चंद्र ग्रहण : क्या होगा असर और क्या न करें
पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार इस चन्द्र ग्रहण के दिन वार-बुधवार, तिथी-माघ पूर्णिमा और कर्क राशि पर ग्रहण होने से अच्छी बारिश के योग बनेंगे। जनता जागरूक होगी और सत्ता में परिवर्तन संभव है। साधु, संतों, पंडित, शिक्षार्थी, बुजुर्ग व्यक्ति के लिए कष्टकारी रहेगा। सोना-चांदी, पीतल, गुड़, चीनी, गेहूं में तेजी का रूख होगा। वहीं अराजकता, भूकंप, जातिगत आंदोलन, सुनामी होने की आशंका बन रही है। जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में राहु व चन्द्रमा की छाया आ जाती है और जिस भाग में यह छाया पड़ती है उस जगह ऊर्जा का संचार कम होता है। ग्रहण के दौरान जो छाया मोटी होती है वह राहु तथा जो बारीक छाया होती है वह केतु कहलाती है। यानि छाया के असर से होने वाले दुष्प्रभाव को ग्रहण कहा जाता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की यह सर्व ग्रास खग्रास संज्ञा का प्रतीक होगा तथा यह चंद्रग्रहण पुष्य आश्लेषा नक्षत्र एवं कर्क राशि पर चरितार्थ होगा अतः इन राशि वालों को ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिए एवं वृषभ, कन्या ,तुला एवं कुंभ राशि हेतु दर्शन करना सुखद है तथा मेष, कर्क, सिंह एवं धनु राशि हेतु दर्शन करना योग्य नहीं है | मिथुन, वृश्चिक, मकर और मीन राशि हेतु सामान्य मध्यम फलद रहेगा ।
वैसे भी ग्रहण के दौरान ज्यों ही ब्रह्मांड में घटना के साथ ऊर्जा की कमी होती है तो प्रत्येक जीव किसी न किसी प्रकार से प्रभावित होता है।
चंद्र ग्रहण ख़त्म होने के बाद क्या करें ?
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक चंद्र ग्रहण ख़त्म होने के बाद स्नान के बाद नए वस्त्र पहनने चाहिए। और ग्रहण के वक्त पहने हुए कपड़े दान कर देने चाहिए। ऐसा करने शुभ माना जाता है। साथ ही अपने पितरो को दान करना चाहिए। ऐसा करने से घर में खुशहाली बनी रहती है। साथ जी ग्रहण काल में तुलसी के पौधे को नहीं छूना चाहिए। ऐसा करना शुभ नहीं माना जाता।
चंद्र ग्रहण के बाद पूजा पाठ का विशेष महत्त्व
चंद्र ग्रहण के बाद किसी धार्मिक स्थल पर जाना बहुत ही शुभ माना जाता है। और साथ ही इस समय भगवान् शिव की पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। ग्रहण काल ख़त्म होने के बाद घर में देवी देवताओं की मूर्तियों को गंगाजल छिड़क कर शुद्ध करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक ग्रहण काम में घर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है इसलिए ग्रहण ख़त्म होने बाद घर की साफ सफाई जरूर करें। और साफ सफाई ख़त्म होने के बाद घर में धुप (गूगल/कपूर इत्यादि) भी जलाएं। ऐसा करने से घर से नकारात्मक ऊर्जा का नाश होगा और घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होगा।
जानिए ग्रहण में क्या करें, क्या न करें?
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की सूर्य हो या चंद्र ग्रहण, दोनों ही अपने बुरे प्रभाव के लिए जाने जाते हैं। ना केवल शास्त्रीय दृष्टि सेम वरन् साइंस ने भी ग्रहण की वजह से होने वाले बुरे प्रभावों को माना है। ग्रहण के दौरान कुछ सावधनियां बरतनी जरूरी हैं यह वैज्ञानिकों ने भी माना है, क्यूंकि ग्रहण के दौरान निकलने वाली तरंगे हमें हानि पहुंचा सकती हैं।
- सूर्यग्रहण हो या चंद्रग्रहण, सूतक लगने के बाद से और सूतक समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिये।
- ग्रहण के वक्त पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ने चाहिए।
- ग्रहण के वक्त बाल नहीं कटवाने चाहिये।
- ग्रहण के सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।
- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानंद शास्त्री ने बताया की ग्रहण के वक्त संभोग, मैथुन, आदि नहीं करना चाहिये।
- ग्रहण के वक्त दान करना चाहिये। इससे घर में समृद्धि आती है।
- कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये।
- अगर संभव हो सके तो पके हुए भोजन को ग्रहण के वक्त ढक कर रखें, साथ ही उसमें तुलसी की पत्ती डाल दें।
- तुलसी का पौधा शास्त्रों के अनुसार पवित्र माना गया है। वैज्ञानिक रूप से भी यह सक्षम है, इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट आसपास मौजूद दूषित कणों को मार देते हैं। इसलिए खाद्य पदार्थ में डालने से उस भोजन पर ग्रहण का असर नहीं होता।
- चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है।
- श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्धि होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाक् सिद्धि प्राप्त कर लेता है।
- सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक ‘अरुन्तुद’ नरक में वास करता है।
- सूर्यग्रहण में ग्रहण चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर (9) घंटे पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं।
- ग्रहण-वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
- ग्रहण वेध के प्रारम्भ में तिल या कुश मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति में ही करना चाहिए और ग्रहण शुरू होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिए।
- ग्रहण के स्पर्श के समय स्नान, मध्य के समय होम, देव-पूजन और श्राद्ध तथा अंत में सचैल (वस्त्रसहित) स्नान करना चाहिए। स्त्रियाँ सिर धोये बिना भी स्नान कर सकती हैं।
- ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है।
- गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए। तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किन्तु संतानयुक्त गृहस्थ को ग्रहण और संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिए।
- भगवान वेदव्यासजी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्यग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगाजल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।
- ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम-जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है। ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षों का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है।
- भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए।