ रहना ही सर्वोपरि है, अगर मनुष्य स्वस्थ है तो ना ही उसे धन का नुकसान होगा और ना ही उसे चरित्र की हानि होगी और ना ही जीवन का आनंद ख़त्म होगा |
भारतीय धर्म-साधना, आयुर्वेद, योग, वेदान्त, ज्योतिष इन सभी शास्त्र-ग्रंथो का एक ही प्रयोजन है, और वो है सम्पूर्ण स्वास्थ्य को प्राप्त होना | पूर्णरूपेण स्वस्थ होना | परन्तु यह स्वस्थ होने की प्रक्रिया मात्र भोजन एवं खाद्य पदार्थो तक सिमित नहीं है | यह स्वस्थ होने की प्रक्रिया शरीर, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, से होते हुए आत्मा तक पहुंचती है | हमारा सम्पूर्ण व्यक्तित्व तीन शरीरों से बना हुआ है – स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर एवं कारण शरीर | जब हम तीनो शरीरों से स्वस्थ होंगे तभी हम स्वास्थ्य की सम्पूर्णता का आनंद उठा पायेंगे | अतः स्वस्थ रहने के लिए मात्र खाद्य पदार्थ और भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान देने से काम नहीं चलेगा | भोजन के साथ साथ ,मन में चलने वाले विचारों पर भी ध्यान देना होगा |
जैसे अनियंत्रित भोजन करने से शरीर का स्वास्थ्य बिगड़ता है वैसे ही अनियंत्रित विचारों से मन का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है | अत्यधिक भोजन से शरीर का वजन बढ़ता है और शरीर से कोई रचनात्मक कार्य करना संभव नहीं होता वैसे ही बहुत ज्यादा व्यर्थ सोचने से मन की रचनात्मक कार्य क्षमता भी घट जाती है, और कई मानसिक बीमारियाँ भी होने लगती हैं | अतः खाद्य पदार्थों पर ध्यान देने के साथ साथ स्वस्थ रहने के लिए आत्म-अनुसंधान की साधना भी अनिवार्य है |
अतः शारीरिक , मानसिक एवं आध्यात्मिक संतुलन की अवस्था ही सम्पूर्ण स्वास्थ्य है | और यह अवस्था ही परम आनंद की अवस्था और जीवन का सबसे बड़ा धन है | बस हम इस रहस्य को समझ जाएँ तो ‘धनतेरस का धन’ भी समझ में आ जाएगा |
अतः दिव्य सृजन समाज के द्वारा समाज के मानसिक स्वास्थ्य को सुधारने एवं वास्तविक स्वास्थ्य को समझने के लिए ही एक अभियान चलाया गया है – SAW (Self Awakening Workshop) अर्थात आत्म जागृति कार्यक्रम | आप इसका लाभ उठाएं और सीखे स्वस्थ जीवन कैसे जिया जाए |
|| ॐ धन्वन्तरये नमः ||
– मनीष देव जी
साभार – http://divyasrijansamaaj.blogspot.in/