भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को डोल ग्यारस मनाई जाती है। डोल ग्यारस भगवान श्री कृष्ण के रूप में जन्मे श्री हरि की जलवा पूजन या सूरज पूजा की याद के रूप में मनाया जाता है। इस साल डोल ग्यारस 29 अगस्त शनिवार को मनाया जाएगा।
परिवर्तिनी एकादशी भी कहलाता है
डोल ग्यारस को परिवर्तिनी एकादशी या जलझूलनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। कहते हैं कि इस दिन माता यशोदा ने श्री कृष्ण का जलवा पूजन किया था। इसी मान्यता के कारण डोल ग्यारस का त्योहार मनाया जाता है। जलवा या सूरज पूजन के बाद ही संस्कारों की शुरूआत होती है, इस दिन भगवान श्री कृष्ण को डोल में बिठाकर तरह-तरह की झांकी सजाकर लोग यात्रा निकालते हैं।
डोल ग्यारस की तिथि
इस बार डोल ग्यारस 29 अगस्त शनिवार को है। डोल ग्यारस के दिन व्रत करने से व्यक्ति के सुख और सौभाग्य में बढ़ोतरी होती है। मान्यताओं के अनुसार इसी दिन मां यशोदा ने बाल कृष्ण के कपड़े धोए थे, इसी कारण लोग इस एकादशी को जल झूलनी एकदशी भी कहते हैं। इसके प्रभाव से सभी दु:खों का नाश होता है, इस दिन भगवान विष्णु और बाल कृष्ण की पूजा की जाती है। जिनके प्रभाव से सभी व्रतों का पुण्य मनुष्य को मिल जाता है।
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डोल ग्यारस का महत्व
डोल ग्यारस के दिन बाल गोपाल भगवान श्री कृष्ण की सूरज पूजा की गई थी। मान्यता के अनुसार सूरज पूजा के बाद ही जीवन से जुड़े अन्य संस्कारों की शुरूआत की जाती है। मौजूदा दौर में इस दिन भगवान के बाल स्वरूप को डोल में बिठाकर नगर में भ्रमण करवाया जाता है।
कहा जाता है कि डोल ग्यारस का व्रत करने से सुख – सौभाग्य में बढ़ोत्तरी होती है। व्रत के प्रभाव से सभी दुखों का नाश होता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप की पूजा करनी चाहिए।
ग्यारस का व्रत बहुत महत्वपूर्ण होता है, जीवन के कठिन अंत को सरल बनाता है एकादशी का व्रत। कहा जाता है पांच ज्ञानेद्रियों, पांच कर्मेंद्रियों और मन पर नियंत्रण रखने के लिए यह व्रत किया जाता है।
कहा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को यह व्रत बताया था। डोल ग्यारस व्रत का महत्व वाजपेयी यज्ञ या अश्वमेध यज्ञ के समान होता है। इस व्रत का महत्व तब बढ़ जाता है जब आपने कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भी किया हो।
पूजा विधि
एकादशी के दिन सुबह स्नान करके सफेद और स्वच्छ कपड़े पहनें।
भगवान कृष्ण का ध्यान करें और व्रत का संकल्प करें।
दिन भर अन्न आहार, अल्पाहार या अन्य किसी भी तरह के अनाज का सेवन करने बचें, इस दिन फलाहार या अपने सामर्थ्य के अनुसार उपवास करें।
शाम को भगवान के बाल अवतार अर्थात बाल गोपाल की पूजा करें, भगवान को पंचामृत से स्नान करवाएं, भगवान को पीले वस्त्र पहनाएं और परिवार व परिजनों के साथ चरणामृत ग्रहण करें।
इसके बाद भगवान को गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य इत्यादि अर्पित करें। फिर भगवान के सामने बैठकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, पाठ के बाद भागवान की आरती करें और संभव हो तो परिजनों के साथ रात्रि जागरण करें।
द्वादशी के दिन जरूरतमंद को दान करें और गरीबों को भोजन करवाएं।
घर के बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद लें और व्रत का सही तरह से पालन करें।
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