भगवान राम ने विजयदशमी यानि दशहरे के दिन रावण का वध करके विजय प्राप्त की थी. रावण के पास अमृत कलश होने के बावजूद वो श्री राम के हाथों मारा गया.
रावण एक सिद्ध ब्राह्मण था और परम तपस्वी. उसने अपनी तपस्या से कई वरदान प्राप्त किए थे. हालांकि रावण अमर तो नहीं था,लेकिन उसे मारना भी असंभव था. इसका कारण था अमृत कलश. रावण ने अमृत कलश अपनी नाभि में छिपा कर रखा था.
रावण ने कैसे प्राप्त किया अमृत कलश
पुराणों के अनुसार रावण अमृत कलश प्राप्त करने के लिए अपने भाईयों कुंभकर्ण और विभीषण के साथ गोकुंड नाम के आश्रम में तपस्या के लिए गया था. उसने ब्रह्मदेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया था. उसके लिए उसने दस हजार वर्षों तक तपस्या की थी. वह एक हजार वर्ष पूरा होने के बाद अपना एक सिर हवन कुंड में अर्पित कर देता था. इस प्रकार नौ हजार वर्ष पूर्ण होने के बाद वह अपने नौ सिरों को हवन कुंड में चढ़ा चुका था. जब दस हजार वर्ष पूर्ण होने वाले थे तो रावण अपना दसवां सिर भी हवन कुंड में चढ़ाने लगा,लेकिन उसी समय ब्रह्मा जी प्रकट हो गए और रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर वर मांगने को कहा .
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रावण ने मांगा अमृत्व का वरदान
रावण ने ब्रह्म देव से अमृत्व का वरदान मांगा. ब्रह्मा जी ने रावण से कहा कि ऐसा संभव नही है, जो भी इस पृथ्वीं पर आया है उसे तो जाना ही पड़ेगा. तब रावण ने यह वर मांगा की मनुष्य जाति को छोड़कर और कोई भी उसका वध न कर सके. ब्रह्मा जी ने रावण को वरदान देते हुए उसके कटे हुए नौ सिर भी वापस कर दिए. ये वरदान ऐसा ही बना रहे इसीलिए ब्रह्मा जी ने रावण की नाभि में अमृत कुंड स्थापित कर दिया. अब रावण की मृत्यु तभी संभव थी जब उस कलश का अमृत सूख जाता.
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